Ghaziabad: उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) को एक बड़ी सफलता हाथ लगी है। गाजियाबाद से एक ऐसे संगठित साइबर अपराध गिरोह के दो सदस्यों को गिरफ्तार किया गया है, जो खुद को IGMS, IRDAI, NPCI और RBI जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों का अधिकारी बताकर लोगों को इंश्योरेंस पॉलिसी में यूनिट वैल्यू से अधिक मैच्योरिटी अमाउंट दिलाने का झांसा देकर ठगी करता था।
IGMS और IRDAI अधिकारी बनकर कर रहे थे ठगी
गिरफ्तार किए गए आरोपियों की पहचान दीपक तिवारी (निवासी राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद) और बादल वर्मा (निवासी बिसरख, गौतमबुद्धनगर) के रूप में हुई है। इनके पास से 07 मोबाइल फोन, 02 लैपटॉप, विभिन्न फर्जी दस्तावेज, पहचान पत्र और ठगी से संबंधित रजिस्टर के साथ ₹2,905 नकद बरामद हुए हैं।
गाजियाबाद से IGMS, IRDAI, NPCI और RBI के नाम पर साइबर फ्रॉड करने वाले दो शातिर अपराधी गिरफ्तार किए गए। ये गिरोह इंश्योरेंस धारकों को झांसा देकर लाखों की ठगी कर चुका है। एसटीएफ और साइबर पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई कर गिरोह का पर्दाफाश किया।#GhaziabadNews #CyberFraud… pic.twitter.com/hdr00tnj9R
— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) August 28, 2025
इस मामले में खुलासा तब हुआ जब भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ. लाल सिंह गंगवार ने साइबर क्राइम थाने में शिकायत दर्ज कराई कि उन्हें 14 मार्च से 24 मार्च 2025 के बीच फोन और व्हाट्सएप पर संपर्क कर फर्जी दस्तावेज भेजे गए और यूनिट वैल्यू से अधिक मैच्योरिटी राशि दिलाने के नाम पर ₹3,66,890 उनके फर्जी बैंक खातों में ट्रांसफर करवा लिए गए।
एसटीएफ की साइबर टीम और लखनऊ साइबर क्राइम थाना की संयुक्त टीम ने 27 अगस्त 2025 को गाजियाबाद के वैशाली स्थित क्लाउड 9 बिल्डिंग के एक ऑफिस से दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया। गिरोह के अन्य सदस्य प्रेम चौधरी और करन शर्मा की तलाश जारी है।
RBI और NPCI का नाम लेकर इंश्योरेंस धारकों को बनाया निशाना
पूछताछ में दीपक तिवारी ने बताया कि उसने 2012 से 2015 तक नोएडा में एक इंश्योरेंस ब्रोकरेज कंपनी में टेली कॉलिंग का काम किया था। इसके बाद वह कई छोटे व्यवसायों में लगा, लेकिन घाटा होने के कारण कर्ज में डूब गया। दिसंबर 2024 में प्रेम चौधरी से मुलाकात के बाद उसने जनवरी 2025 में गाजियाबाद के वैशाली में एक ऑफिस किराए पर लिया और वहां से साइबर ठगी का धंधा शुरू किया।
गिरोह का तरीका बेहद शातिर था। ये लोग इंटरनेट से सरकारी पदों पर कार्यरत लोगों का डेटा एकत्र करते थे और उन्हें कॉल कर खुद को IGMS, IRDAI, NPCI या RBI का अधिकारी बताते थे। फिर उन्हें यह भरोसा दिलाते थे कि उनकी इंश्योरेंस पॉलिसी में यूनिट वैल्यू से ज्यादा का लाभ मिल सकता है, लेकिन इसके लिए उन्हें एजेंट कोड हटवाना होगा जिसकी फीस 20,000 से 90,000 रुपये तक होती थी। जब पीड़ित यह राशि जमा कर देता था, तो उनसे अलग-अलग नामों से और शुल्क की मांग की जाती थी जैसे पॉलिसी सेटलमेंट चार्ज, एफिडेविट चार्ज, सीआरएस लेटर, आदि।
दो साइबर अपराधी गाजियाबाद से गिरफ्तार
इस काम के लिए यह गिरोह कमीशन पर बैंक खाते किराए पर लेता था और धोखाधड़ी से प्राप्त धनराशि को आपस में बांट लेता था। गिरोह ने अब तक करीब 50-60 लाख रुपये की साइबर ठगी की है और लगभग 15-20 बैंक खाते इस्तेमाल किए हैं।
पुलिस अब इन खातों, वॉलेट्स और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की फॉरेंसिक जांच कर रही है। गिरफ्तार आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता की धाराएं 318(4), 319(2), 336(3), 338 और आईटी एक्ट की धारा 66सी, 66डी के तहत केस दर्ज किया गया है।

