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ICRA की रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2026 में एयरलाइंस के घाटे का अनुमान 95-105 अरब रुपये का बताया गया। ईंधन की बढ़ती कीमत और कमजोर रुपया संकट को और गहरा रहे हैं। यात्रियों को हवाई किराए में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय रूट्स पर बढ़ी व्यस्तता
New Delhi: भारतीय एयरलाइंस कंपनियों के लिए एक चिंताजनक खबर सामने आई है। रेटिंग एजेंसी ICRA ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में वित्तीय वर्ष 2026 के लिए भारतीय एयरलाइंस कंपनियों के शुद्ध वित्तीय घाटे का अनुमान पेश किया है। रिपोर्ट के अनुसार, अगले वित्तीय वर्ष में एयरलाइंस कंपनियों का कुल घाटा 95 से 105 अरब रुपये के बीच रहने की संभावना है। यह आंकड़ा वित्तीय वर्ष 2025 के 55 अरब रुपये के अनुमानित घाटे की तुलना में लगभग दोगुना है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस बढ़ते घाटे का असर सीधे तौर पर यात्रियों पर पड़ेगा। एयरलाइंस कंपनियों को वित्तीय संकट से बचाने के लिए हवाई किराया बढ़ाने की संभावना है। इसके अलावा, सुविधाओं में कटौती और सेवाओं में सीमित बदलाव की भी संभावना जताई जा रही है। वित्तीय वर्ष 2026 के लिए यह रिपोर्ट भारतीय एयरलाइंस उद्योग के लिए गंभीर संकेत देती है।
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घरेलू हवाई यात्रा की संख्या में भी गिरावट देखी जा रही है। सितंबर 2024 में घरेलू हवाई यात्रियों की संख्या 130.3 लाख थी, जबकि सितंबर 2025 में यह घटकर 128.5 लाख रह गई। यानी, घरेलू यात्रियों में करीब 1.4 प्रतिशत की कमी आई है। अगस्त 2025 में भी घरेलू उड़ानों में कमी देखी गई थी। इस गिरावट के पीछे ईंधन की बढ़ती कीमत, उच्च हवाई किराया और बदलते यात्रा पैटर्न को जिम्मेदार माना जा रहा है।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
हालांकि, घरेलू उड़ानों की धीमी गति के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर भारतीय एयरलाइंस के लिए हालात अपेक्षाकृत बेहतर हैं। अगस्त 2025 में लगभग 29.9 लाख लोगों ने अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरी, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 7.8 प्रतिशत अधिक है। विशेषज्ञों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय रूट्स से मिलने वाली अच्छी आय एयरलाइंस को घाटे को कुछ हद तक कम करने में मदद कर सकती है।
ICRA की रिपोर्ट में एयरलाइंस कंपनियों के बढ़ते घाटे के कारणों पर भी प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट के अनुसार, एयरलाइंस की ऑपरेशनल कॉस्ट में सबसे बड़ा असर विमान ईंधन यानी एविएशन टरबाइन फ्यूल (ATF) की बढ़ती कीमतों से पड़ा है। सिर्फ अक्टूबर 2025 में ही ATF की कीमतों में 3.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
वहीं, डॉलर के लगातार मजबूत होने से एयरलाइंस कंपनियों के वित्तीय दबाव में वृद्धि हुई है। विमान के लिए आवश्यक कल-पुर्जे, किराया और अन्य उपकरणों का भुगतान डॉलर में होता है। रुपया कमजोर होने से कंपनियों को इन खर्चों के लिए ज्यादा भारतीय रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। इन सभी कारकों ने एयरलाइंस के वित्तीय घाटे को और बढ़ा दिया है।
जानकारों का कहना है कि एयरलाइंस कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है लागत और आय के बीच संतुलन बनाए रखना। बढ़ती ऑपरेशनल कॉस्ट, ईंधन की कीमत और कमजोर घरेलू मांग के बीच एयरलाइंस कंपनियों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना होगा। किराए बढ़ाने के अलावा एयरलाइंस कंपनियों को खर्च कम करने और ऑपरेशनल दक्षता बढ़ाने पर भी ध्यान देना होगा।
यात्रियों के लिए यह चिंता का विषय है। बढ़ते हवाई किराए से घरेलू यात्रियों पर दबाव बढ़ सकता है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए लागत बढ़ने का असर भी दिखाई देगा। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर एयरलाइंस कंपनियां समय रहते सुधारात्मक कदम नहीं उठाती हैं, तो आने वाले वर्षों में हवाई यात्रा महंगी और कम सुलभ हो सकती है।