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यूपी में कोडीन युक्त कफ सिरप की अवैध तस्करी का जाल पश्चिमी जिलों से पूर्वांचल तक फैल चुका है। 40 जिलों में FIR, सैकड़ों लाइसेंस रद्द और अंतरराष्ट्रीय लिंक सामने आए हैं। STF और ED की जांच से ड्रग माफिया का पूरा नेटवर्क उजागर हो रहा है।
दवा की आड़ में जहर का नेटवर्क
Lucknow: उत्तर प्रदेश में कोडीन युक्त कफ सिरप का अवैध कारोबार अब केवल स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा नहीं रह गया, बल्कि संगठित अपराध, मनी लॉन्ड्रिंग और अंतरराष्ट्रीय तस्करी का बड़ा नेटवर्क बन चुका है। दवा के नाम पर चल रहे इस ‘जहर के कारोबार’ ने पूरे राज्य की ड्रग मॉनिटरिंग व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
शुरुआती जांच में सामने आया कि कोडीन कफ सिरप की अवैध सप्लाई पहले पश्चिमी यूपी के गाजियाबाद और सहारनपुर जैसे जिलों से संचालित हो रही थी। लेकिन प्रशासनिक सख्ती बढ़ने के बाद यह कारोबार धीरे-धीरे पूर्वांचल की ओर शिफ्ट हो गया। वाराणसी इस नेटवर्क का नया केंद्र बनकर उभरा, जहां से नेपाल, बांग्लादेश और दुबई तक सप्लाई की गई।
अब तक यूपी के 40 जिलों में 128 एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। करीब 35 लोगों की गिरफ्तारी हुई है, जबकि FSDA ने 229 लोगों को नोटिस भेजते हुए 400 से ज्यादा दवा लाइसेंस रद्द किए हैं।
यूपी STF इस पूरे मामले की मुख्य जांच एजेंसी है। फरवरी 2024 में FSDA और STF की संयुक्त कमेटी बनाई गई, जिसकी पहली एफआईआर लखनऊ के सुशांत गोल्फ सिटी थाने में दर्ज हुई। इसमें धोखाधड़ी, जालसाजी, आपराधिक साजिश और सबूत मिटाने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए।
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जांच के दौरान STF ने भारी मात्रा में कोडीन युक्त फेंसिड्रिल सिरप जब्त किया। इसके बाद दवा बनाने वाली कंपनी एबॉट ने इसकी बिक्री पर रोक लगाई और बाजार से सिरप वापस मंगाया।
एबॉट का सबसे बड़ा स्टॉकिस्ट विभोर राणा बताया गया, जिसने करीब 30 करोड़ रुपये का सिरप सरेंडर किया। लेकिन यहीं से खेल ने खतरनाक मोड़ ले लिया। यह सिरप वाराणसी के शुभम जायसवाल को दिया गया, जिसने फर्जी दस्तावेजों के सहारे नेपाल और बांग्लादेश में ऊंची कीमतों पर इसकी तस्करी कराई।
सोनभद्र में चिप्स और नमकीन लदे ट्रक से सिरप की बरामदगी ने इस पूरे नेटवर्क की परतें खोल दीं। इसके बाद STF ने किंगपिन के करीबियों पर शिकंजा कसना शुरू किया।
यूपी से विदेश तक फैला कोडीन कफ सिरप माफिया (Img- Google)
नवंबर में शुभम जायसवाल के करीबी अमित सिंह टाटा की गिरफ्तारी हुई। फिर विभोर राणा और विशाल सिंह पकड़े गए। दिसंबर में बर्खास्त कॉन्स्टेबल आलोक प्रताप सिंह की गिरफ्तारी ने साफ कर दिया कि इस खेल में सिस्टम के भीतर तक लोग शामिल थे। जौनपुर, वाराणसी, बस्ती और रायबरेली में छापेमारी के दौरान करीब 89 लाख बोतलें जब्त की गईं, जिनकी कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक आंकी गई।
नवंबर 2025 के अंत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामला दर्ज किया। जांच में सामने आया कि पूरे नेटवर्क का आर्थिक आकार 500 करोड़ रुपये से ज्यादा हो सकता है। हवाला, शेल कंपनियों और बोगस मेडिकल फर्मों के जरिए पैसे को सफेद किया जा रहा था। वाराणसी में अकेले 15 सदस्यीय ED टीम जांच में जुटी है।
FSDA ने गाजियाबाद और लखनऊ के गोदामों की जांच कर सप्लाई रूट ट्रेस किया। कई जिलों में होलसेलर खरीद-बिक्री के दस्तावेज नहीं दिखा सके। इससे सप्लाई चेन टूट गई और पता चला कि दवाएं लखीमपुर खीरी और बहराइच के रास्ते नेपाल भेजी जा रही थीं। कानपुर में अग्रवाल ब्रदर्स के गोदाम से एक्सपायर्ड दवाओं की बरामदगी ने वाराणसी लिंक को और मजबूत किया।
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जांच में गाजियाबाद के सौरभ त्यागी, सहारनपुर के विभोर राणा और वाराणसी के शुभम जायसवाल के बीच गहरा नेक्सस सामने आया। ये लोग लीगल तरीके से दवाएं खरीदकर फर्जी दुकानों और रिकॉर्ड के सहारे अंतरराष्ट्रीय तस्करी कर रहे थे।
हैरानी की बात यह है कि नशे के रूप में इस्तेमाल हो रहे इस सिरप पर अब तक एक भी मामला NDPS एक्ट में दर्ज नहीं किया गया। यही तथ्य इस पूरे सिस्टम की सबसे बड़ी कमजोरी उजागर करता है।