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मुलायम सिंह यादव की जयंती पर पढ़िए- कैसे उनके नाम पर बने नारे उनकी राजनीति, लोकप्रियता और कार्यकर्ताओं के उत्साह की कहानी कहते हैं। कौन से नारे खुद मुलायम ने दिए और कौन से जनता ने गढ़े? पढ़िए पूरी रिपोर्ट।
मुलायम सिंह यादव
Lucknow: समाजवादी पार्टी के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की आज जयंती है। मुलायम सिंह न केवल अपने राजनीतिक कौशल, रणनीति और जनाधार के लिए पहचाने जाते रहे, बल्कि उनके नाम पर बनने वाले नारे भी उनकी लोकप्रियता और कार्यकर्ताओं के उत्साह की मिसाल थे।
लंबे सियासी सफर में उन्होंने एक ओर जहां सामाजिक न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य को राजनीति का केंद्र बनाया, वहीं दूसरी ओर उनकी राजनीतिक पहचान और व्यक्तित्व ने अनेक नारों को जन्म दिया। इन नारों ने मुलायम की राजनीति और उनकी छवि को और मजबूत करने का काम किया।
‘शिक्षा होगी एक समान, तभी बनेगा हिन्दोस्तान’
मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक जीवन में कई ऐसे नारे दिए जो समाज में फैली असमानता और बुनियादी सुविधाओं की कमी पर सीधा प्रहार करते थे। समान शिक्षा को लेकर उनका नारा ‘शिक्षा होगी एक समान, तभी बनेगा हिन्दोस्तान’ आज भी याद किया जाता है।
‘रोटी-कपड़ा सस्ती हो, दवा-पढ़ाई मुफ्त हो।’
इसी तरह आम जनता की जरूरतों को प्राथमिकता देते हुए उन्होंने सस्ती ज़िंदगी और मुफ्त स्वास्थ्य-शिक्षा की वकालत की। तब उन्होंने कहा था ‘रोटी-कपड़ा सस्ती हो, दवा-पढ़ाई मुफ्त हो।’ यह नारा उस दौर में आम जनता की वास्तविक समस्याओं को उजागर करता था और समाजवादी राजनीति की बुनियाद को मजबूत करता था।
‘जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है’
मुलायम के नाम पर सबसे लोकप्रिय नारों में से एक वह है जिसे कार्यकर्ताओं ने खुद गढ़ा। साल 2004 की बात है, जब मुलायम सिंह प्रयागराज के रामबाग स्थित सेवा समिति विद्या मंदिर मैदान में पहुंचे थे। जैसे ही उनका हेलीकॉप्टर उतरा, विशाल भीड़ ने नारा लगाया ‘जिसका जलवा कायम है, उसका नाम मुलायम है।’ जब मुलायम सिंह ने मंच पर पहुंचकर कहा, “आप सबकी वजह से ही मेरा जलवा कायम है” तो यह नारा और जोश से भर गया। इसके बाद यह उद्घोष समाजवादी कार्यकर्ताओं, खासकर युवाओं का पसंदीदा नारा बन गया और हर कार्यक्रम में गूंजने लगा।
‘नाम मुलायम, काम मुलायम, फिर एक बार मुलायम’
साल 2007 के विधानसभा चुनाव में यह नारा चुनावी रैलियों की पहचान बन गया। समाजवादी पार्टी की युवा इकाइयों ने इस नारे को हर सभा में बुलंद किया। ‘नाम मुलायम, काम मुलायम, फिर एक बार मुलायम।’ उस समय अखिलेश यादव युवा इकाई के प्रमुख थे और उनके नेतृत्व में युवाओं में खासा उत्साह दिखाई देता था।
‘मन से है मुलायम, इरादे लोहा हैं’
2012 में अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने। उस समय एक अंग्रेजी धुन पर गीत लिखने की योजना बनी और उदय प्रताप सिंह ने एक पंक्ति लिखी, जो आगे चलकर नारा बन गई- ‘मन से है मुलायम, इरादे लोहा हैं।’ यह नारा मुलायम सिंह की कोमलता और साथ ही उनके दृढ़ राजनीतिक संकल्प को बखूबी दर्शाता है।
उदय प्रताप सिंह बताते हैं कि उन्होंने ही 1984 में एक कविता लिखी थी, जिसकी पंक्ति बाद में नारा बन गई- ‘वीर मुलायम सिंह नेता, मजदूरों और किसानों के।’ यह नारा उन दिनों आम जनता में उनकी छवि का वास्तविक परिचय था। इसी तरह एक और नारा जो बाद में बेहद लोकप्रिय हुआ ‘नाम मुलायम सिंह है लेकिन काम बड़ा फौलादी है, सब विपक्ष की ताकत को एक मंच पर ला दी है।’