

स्पेन और स्विट्जरलैंड ने अमेरिका के F-35 लड़ाकू विमानों को ठुकरा कर यूरोपीय विकल्पों पर भरोसा जताया है। वहीं भारत भी स्वदेशी इंजन निर्माण की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। इन फैसलों ने अमेरिका की रक्षा रणनीति और हथियार बाजार में उसकी पकड़ को चुनौती दी है।
अमेरिकी F-35 लड़ाकू विमान (Img: Google)
Washington: अमेरिका के लिए रक्षा सौदों का बाज़ार हमेशा से उसकी ताकत और रणनीतिक दबदबे की पहचान रहा है। लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं। भारत और यूरोप ने हाल के फैसलों से यह संकेत दिया है कि वे अमेरिकी “मोनोपोली” से निकलकर अपनी रणनीतिक आज़ादी और घरेलू उद्योग पर ज़्यादा भरोसा करना चाहते हैं।
स्पेन लंबे समय से अमेरिका के F-35 लड़ाकू विमानों को खरीदने की योजना बना रहा था, खासकर अपनी नौसेना के लिए F-35B मॉडल। लेकिन अचानक उसने यह योजना रद्द कर दी। इसके बजाय स्पेन ने 25 यूरोफाइटर टाइफून विमानों की खरीद और भविष्य के फ्यूचर कॉम्बैट एयर सिस्टम (FCAS) प्रोजेक्ट पर निवेश करने का फैसला किया।
हालांकि इस कदम से उसकी नौसैनिक क्षमता फिलहाल सीमित हो जाएगी क्योंकि अगले दस साल तक उसके पास वास्तविक पांचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान नहीं होगा। लेकिन इसका बड़ा फायदा यह होगा कि अरबों यूरो की रकम यूरोपीय उद्योगों और सप्लाई चेन को मज़बूत करेगी। यह निर्णय रणनीतिक तौर पर स्पेन को अमेरिकी निर्भरता से दूर ले जाएगा।
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स्विट्जरलैंड ने 2022 में जनमत संग्रह कराकर 36 F-35A विमानों की खरीद को मंजूरी दी थी। इस सौदे की कीमत करीब 6 अरब स्विस फ्रैंक थी। लेकिन जल्द ही विवाद खड़े हो गए। अमेरिका ने स्विस अधिकारियों को बताया कि कॉन्ट्रैक्ट पूरी तरह फिक्स्ड नहीं है और कीमत महंगाई व सामग्री लागत के कारण 650 मिलियन फ्रैंक तक बढ़ सकती है। इसके अलावा वाशिंगटन ने स्विस निर्यात पर नए टैरिफ भी लगा दिए। इससे देश के भीतर असंतोष बढ़ा और अब कई नेता इस सौदे को घटाने या पूरी तरह रद्द करने की मांग कर रहे हैं।
यूरोप के कई देश मानते हैं कि F-35 खरीदने का मतलब अमेरिकी नियंत्रण में बंध जाना है। विमान के सभी अपग्रेड, सॉफ़्टवेयर बदलाव और ऑपरेशनल डेटा अमेरिका के हाथों में रहता है। राजनीतिक हालात बदलने पर यह जोखिम भरा साबित हो सकता है।
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यूरोफाइटर टाइफून और FCAS जैसे विकल्प यूरोप को अपनी तकनीकी क्षमता और रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखने का मौका देते हैं। खासकर FCAS भविष्य में छठी पीढ़ी की क्षमताओं वाला विमान होगा, जो पूरी तरह यूरोपीय नियंत्रण में रहेगा।
यूरोप की तरह भारत ने भी अमेरिका पर निर्भरता कम करने का संदेश दिया है। भारत अब फ्रांस की कंपनी Safran के साथ मिलकर 120 KN का इंजन विकसित करेगा, जो पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट्स को ताकत देगा। यह प्रोजेक्ट भारत-फ्रांस साझेदारी को और मज़बूत करेगा और अमेरिका की उम्मीदों को बड़ा झटका देगा, क्योंकि ट्रंप प्रशासन चाहता था कि भारत अमेरिकी GE 414 इंजन खरीदे।