Bihar Polls: बिहार चुनाव से पहले मचा हलचल, इस सीट का समीकरण है बेहद दिलचस्प

बिहार चुनाव नजदीक आते ही सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। खगड़िया की अलौली सीट राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। जातीय समीकरणों, गठजोड़ों और विकास की मांगों के बीच यह सीट जनता की उम्मीदों और राज्य की राजनीति का अहम केंद्र बनकर उभरी है।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 2 October 2025, 1:07 PM IST
google-preferred

Bihar Election: जैसे-जैसे बिहार चुनाव करीब आ रहा है, सियासी हलचलें तेज होती जा रही हैं। गठजोड़ों की गूंज, दल बदल की दस्तक और जातीय समीकरणों की जोड़-घटाव के बीच राज्य की कुछ विधानसभा सीटें एक बार फिर सुर्खियों में हैं। खगड़िया जिले की अलौली विधानसभा सीट उन्हीं में से एक है। एक ऐसी सीट जो न केवल राजनीतिक दलों के लिए चुनौती है, बल्कि जनता की बुनियादी ज़रूरतों और उम्मीदों का आइना भी है।

जातीय नहीं, समीकरणों की प्रयोगशाला है अलौली

1962 में गठित अलौली सीट, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, लेकिन इसे केवल दलित राजनीति तक सीमित कर देना इसकी राजनीतिक गहराई को कम आंकने जैसा होगा। यहां के जातीय समीकरण इतने बहुपरतीय हैं कि कोई भी राजनीतिक दल सिर्फ एक जाति के सहारे सत्ता तक नहीं पहुंच सकता।

  • 65,000 मुसहर (सदा) वोटर, जिनकी राजनीतिक चेतना और एकजुटता हाल के वर्षों में निर्णायक बनती जा रही है
  • 45,000 यादव मतदाता, जो लंबे समय से RJD का कोर वोटबैंक रहे हैं
  • 15,000 मुस्लिम वोटर, जो चुनाव में often "किंगमेकर" की भूमिका में होते हैं
  • कोयरी-कुर्मी समुदाय (35,000) और अन्य पिछड़ी जातियाँ
  • अगड़ी जातियों के 8,000 वोटर, और
  • लगभग 70,000 अन्य समुदाय, जिनमें छोटे सामाजिक समूह शामिल हैं

यह जातीय बनावट एक जटिल गणित बनाती है, जहां सिर्फ जाति नहीं, बल्कि गठबंधन की राजनीति, सामाजिक संवाद और स्थानीय मुद्दे जीत-हार तय करते हैं।

समाजवादी राजनीति का गढ़ रहा है अलौली

कांग्रेस भले ही शुरुआती वर्षों (1962, 1967, 1972, 1980) में यहां सफल रही, लेकिन इस सीट पर असली पकड़ समाजवादी विचारधारा की रही है। अब तक 11 बार समाजवादी दलों ने यहां जीत दर्ज की है, जो इस बात का प्रमाण है कि अलौली केवल वोटों की लड़ाई नहीं, बल्कि विचारधारा की ज़मीन भी रहा है।

  • राजद, जेडीयू, लोजपा — दो-दो बार विजेता
  • जनता पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी और लोकदल — एक-एक बार सफल

2020 में राजद के रामवृक्ष सदा ने जेडीयू की साधना देवी को कड़े मुकाबले में हराया, जिसमें चिराग पासवान के अलगाव ने एक निर्णायक मोड़ दिया। मतों का बिखराव साफ दिखा, जिससे RJD को सीधा फायदा हुआ।

अलौली की ज़मीन पर विकास की प्यास अधूरी

राजनीतिक विश्लेषण से इतर, अगर जनता के नज़रिए से देखा जाए, तो अलौली आज भी उन बुनियादी सुविधाओं से जूझ रहा है, जिन्हें लेकर हर चुनाव में बड़े-बड़े वादे होते हैं।

  • सड़क और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं पूरी तरह सुलभ नहीं
  • बाढ़ और कटाव हर साल किसानों की ज़मीन और मेहनत बहा ले जाती है
  • स्वास्थ्य सेवाएं नदारद, गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए लोगों को शहरों का रुख करना पड़ता है
  • रोजगार की भारी कमी, जिसके कारण युवाओं का पलायन एक आम हकीकत बन गया है

यह सब एक ऐसे क्षेत्र की तस्वीर पेश करता है, जो राजनीतिक रूप से जागरूक है लेकिन विकास की दृष्टि से उपेक्षित।

2025 का चुनाव: मुद्दों का मुकाबला या समीकरणों का खेल?

2025 के विधानसभा चुनाव में अलौली फिर से एक टेस्ट केस बनेगा  क्या यहां की राजनीति फिर जातीय ध्रुवीकरण और गठबंधन की चालों में उलझेगी या विकास, रोज़गार और पुनर्वास जैसे असली मुद्दे चुनावी बहस के केंद्र में होंगे?

यह तय करना राजनीतिक दलों के साथ-साथ जनता की भी जिम्मेदारी है। अलौली की कहानी सिर्फ एक विधानसभा सीट की नहीं, बल्कि बिहार की राजनीतिक, सामाजिक और विकासशील स्थिति की प्रतीक है। जहां जाति एक हकीकत है, लेकिन विकास एक जरूरत, और बदलाव की चाह एक मजबूत भावनात्मक शक्ति।

 

 

Location : 
  • Bihar

Published : 
  • 2 October 2025, 1:07 PM IST