

पाकिस्तान अमेरिका और चीन के बीच संतुलन बनाने में जुटा है। रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने चीन को सबसे भरोसेमंद साथी बताया और अमेरिका के साथ संबंधों को ‘लेन-देन’ बताया। ख्वाजा आसिफ ने अमेरिका के साथ पाकिस्तान के संबंधों को ‘लेन-देन या फ्लर्टिंग’ जैसा बताया।
ख्वाजा आसिफ चीन को बता रहे खास दोस्त
Islamabad: पाकिस्तान वर्तमान में अपनी विदेश नीति में एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से व्हाइट हाउस में मुलाकात करने पहुंचे। इस मुलाकात का उद्देश्य अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूत करना और पाकिस्तान की वैश्विक छवि को सुधारना बताया गया।
इसी बीच पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ ने चीन को पाकिस्तान का सबसे भरोसेमंद साथी और हथियारों का प्रमुख स्रोत बताया। ब्रिटिश-अमेरिकी पत्रकार मेहदी हसन के साथ बातचीत में आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान के विमानों, पनडुब्बियों और अन्य हथियारों का बड़ा हिस्सा चीन से आता है। उन्होंने कहा, "हमारे लिए चीन की विश्वसनीयता और पड़ोसी होने का महत्व अन्य देशों की तुलना में ज्यादा है।"
ख्वाजा आसिफ ने अमेरिका के साथ पाकिस्तान के संबंधों को 'लेन-देन या फ्लर्टिंग' जैसा बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जितनी निकटता पाकिस्तान अमेरिका के साथ रखता है, उतना ही चीन हमेशा स्थायी और भरोसेमंद सहयोगी रहा है। आसिफ के अनुसार चीन केवल हथियारों का स्रोत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान का एक विश्वसनीय रणनीतिक साथी भी है।
पाकिस्तान ने चीन को बताया भरोसेमंद साथी (Img: Google)
इस इंटरव्यू में ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में हुए सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौते पर भी बात की। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के सऊदी दौरे के दौरान सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की मौजूदगी में “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट” पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते के तहत किसी भी तीसरे देश द्वारा हमले को दोनों देशों पर हमला माना जाएगा।
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अमेरिका के साथ पाकिस्तान के बढ़ते संपर्क का हिस्सा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मुलाकात और संयुक्त राष्ट्र महासभा में शहबाज शरीफ द्वारा ट्रंप की प्रशंसा भी है। प्रधानमंत्री ने ट्रंप को 'शांति का पुरुष' बताया और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने की बात की। हालांकि, भारत के अनुसार कश्मीर में पाकिस्तान की कार्रवाइयों में ट्रंप या शरीफ की कोई सीधी भूमिका नहीं थी।
विश्लेषकों का मानना है कि पाकिस्तान दो नावों की सवारी कर रहा है। एक तरफ वह अमेरिका के साथ अपने राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को सुधारने का प्रयास कर रहा है, वहीं चीन के साथ अपने पारंपरिक रक्षा और रणनीतिक संबंधों को भी मजबूत बनाए रखना चाहता है। यह स्थिति पाकिस्तान की विदेश नीति की जटिलताओं को उजागर करती है, जिसमें वह स्थायित्व और वैश्विक समर्थन दोनों चाहता है।
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पाकिस्तान के इस प्रयास से स्पष्ट होता है कि देश किसी भी बड़े वैश्विक खिलाड़ी के साथ अपने रिश्तों को प्राथमिकता के आधार पर संतुलित करने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका के साथ आर्थिक और राजनीतिक लाभ पाने के बावजूद चीन को स्थायी और भरोसेमंद सहयोगी मानना, पाकिस्तान की रणनीति का एक अहम हिस्सा है।