हिंदी
फतेहपुर में गौवंश संरक्षण को लेकर किए जा रहे सरकारी दावे जमीनी स्तर पर कमजोर नजर आ रहे हैं। गौ-आश्रय स्थलों के बावजूद सड़कों पर घूमते आवारा गौवंश व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। ठंड, भूख और लापरवाही के बीच बेजुबानों की हालत दिन-ब-दिन बदतर होती जा रही है।
बीच सड़कों पर भटकते गौवंश
Fatehpur: सरकारी स्तर पर चाहे गौवंश संरक्षण को लेकर लाख दावे किए जा रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों की पोल खोलती नजर आ रही है। फतेहपुर जिले में सड़कों, बाजारों, हाईवे और गलियों में खुलेआम घूमते बेसहारा गौवंश यह बताने के लिए काफी हैं कि गौ-आश्रय स्थलों की व्यवस्था केवल कागजों तक ही सीमित रह गई है। भीषण ठंड में ये बेजुबान कभी कूड़ा-कचरा खाते, तो कभी लोगों के डंडों का शिकार होते दिखाई देते हैं।
जिले में गौवंशों के संरक्षण के लिए कुल 63 गौ-आश्रय स्थल बनाए गए हैं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इनमें वर्तमान समय में 12,621 गौवंश संरक्षित बताए जा रहे हैं। वहीं सहभागिता योजना के तहत 2005 गौवंश ग्रामीणों को सौंपे गए हैं। इसके बावजूद जिले के गांवों से लेकर शहरी इलाकों तक सड़कों पर आवारा घूमते गौवंशों की संख्या लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है।
कड़ाके की ठंड में इन गौवंशों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। खुले में रहने के कारण उन्हें न तो पर्याप्त चारा मिल पाता है और न ही ठंड से बचाव की कोई व्यवस्था नजर आती है। कई स्थानों पर लोग इन्हें भगाने के लिए डंडों का सहारा लेते हैं, जिससे ये और अधिक भयभीत व घायल हो जाते हैं।
फतेहपुर में गूंजी महिला की चीख: जंगल से घर तक खून के धब्बे, जानें उस खामोश रात में ऐसा क्या हुआ?
दुरुस्त व्यवस्थाओं के दावे भले ही किए जा रहे हों, लेकिन हकीकत यह है कि जिले की गिनी-चुनी गौशालाएं ही ऐसी हैं, जहां अधिकारियों का नियमित आना-जाना होता है। इन स्थानों पर व्यवस्थाएं कुछ हद तक बेहतर दिखती हैं, लेकिन बाकी गौ-आश्रय स्थलों की स्थिति देखने पर साफ हो जाता है कि निर्धारित मानकों के अनुरूप गौवंशों का भरण-पोषण नहीं हो पा रहा है।
गौवंशों के भरण-पोषण के लिए सरकार द्वारा ₹50 प्रति गौवंश प्रतिदिन की धनराशि दी जाती है। सवाल यह उठता है कि बढ़ती महंगाई के इस दौर में क्या इतनी राशि में चारा, भूसा, दवा और देखभाल संभव है? जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोगों का कहना है कि यह राशि नाकाफी है, जिसके कारण व्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं।
जिले के 13 विकास खंडों समेत नगरपालिका परिषद फतेहपुर और खागा में कैटल कैचर वाहन तो खड़े हैं, लेकिन इनका उपयोग बेहद सीमित है। इन वाहनों के पहिये शायद ही कभी सड़कों पर घूमते नजर आते हों। नतीजतन, आवारा गौवंश खुलेआम सड़कों पर घूमते रहते हैं और यातायात दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बनते जा रहे हैं।
फतेहपुर में चर्च के अंदर धर्मांतरण का आरोप, बजरंग दल का हंगामा
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि कई आवारा घूमते गौवंशों के कानों में ईयर टैग लगे हुए हैं। इससे सवाल खड़ा होता है कि यदि ये गौवंश पहले से गौशालाओं में पंजीकृत हैं, तो फिर बाहर कैसे घूम रहे हैं? और यदि बाहर हैं, तो उनकी जिम्मेदारी आखिर किसकी है?
इस समस्या के लिए केवल प्रशासन ही नहीं, बल्कि गौपालक भी जिम्मेदार हैं। कई गौपालक उपयोग समाप्त होने के बाद अपने पशुओं को खुला छोड़ देते हैं। इसके चलते न केवल सड़कों पर गौवंशों की संख्या बढ़ती है, बल्कि इन पर तस्करों की भी नजर रहती है। जिले में समय-समय पर गौवंश कटान की सूचनाएं सामने आती रहती हैं।