संघ का दबाव या नेतृत्व की कमी? दो साल बाद भी BJP को नहीं मिला नया मुखिया, प्रदेश अध्यक्षों के चयन में भी देरी

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संगठनात्मक ढांचे में पहली बार ऐसा हो रहा है जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हुए दो साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी है।

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 2 July 2025, 1:21 PM IST
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Lucknow: भारतीय जनता पार्टी (BJP) के संगठनात्मक ढांचे में पहली बार ऐसा हो रहा है जब राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल खत्म हुए दो साल बीत चुके हैं, लेकिन अब तक नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी है। जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो गया था, लेकिन उसके बाद उन्हें कार्यवाहक रूप में आगे भी जिम्मेदारी सौंपी गई। अब 2025 का आधा साल बीत चुका है और पार्टी का शीर्ष संगठनात्मक पद अधर में लटका है।

यह स्थिति भारतीय राजनीति में एक अनोखा उदाहरण बन गई है। भाजपा जैसी अनुशासित और कैडर-बेस्ड पार्टी में जहां समय पर संगठनात्मक फेरबदल की परंपरा रही है, वहीं अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन में हो रही देरी कई सवाल खड़े कर रही है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, शीर्ष नेतृत्व के बीच कुछ अहम मुद्दों पर सहमति नहीं बन पा रही है।

जेपी नड्डा की कुर्सी पर कौन बैठेगा?

जेपी नड्डा ने संगठन को लंबे समय तक मजबूती दी, लेकिन अब भाजपा को एक नए चेहरे की जरूरत है, जो अगले लोकसभा चुनाव की रणनीति को नया आकार दे सके। पार्टी के भीतर कई नाम चर्चा में हैं – जैसे गृह मंत्री अमित शाह, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, ओम माथुर, भूपेंद्र यादव, और विनय सहस्त्रबुद्धे। लेकिन इनमें से किसी एक नाम पर अब तक अंतिम निर्णय नहीं हो पाया है।

भाजपा सूत्रों का मानना है कि पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह किसी ऐसे नेता को अध्यक्ष पद पर बैठाना चाहते हैं जो संगठन में संतुलन बनाए रखे और अगले पांच वर्षों के लिए पार्टी को ग्रासरूट स्तर पर मजबूत करे। लेकिन जातीय समीकरण, राज्यीय प्रतिनिधित्व और संघ के विचारों के बीच यह चयन मुश्किल हो गया है।

प्रदेश अध्यक्षों के चयन में भी है रुकावट

सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष ही नहीं, बल्कि कई प्रदेशों में भाजपा अब तक नए प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा नहीं कर पाई है। बिहार, राजस्थान, कर्नाटक, उत्तराखंड जैसे राज्यों में पार्टी संगठन नेतृत्व विहीन या कार्यवाहक व्यवस्था में चल रहा है। इससे न सिर्फ संगठनात्मक सक्रियता कम हो रही है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों की रणनीति भी प्रभावित हो रही है।

संघ और पार्टी के बीच समन्वय पर सवाल

इस बार संघ (RSS) और पार्टी के बीच भी समन्वय को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि संघ की पसंद और पीएम मोदी की रणनीति में थोड़ा अंतर है। संघ चाहता है कि अध्यक्ष पद पर एक विचारधारा से जुड़ा ‘संगठनजीवी’ नेता आए, जबकि पीएम मोदी ज्यादा राजनीतिक रणनीतिकार को प्राथमिकता देना चाहते हैं।

निष्कर्ष: क्या पार्टी में आंतरिक खींचतान?

