

हरियाणा में आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले ने राज्य की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार को लेकर मामला अभी भी रुका हुआ है। आगे की अपडेट जानने के लिए पूरी रिपोर्ट पढ़ें
आईपीएस वाई पूरन कुमार की मौत पर सियासी संग्राम
Haryana/New Delhi: हरियाणा में आईपीएस वाई पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले ने राज्य की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था को हिला कर रख दिया है। एक वरिष्ठ अधिकारी की मौत के बाद जहां पूरे प्रदेश में शोक की लहर है, वहीं पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार में देरी को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, इस देरी के पीछे नाम आ रहा है आम आदमी पार्टी के बठिंडा ग्रामीण से विधायक अमित रतन कोटफत्ता का, जो मृतक अधिकारी वाई पूरन कुमार के सगे साले बताए जा रहे हैं।
एक ओर जहां कैबिनेट मंत्रियों और मुख्यमंत्री कार्यालय के अधिकारियों द्वारा न्याय का भरोसा दिलाने के बाद अमनीत पी कुमार कहीं न कहीं नरमी बरत रही हैं, तो वहीं दूसरी ओर उनके सगे भाई यानी वाई पूरन कुमार के साले अमित रतन कोटफत्ता पहले डीजीपी व एसपी के विरुद्ध एफआइआर दर्ज कर उन्हें निलंबित व गिरफ्तार करने की जिद पर अड़े हुए हैं। यही कारण है कि परिवार की ओर से शव का पोस्टमार्टम टाल दिया गया है और अंतिम संस्कार अब तक नहीं हो सका है।
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वाई पूरन कुमार की पत्नी जो स्वयं एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी हैं ने साफ शब्दों में कहा है कि यह केवल आत्महत्या नहीं, बल्कि एक सुनियोजित मानसिक उत्पीड़न का परिणाम है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पति को मानसिक रूप से इतना प्रताड़ित किया गया कि उन्होंने जान देने का फैसला कर लिया। परिजनों की मांग है कि जब तक दोषियों पर कार्रवाई नहीं होती, वे न तो पोस्टमार्टम कराएंगे और न ही अंतिम संस्कार करेंगे।
परिवार का एक और आग्रह है कि मृतक अधिकारी की बड़ी बेटी को एक्स-ग्रेशिया पॉलिसी के तहत डीएसपी बनाया जाए, ताकि उनके योगदान और बलिदान को सम्मान मिल सके। यह मांग फिलहाल विचाराधीन है।
इस पूरे घटनाक्रम ने हरियाणा सरकार को असमंजस में डाल दिया है। एक तरफ पुलिस और प्रशासन पर गंभीर आरोप हैं, दूसरी ओर पीड़ित परिवार न्याय की लड़ाई में अडिग है। विपक्ष इस मामले को लेकर हमलावर है, जबकि सरकार ने जांच का भरोसा जरूर दिलाया है, लेकिन कार्रवाई में देरी से स्थिति और गंभीर हो गई है।
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यह सवाल अब हर उस व्यक्ति के मन में है जो वाई पूरन कुमार की मौत से आहत है। पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार का न होना, केवल एक पारिवारिक पीड़ा नहीं, बल्कि सिस्टम की सुस्ती और राजनीतिक टकराव की गहरी निशानी बन गया है। अब देखना यह होगा कि क्या सरकार परिवार की मांगें मानकर न्याय दिला पाएगी या फिर यह मामला भी एक फाइल बनकर बंद हो जाएगा।