केशभान राय: आजादी के दीवाने से जनसेवा के पुजारी तक, जानिये गोरखपुर की माटी के सपूत की अनूठी गाथा

गोरखपुर जनपद के गोपलापुर गांव में जन्मे स्वतंत्रता सेनानी और उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व उप शिक्षा मंत्री केशभान राय का जीवन त्याग, सादगी और राष्ट्रसेवा की अनुपम मिसाल रहा है। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई से लेकर जनकल्याण तक अपने जीवन को पूरी तरह समर्पित कर दिया। आईये जानते हैं उनके बारे में कुछ अनकहीं बातें

Gorakhpur: सादा जीवन, उच्च विचार और राष्ट्रसेवा को जीवन का ध्येय बनाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व उप शिक्षा मंत्री केशभान राय का जीवन आज भी प्रेरणा का स्रोत है। 2 सितंबर 1916 को गोरखपुर जिले के गोपलापुर गांव में जन्मे राय साहब ने न सिर्फ आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई बल्कि आजादी के बाद भी जनसेवा को अपना लक्ष्य बनाए रखा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, शिक्षा के प्रति गहरी लगन रखने वाले राय साहब ने 1939 में "आनंद विद्यापीठ" की स्थापना की, जहां बच्चों को पढ़ाई के साथ चरखा कातना, करघा चलाना और लघु उद्योगों का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस विद्यालय से गरीब छात्रों की फीस जुटाने के लिए उत्पाद बेचे जाते थे। राष्ट्रीय भावना और आदर्श नागरिकता का पाठ यहां का मुख्य उद्देश्य था।

महात्मा गांधी के विचारों से ली प्रेरणा

महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर राय साहब ने अंग्रेजी हुकूमत का बहिष्कार किया। 1942 के आंदोलन में उन्होंने साथियों के साथ टेलीफोन के तार काट दिए, जिसके चलते अंग्रेज सरकार ने उनका घर जला दिया और परिवार के सदस्यों को जेल भेज दिया। वे खुद कई बार गिरफ्तार हुए और लंबे समय तक जेल में रहे।

कैबिनेट में बने उप शिक्षा मंत्री

आजादी के बाद 1948 में जिला परिषद सदस्य चुने गए। 1952 में कांग्रेस के टिकट पर बांसगांव विधानसभा से और 1957 व 1962 में मगहर-सहजनवां क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए। 1962 में चंद्रभानु गुप्ता की कैबिनेट में उप शिक्षा मंत्री बने। 1976 के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया।

जीवनभर नहीं की शादी

जीवनभर अविवाहित रहने वाले केशभान राय ने कहा, "गुलाम देश में रहकर न शादी करूंगा, न जूता पहनूंगा।" आजादी के बाद जूता तो पहना, मगर शादी का व्रत निभाया। उनका परिधान सदैव धोती, कुर्ता, जैकेट और गांधी टोपी रहा। राजनीतिक पेंशन और सहायता राशि जरूरतमंदों में बांट देना उनकी आदत थी।

कैंसर के बाद भी नहीं मानी हार

कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी, परंतु 12 फरवरी 1991 को अपने पैतृक गांव गोपलापुर में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके जीवन की सबसे बड़ी पहचान रही—त्याग, सादगी और अडिग देशभक्ति। राय साहब का जीवन इस बात का उदाहरण है कि सच्ची राजनीति पद और पुरस्कार के लिए नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए होती है।

Location : 
  • Gorakhpur

Published : 
  • 10 August 2025, 8:57 AM IST