

ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले कांवडिए की सभी कामन भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं। क्या आपको पता है कि सबसे पहले कांवड़ यात्रा किसने की थी? भगवान राम और भगवान परशुराम का क्या है संबंध..जानें पूरी कहानी
सबसे पहले कांवड़ यात्रा किसने की थी
बागपत: 11 जुलाई को सावन का महीना शुरू हो रहा है। यह महीना महादेवा का सबसे प्रिय महीना है। कावड़ा यात्रा के दौरान गंगा और अन्य पवित्र नदियों से शिवभक्त कांवड़ उठाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।
डाइनामाइट न्यूज संवाददाता के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि कांवड़ यात्रा करने वाले कांवडिए की सभी कामन भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं।
अलग-अलग मान्यताएं
जानकारी के मुताबिक, बता दें कि कांवड़ यात्रा को लेकर विद्वानों की एक मत नहीं है। दरअसल, अलग-अलग क्षेत्र में इसकी अलग-अलग मान्यताएं हैं। कुछ का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ यात्रा की थी। ऐसेा कहा जाता है कि परशुराम जी ने गांगा जी का पवित्र जल गढ़मुक्तेश्वर से लाकर यूपी के बागपत में स्थित पुरा महादेव पर चढ़ाया था। उसी दौरान से लाखों भक्तों जल लाकर पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं।
सबसे पहला कांवड़िया
वहीं इस पर कुछ धार्मिक मान्याता है। ऐसा कहा जाता है कि सबसे पहला कांवड़िया प्रभु राम को माना जाता है। दरअसल, बिहार के सुलतानगंज से गंगाजल भरकर बैद्यनाथ धाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।कुछ विद्वान श्रवण कुमार को पहला कांवड़िया मानते हैं। उनका मानना है कि श्रवण कुमार त्रेता युग में अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बिठाकर हरिद्वार लाए थे और उन्हें गंगा स्नान कराया था। इतना ही नहीं, लौटते समय वे गंगाजल भी अपने साथ ले गए थे।
कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन
पुराणों में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा की परंपरा समुद्र मंथन से जुड़ी है। जब देवताओं और दानवों ने अमृत के लिए समुद्र मंथन किया था। इस दौरान समुद्र से विष भी निकला था। भोलेनाथ ने इस विष को पी लिया था। इससे भगवान शंकर का कंठ नीला पड़ गया था। इसीलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ा। ने महादेव को विष के नकारात्मक प्रभाव से मुक्त करने के लिए भगवान शिव के परम भक्त रावण कांवड़ से जल भरकर पुरा महादेव स्थित शिव मंदिर में जलाभिषेक किया था।
कुछ धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले विष को पी लिया था। हलाहल के प्रभाव को दूर करने के लिए देवताओं ने गंगा सहित अन्य नदियों से जल लाकर भोलेनाथ को अर्पित किया था। कई विद्वानों का कहना है कि यहीं से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।