

पाकिस्तान ने भारत की नौसेना से सामरिक संतुलन बनाने के लिए चीन से Z-9EC अटैक हेलीकॉप्टर खरीदे थे। लेकिन ये हेलीकॉप्टर अब खुद पाकिस्तान के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन चुके हैं। तकनीकी खामियों, खराब रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स की कमी के कारण ये एयरक्राफ्ट अब उड़ान भरने लायक भी नहीं रह गए हैं। इससे पाकिस्तान की नौसैनिक ताकत को गहरा झटका लगा है।
चीनी Z-9EC ASW हेलीकॉप्टर
New Delhi: पाकिस्तान ने चीन से Z-9EC हार्बिन हेलीकॉप्टर खरीदे थे, जिन्हें नौसेना की जुल्फिकार सीरीज की फ्रिगेट्स पर तैनात किया गया। इन हेलीकॉप्टर्स को एडवांस्ड रडार, डॉपलर नेविगेशन सिस्टम, सोनार और रडार अलर्ट रिसीवर से लैस किया गया ताकि भारत की ताकतवर नौसेना से मुकाबला किया जा सके। पाकिस्तान की मंशा थी कि ये हेलीकॉप्टर भारत के खिलाफ सामरिक संतुलन बनाने में सहायक होंगे।
अब उड़ान भरने लायक नहीं रहे हेलीकॉप्टर
हालांकि अब यही हेलीकॉप्टर पाकिस्तान के लिए चुनौती बन गए हैं। इन हेलीकॉप्टर्स के टेल रोटर ब्लेड में गंभीर तकनीकी खामी सामने आई है। यह हिस्सा हेलीकॉप्टर की दिशा नियंत्रित करता है और इसकी खराबी के चलते उड़ान के दौरान हादसे की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। यह खतरा युद्ध जैसे माहौल में और भी खतरनाक हो जाता है।
समुद्री वातावरण में घट रही है रोटर ब्लेड की उम्र
डिफेसा ऑनलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, हेलीकॉप्टर के मुख्य रोटर ब्लेड की आयु सामान्यतः 3000 घंटे होती है, लेकिन समुद्री वातावरण के चलते इनमें समय से पहले ही जंग लग गई। इससे उन्हें समय से पहले बदलना पड़ा, जो इसकी विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।
लैंडिंग के समय टायर फटना बना नई समस्या
2018 और 2019 के दौरान लैंडिंग के समय टायर फटने की कई घटनाएं भी सामने आईं। इन घटनाओं के पीछे ब्रेक डिस्ट्रीब्यूशन वाल्व की खामी को कारण बताया गया। यानी पाकिस्तान के ये पनडुब्बी रोधी हेलीकॉप्टर न केवल हवा में असुरक्षित हैं, बल्कि जमीन पर भी।
रखरखाव का भी नहीं हुआ वादा पूरा
जब 2006 में पाकिस्तान ने चीन से इन हेलीकॉप्टरों की खरीदारी की थी, तब चीन ने इनका रखरखाव और मरम्मत सुनिश्चित करने का वादा किया था। इसके लिए मेहरान नौसैनिक अड्डे पर एक विशेष रखरखाव केंद्र भी स्थापित किया गया। लेकिन वास्तविकता में, हेलीकॉप्टर्स की मरम्मत और स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति लगातार बाधित हो रही है।
रखरखाव में आ रही हैं ये दिक्कतें
1. स्पेयर पार्ट्स की समय पर आपूर्ति नहीं हो रही।
2. तकनीकी मरम्मत प्रक्रियाएं बेहद जटिल हैं।
3. प्रशिक्षित चीनी इंजीनियरों की उपलब्धता सीमित है।
4. रखरखाव पर होने वाला खर्च पाकिस्तान की क्षमता से बाहर जा रहा है।
भारत के पास कहीं बेहतर विकल्प
पाकिस्तान ने Z-9EC को भारत के मुकाबले में एक सामरिक हथियार के रूप में देखा था। लेकिन इसकी विफलता से भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। भारत के पास पहले से ही उन्नत पनडुब्बी रोधी और निगरानी क्षमताएं मौजूद हैं, जैसे कि P-8I Poseidon एयरक्राफ्ट, HAL Dhruv आधारित ASW हेलीकॉप्टर्स और Kamov KA-28 जैसे विकल्प।
क्या चीनी तकनीक पर भरोसा सही था?
Z-9EC की खराबी ने चीन से आयात किए गए रक्षा उपकरणों की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। पाकिस्तान ने सस्ते और तेजी से उपलब्ध हथियारों के लिए चीन का रुख किया, लेकिन अब वही हथियार उसकी सैन्य तैयारी को कमजोर कर रहे हैं। रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि चीन की रक्षा तकनीक में टिकाऊपन और विश्वसनीयता की भारी कमी है।