

दक्षिण कोरिया के सियोल स्थित एक प्रमुख अस्पताल में हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी का ट्रायल शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को काम के बोझ से राहत देना है। इस पहल के तहत सप्ताह में चार दिन काम और तीन दिन आराम दिया जा रहा है।
अब हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी (Img: Internet)
Seoul: पूरे हफ्ते काम करने के बाद हर कर्मचारी को एक दिन की छुट्टी की सख्त जरूरत होती है। आमतौर पर शुक्रवार के बाद शनिवार और रविवार का इंतजार सभी को रहता है, ताकि दो दिन आराम कर सकें। लेकिन अब दक्षिण कोरिया में एक नई पहल के तहत तीन दिन की छुट्टी का चलन शुरू हो गया है। यह पहल न केवल कर्मचारियों को मानसिक और शारीरिक राहत देती है, बल्कि उनके प्रदर्शन में भी सुधार ला रही है।
दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल स्थित सेवरेंस अस्पताल ने यह पहल शुरू की है। ‘अल जजीरा’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, अस्पताल में मेडिकल स्टाफ के काम के दबाव को कम करने और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से यह प्रयोग शुरू किया गया है। इस ट्रायल के तहत कर्मचारियों को सप्ताह में केवल चार दिन काम करना होता है और उन्हें तीन दिन की छुट्टी दी जाती है।
हालांकि यह योजना अभी पूरी तरह लागू नहीं की गई है और फिलहाल ट्रायल मोड पर है, लेकिन इसके परिणाम सकारात्मक सामने आए हैं।
इस प्रयोग के पीछे एक विशेष समझौता है, जो कर्मचारियों और प्रबंधन के बीच 2023 में हुआ था। इसके अंतर्गत कुछ कर्मचारियों को हर हफ्ते तीन दिन की छुट्टी दी जाती है, लेकिन इसके बदले उनके वेतन में 10 प्रतिशत की कटौती की जाती है।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस योजना के बाद कर्मचारियों की काम की गुणवत्ता में सुधार आया है। जहाँ पहले अनुभवी नर्सें नौकरी छोड़ने पर मजबूर थीं, अब उनकी रिज़ाइन रेट 19.5% से घटकर 7% रह गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कम काम के घंटे और पर्याप्त आराम से कर्मचारी ज़्यादा संतुलित और खुश रहते हैं।
अब हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी (Img: Internet)
OECD (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2024 में दक्षिण कोरिया के कर्मचारी औसतन 1,865 घंटे काम कर रहे हैं, जो विकसित देशों में छठे स्थान पर है। यह संख्या OECD द्वारा निर्धारित औसत 1,736 घंटों से काफी अधिक है। साउथ कोरियन कर्मचारी अपने पड़ोसी जापान के कर्मचारियों की तुलना में 248 घंटे ज्यादा काम करते हैं।
इस प्रयोग से यह साफ़ है कि ज़्यादा काम हमेशा ज़्यादा उत्पादकता की गारंटी नहीं देता। अगर काम और जीवन के बीच संतुलन बना रहे, तो कर्मचारी न केवल बेहतर काम करते हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रहते हैं। यह मॉडल आने वाले समय में अन्य देशों और कंपनियों के लिए भी एक प्रेरणा बन सकता है।