CPEC 2.0 से गहरी हुई चीन-पाकिस्तान साझेदारी, क्या भारत के लिए बनेगा सुरक्षा संकट?

पाकिस्तान और चीन ने अपनी आर्थिक साझेदारी को नया आयाम देते हुए CPEC 2.0 का ब्लूप्रिंट पेश किया। इसमें पांच नए कॉरिडोर जोड़े गए हैं और कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। भारत ने हमेशा इस प्रोजेक्ट का विरोध किया है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जिससे सुरक्षा और संप्रभुता को चुनौती है।

Post Published By: Sapna Srivastava
Updated : 5 September 2025, 1:10 PM IST
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New Delhi: दक्षिण एशिया में बदलते समीकरणों के बीच पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और चीन के प्रीमियर ली च्यांग की मुलाकात में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC 2.0) का ब्लूप्रिंट पेश किया गया। इस नए चरण में पांच अतिरिक्त कॉरिडोर जोड़े गए हैं, जिन्हें दोनों देशों ने अपनी ‘ऑल-वेदर पार्टनरशिप’ का विस्तार बताया है। यह पहल भारत के लिए नई रणनीतिक चुनौतियां खड़ी कर रही है क्योंकि प्रोजेक्ट का एक हिस्सा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है।

पाकिस्तान का आभार और नए समझौते

शरीफ ने मीटिंग के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और चीनी नेतृत्व का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि चीन ने हमेशा पाकिस्तान की संप्रभुता और विकास में अहम भूमिका निभाई है। शरीफ ने ग्वादर पोर्ट को पूरी तरह ऑपरेशनल बनाने, ML-1 रेलवे प्रोजेक्ट को जल्द लागू करने और कराकोरम हाईवे के री-अलाइनमेंट पर जोर दिया।

China-Pakistan partnership deepens (Img: Google)

चीन-पाकिस्तान साझेदारी गहरी (Img: Google)

दोनों देशों के बीच विज्ञान, आईटी, मीडिया, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में सहयोग को लेकर कई समझौतों और एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। बीजिंग में आयोजित B2B इन्वेस्टमेंट कॉन्फ्रेंस में 300 पाकिस्तानी और 500 चीनी कंपनियों ने हिस्सा लिया, जिससे व्यापारिक साझेदारी के नए अवसर सामने आए।

भारत की चिंताएं क्यों बढ़ीं?

भारत ने शुरू से ही CPEC प्रोजेक्ट का विरोध किया है। इसका कारण है कि यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन जैसे विवादित इलाकों से होकर गुजरता है। अब जब इसे CPEC 2.0 के रूप में और विस्तार दिया जा रहा है, तो भारत की संप्रभुता और सुरक्षा पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।

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भारत को आशंका है कि ग्वादर पोर्ट पर चीन की पकड़ मजबूत होने के बाद आने वाले समय में यह बंदरगाह चीनी सैन्य ठिकाने में बदल सकता है। इससे हिंद महासागर और अरब सागर में चीन की रणनीतिक मौजूदगी बढ़ेगी, जो भारत के लिए बड़ी चुनौती होगी।

बलूचिस्तान में विरोध

हालांकि पाकिस्तान और चीन इस प्रोजेक्ट को आर्थिक विकास की कुंजी मानते हैं, लेकिन बलूचिस्तान में इसका विरोध जारी है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि CPEC उनके संसाधनों पर कब्जे की कोशिश है और उन्हें इससे कोई फायदा नहीं मिल रहा। यही वजह है कि इस इलाके में असंतोष और हिंसक घटनाएं समय-समय पर सामने आती रहती हैं।

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CPEC प्रोजेक्ट का महत्व

CPEC की शुरुआत 2015 में हुई थी। करीब 2442 किमी लंबे इस कॉरिडोर का उद्देश्य चीन के शिंजियांग प्रांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है। चीन पहले ही ग्वादर पोर्ट पर 46 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च कर चुका है। इस प्रोजेक्ट से चीन को खाड़ी देशों से तेल और गैस की आपूर्ति कम समय और कम लागत में मिल सकेगी।

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