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बिहार की नई सरकार में शामिल 26 मंत्रियों का जातीय समीकरण काफी संतुलित दिखता है। राजपूत, दलित, कुशवाहा, यादव, भूमिहार, मुस्लिम और ओबीसी समूहों को प्रतिनिधित्व मिला है। सरकार ने सामाजिक संतुलन और व्यापक जातीय भागीदारी को ध्यान में रखते हुए कैबिनेट का गठन किया है।
बिहार कैबिनेट का जातीय समीकरण
Patna: बिहार के नए मंत्रिमंडल के गठन के साथ ही राज्य की राजनीति में सबसे ज्यादा चर्चा जातीय संतुलन को लेकर हो रही है। कुल 26 मंत्रियों की टीम में सरकार ने अलग-अलग जातीय समूहों को प्रतिनिधित्व देकर सामाजिक और राजनीतिक गणित को साधने की कोशिश की है। यह समीकरण इस बात का संकेत है कि सरकार का फोकस सिर्फ सत्ता संतुलन पर नहीं, बल्कि सामाजिक विविधता को साथ लेकर चलने पर है।
राजपूत समुदाय को मंत्रिमंडल में 4 स्थान मिले हैं। बिहार की राजनीति में राजपूत हमेशा एक मजबूत और प्रभावशाली जातीय वर्ग रहा है, ऐसे में इस समुदाय के नेताओं को सरकार में शामिल करना राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। यह सरकार की रणनीति का हिस्सा है, जिससे ऊपरी जातियों में अपनी पकड़ मजबूत रखी जा सके।
वैश्य समुदाय के 2 मंत्रियों को शामिल किया गया है। व्यापार और आर्थिक गतिविधियों से जुड़े इस वर्ग की राजनीतिक भागीदारी कम होती थी, लेकिन नई सरकार ने उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देकर संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया है।
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भूमिहार समुदाय को भी 2 स्थान मिले हैं। यह समुदाय बिहार की राजनीति में उच्च सामाजिक प्रभाव रखता है। सरकार का यह फैसला स्पष्ट करता है कि उसने सामाजिक समीकरण को ध्यान में रखते हुए ऊपरी जातियों के बीच अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने पर ध्यान दिया है।
यादव समुदाय बिहार की सबसे बड़ी और राजनीतिक रूप से सक्रिय जातियों में से एक है। उन्हें 2 स्थान मिलना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण समीकरणों को संतुलित करने का हिस्सा माना जा रहा है। यादव वोट बैंक के महत्व को देखते हुए यह प्रतिनिधित्व राजनीतिक रूप से अहम है।
ब्राह्मणों को मंत्रिमंडल में 1 सीट दी गई है। यह संख्या कम होने के बावजूद सरकार ने इस वर्ग को भी हिस्सा देकर संतुलन कायम रखा है।
मुस्लिम समुदाय से 1 मंत्री को शामिल किया गया है। बिहार में मुस्लिम आबादी 16 प्रतिशत के करीब है, ऐसे में इस समुदाय को प्रतिनिधित्व देना सरकार की समावेशी राजनीति को दर्शाता है।

कायस्थ समुदाय के 1 नेता को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। यह समुदाय शिक्षित और प्रशासनिक वर्ग के रूप में जाना जाता है और सरकार का यह फैसला सामाजिक संतुलन को और मजबूत करता है।
मल्लाह या निषाद समुदाय को 2 मंत्रियों के रूप में प्रतिनिधित्व मिला है। यह ओबीसी समूह सामाजिक रूप से ऊभरता हुआ वर्ग है और सरकार द्वारा इसे बढ़ती राजनीतिक हिस्सेदारी देने का मकसद सामाजिक समीकरण में संतुलन बनाना है।
कुशवाहा समुदाय को 3 सीटें दी गई हैं, जो ओबीसी श्रेणी में एक मजबूत राजनीतिक वर्ग माना जाता है। इस समुदाय को मजबूत प्रतिनिधित्व देकर सरकार ने अपने जातीय आधार को और विस्तार देने का प्रयास किया है।
सबसे बड़ा प्रतिनिधित्व दलित समुदाय को 5 मंत्रियों के रूप में मिला है। सरकार का यह फैसला सामाजिक न्याय और समावेशी शासन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह बिहार की राजनीति में दलितों की बढ़ती भूमिका और उनकी स्थिति को भी दर्शाता है।
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कुर्मी समुदाय, जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अपना जातीय वर्ग है, को 2 स्थान दिए गए हैं। यह समुदाय जेडीयू का मजबूत सामाजिक आधार माना जाता है।
कहार समुदाय को 1 मंत्री के रूप में प्रतिनिधित्व मिला है। यह सरकार के व्यापक सामाजिक संतुलन का हिस्सा है।
सूड़ी समुदाय से भी 1 मंत्री को शामिल किया गया है। यह ग्रामीण और अति पिछड़े वर्गों में सरकार की पकड़ को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।