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अवैध खनन और सुरक्षा उल्लंघन को लेकर खान सुरक्षा महानिदेशालय (DGMS) पर गंभीर सवाल उठे हैं। प्रकृति संरक्षण कार्यकर्ता निर्भय चौधरी ने बिल्ली मरकुंडी समेत कई खदानों में मानकों के विपरीत हो रहे खनन की शिकायत दर्ज कराई है। कृष्णा माइनिंग में मजदूरों की मौत ने मामले को और गंभीर बना दिया है।
सोनभद्र में खनन सुरक्षा पर सवाल
Sonbhadra: सोनभद्र जिले में अवैध खनन गतिविधियों और सुरक्षा मानकों के उल्लंघन को लेकर एक बार फिर खान सुरक्षा महानिदेशालय (DGMS) की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं। प्रकृति संरक्षण के क्षेत्र में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता निर्भय चौधरी ने बिल्ली मरकुंडी, डाला और आसपास की 4-5 खदानों में चल रही अनियमितताओं के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हुए गहन जांच की मांग की है। क्षेत्र में हाल ही में हुए हादसों ने इन आरोपों को और ज्यादा संवेदनशील बना दिया है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, कुछ ही समय पहले बिल्ली मरकुंडी में स्थित कृष्णा माइनिंग में हुए दर्दनाक हादसे में सात मजदूरों की मौत ने पूरे सोनभद्र ही नहीं, बल्कि प्रदेश को झकझोर कर रख दिया था। निर्भय चौधरी का कहना है कि यह हादसा केवल लापरवाही नहीं, बल्कि सुरक्षा नियमों की खुली अवहेलना का नतीजा था।
निर्भय चौधरी के अनुसार DGMS के नियम साफ तौर पर कहते हैं कि ब्लास्टिंग के लिए केवल माइनिंग मेट, माइनिंग मैनेजर और ब्लास्टर को ही विस्फोटक सामग्री दी जा सकती है। DGMS की टीमें जब भी निरीक्षण करती हैं, तो इन्हीं के दस्तावेज देखती हैं। लेकिन शिकायतकर्ता ने सवाल उठाया है कि जिन खदानों पर 22/3 का प्रतिबंध लगा हुआ है, वे आखिर कैसे संचालित हो रही हैं। उनका कहना है कि प्रतिबंध वाली खदानों में कार्य तुरंत रोका जाना चाहिए और विस्फोटक सप्लायरों की भी जांच कर जरूरी कार्रवाई होनी चाहिए।
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निर्भय चौधरी का दावा है कि क्षेत्र में लगभग 60% खदानें खतरे की श्रेणी में हैं। बिल्ली मरकुंडी और डाला क्षेत्रों में संचालक बेंच बनाने के नियमों का पालन नहीं करते, जिसके कारण ये खदानें ‘मौत के कुएं’ बन चुकी हैं। छोटे आकार की खदानों में जहां बेंच बनाना संभव नहीं, वहां पट्टा ही नहीं दिया जाना चाहिए था।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि श्री स्टोन नामक खदान पर 22/3 प्रतिबंध के बावजूद संचालन जारी रहा और प्रतिबंध के दस दिन बाद ही वहां एक मजदूर की मौत हो गई। बाद में मामले को कथित तौर पर टिप्पर से धक्का लगने की घटना बताकर दबाने की कोशिश हुई।
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इसी खदान के पास कृष्णा माइनिंग में हुए बड़े हादसे ने मामला और गंभीर बना दिया। चौधरी का कहना है कि DGMS अधिकारी मौके पर आते तो हैं, लेकिन जांच के बाद भी अवैध गतिविधियां और खतरनाक कार्य प्रणाली जारी रहती है, जो कई सवाल खड़े करती है। सबसे गंभीर आरोप अत्यधिक विस्फोटक उपयोग को लेकर है।
निर्भय चौधरी ने बताया कि जह एक खदान में 50 से 100 किलोग्राम विस्फोटक की अनुमति है, वहीं कई खदानों में 500 किलोग्राम तक विस्फोटक इस्तेमाल किया जा रहा है। यह न केवल खदान क्षेत्र को असुरक्षित बनाता है, बल्कि पर्यावरण पर भी भारी प्रभाव डाल रहा है। आसपास के गांवों में धूल और कंपन की वजह से लोगों में सांस संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं।
उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि खान सुरक्षा सप्ताह का आयोजन लग्जरी होटलों में क्यों किया जाता है। यह कार्यक्रम खदान स्थलों पर होना चाहिए ताकि मजदूरों को सीधे सुरक्षा प्रशिक्षण मिल सके। हाल ही में रॉबर्ट्सगंज में हुए ऐसे आयोजन का खर्च क्रेशर एसोसिएशन द्वारा वहन किए जाने पर भी उन्होंने आपत्ति जताई। फिलहाल, स्थानीय लोग और सामाजिक संगठन इस मामले में कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।