भाजपा की यह स्थिति यह इशारा देती है कि पार्टी के भीतर इस वक्त बड़े स्तर पर अंतर्विरोध मौजूद हैं। हालांकि, भाजपा प्रवक्ता इस पर खुलकर कुछ नहीं कह रहे, लेकिन अंदरखाने चल रही रणनीति और वार्ताओं से यह तय है कि जल्द ही संगठनात्मक बदलाव होंगे – लेकिन कब, यह अब भी एक बड़ा सवाल बना हुआ है। क्या 2024 में भारी बहुमत से जीतने वाली पार्टी 2025 में संगठनात्मक नेतृत्व तय नहीं कर पा रही? इस सवाल का जवाब फिलहाल समय के गर्भ में छिपा है।

कैसे चुना जाता है बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का राष्ट्रीय अध्यक्ष केवल एक पद नहीं, बल्कि पार्टी की विचारधारा, संगठन और चुनावी रणनीति का मुख्य चालक होता है। इस पद पर बैठने वाला व्यक्ति न सिर्फ पार्टी के संगठनात्मक कामकाज की निगरानी करता है, बल्कि प्रधानमंत्री और वरिष्ठ मंत्रियों के साथ समन्वय भी बनाता है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष कैसे चुना जाता है, और इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भूमिका क्या होती है।

भाजपा अध्यक्ष चुने जाने की प्रक्रिया

 चुनाव या निर्विरोध चयन: भारतीय जनता पार्टी के संविधान के मुताबिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चयन पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और परिषद् के चुनाव से होता है। हालांकि, यह चुनाव अक्सर औपचारिक होता है क्योंकि आमतौर पर नेतृत्व के निर्देश पर एक ही नाम सामने आता है, और उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिया जाता है।

संगठनात्मक ढांचा: पार्टी के 36 से ज्यादा संगठित क्षेत्रीय और प्रदेश इकाइयाँ होती हैं। प्रत्येक इकाई से प्रतिनिधि चुनकर राष्ट्रीय परिषद बनाई जाती है। इसी परिषद में अध्यक्ष के लिए नाम प्रस्तावित होता है और वही वोटिंग या सहमति से अध्यक्ष तय करती है।

 कार्यकाल और उम्र: भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है और एक ही व्यक्ति अधिकतम दो कार्यकाल तक इस पद पर रह सकता है। हालांकि विशेष परिस्थितियों में यह नियम बदला भी जा सकता है।

RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की भूमिका: भाजपा और आरएसएस के रिश्ते केवल वैचारिक ही नहीं, बल्कि सांगठनिक भी हैं। भाजपा, संघ की राजनीतिक शाखा मानी जाती है। इसलिए पार्टी के बड़े फैसलों में आरएसएस की सहमति या सलाह को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

 ‘संघ की पसंद’ मायने रखती है: अध्यक्ष पद पर कौन बैठेगा, इस पर संघ की अनौपचारिक सहमति अक्सर ली जाती है। खासकर तब जब पार्टी किसी कठिन राजनीतिक दौर से गुजर रही हो या नेतृत्व परिवर्तन आवश्यक हो।

संगठन में संतुलन बनाए रखना: संघ यह सुनिश्चित करता है कि भाजपा का अध्यक्ष ऐसा हो जो संघ के विचारों को आत्मसात करता हो, जमीनी कार्यकर्ताओं से जुड़ा हो और संगठन को मजबूत बनाए। कई बार संघ के वरिष्ठ प्रचारकों को भी भाजपा अध्यक्ष बनाया गया है (जैसे नड्डा और गडकरी, जो संघ से जुड़े रहे हैं)।

निर्णायक लेकिन पर्दे के पीछे: आरएसएस सीधे हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन 'मार्गदर्शक' की भूमिका में वह न केवल चर्चा करता है, बल्कि अंतिम नाम पर सहमति भी देता है।

क्या मोदी-शाह की पसंद और संघ की सोच में फर्क होता है?

बीते वर्षों में यह देखने को मिला है कि पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की प्राथमिकता एक राजनीतिक रणनीतिकार की होती है, जो चुनावी जीत को प्राथमिकता दे। वहीं संघ की सोच ज्यादा संगठन-केंद्रित होती है। यही कारण है कि कई बार दोनों पक्षों में नामों को लेकर चर्चा लंबी चलती है और देरी होती है।

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