

अहमदाबाद दुर्घटना के बाद देश में हवाई यात्रा को लेकर लोगों में भय का माहौल है और अनेक यात्रियों ने अपनी बुकिंग रद्द करना शुरू कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ देखिए पूरा विश्लेषण:
हवाई यात्रा को लेकर लोगों में भय का माहौल
नई दिल्ली: अहमदाबाद में हुए भीषण विमान हादसे के बाद देश भर में हवाई सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा हो गई है। यह केवल एक घटना नहीं थी, बल्कि एक ऐसा संकेत था जिसने भारतीय विमानन क्षेत्र की तैयारियों, प्रक्रियाओं और सतर्कता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। यह हादसा न केवल यात्रियों की जान पर भारी पड़ा, बल्कि इसके प्रभाव देशभर की हवाई सेवाओं की छवि और संचालन पर भी देखने को मिल रहे हैं। इस दुर्घटना के बाद लगातार हो रही घटनाएं यह संकेत देती हैं कि कहीं न कहीं प्रणालीगत चूक हो रही है और उसकी गंभीरता को समझने का समय आ गया है।
बीते 12 जून को अहमदाबाद से लंदन के लिए उड़ान भरने वाली एअर इंडिया की फ्लाइट टेकऑफ के कुछ सेकेंड बाद ही अनियंत्रित होकर गिर गई और पास के एक मेडिकल कॉलेज हॉस्टल से जा टकराई। इस दर्दनाक हादसे में विमान में सवार सभी 241 यात्रियों की मौत हो गई। इसके साथ-साथ हॉस्टल में मौजूद कई छात्र, डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ भी इस हादसे की चपेट में आ गए। रिपोर्ट्स के अनुसार विमान में करीब 1.25 लाख लीटर फ्यूल था, जो टकराने के बाद भीषण धमाके में तब्दील हो गया। यह घटना भारत के विमानन इतिहास की सबसे भयावह दुर्घटनाओं में से एक मानी जा रही है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या विमान में तकनीकी खामी पहले से थी? क्या मेंटनेंस में कोई चूक हुई? और क्या इस हादसे को टाला जा सकता था?
वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने शो The MTA Speaks में बताया कि इस हादसे के बाद देशभर में लोगों के मन में हवाई यात्रा को लेकर भय का माहौल बन गया है। यात्रियों ने न केवल बुकिंग रद्द करना शुरू कर दिया बल्कि यात्रा से जुड़ी सुरक्षा को लेकर भी सोशल मीडिया पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। इस हादसे के बाद एअर इंडिया की टिकट बुकिंग में लगभग 20% की गिरावट देखी गई है। खासकर फैमिली और कॉर्पोरेट ट्रैवल करने वाले लोग अब वैकल्पिक माध्यमों से यात्रा करने पर विचार कर रहे हैं। यही नहीं, एअर इंडिया ने ऐलान किया है कि 21 जून से 15 जुलाई तक उसकी उड़ानों में लगभग 15% की कटौती की जाएगी। यह कटौती विशेष रूप से इंटरनेशनल रूट्स पर होगी, जिनमें दिल्ली-टोरंटो, दिल्ली-वैंकूवर, दिल्ली-सैन फ्रांसिस्को, दिल्ली-शिकागो और दिल्ली-वाशिंगटन शामिल हैं।
एअर इंडिया की स्थिति इस समय काफी असामान्य है। पिछले 9 दिनों में कंपनी ने 84 उड़ानें रद्द कर दी हैं। एयरलाइन की ओर से मेंटनेंस और ऑपरेशनल कारणों का हवाला दिया जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल आधी सच्चाई है। यात्रियों को यह जानकारी नहीं दी जा रही है कि क्या इन उड़ानों को रद्द करने के पीछे सुरक्षा को लेकर कोई अतिरिक्त कदम उठाए जा रहे हैं या फिर एयरलाइन किसी आंतरिक संकट से जूझ रही है। सरकार और डीजीसीए (नागर विमानन महानिदेशालय) की ओर से भी कोई ठोस सार्वजनिक बयान या विस्तृत जांच रिपोर्ट सामने नहीं आई है। इस चुप्पी ने यात्रियों के मन में और भी ज्यादा असमंजस और डर पैदा कर दिया है।
भारत की विमानन सुरक्षा के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्टें भी अब पुनर्परिक्षणों की मांग करती हैं। ICAO की हालिया Universal Safety Oversight Audit Programme में भारत को 85% स्कोर मिला है, जो वैश्विक औसत से अधिक है। अमेरिका की FAA (Federal Aviation Administration) ने भी भारत को 'Category 1' रेटिंग दी है, जिसका अर्थ है कि भारत की एविएशन अथारिटी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा मानकों पर खरा उतरती है। लेकिन अहमदाबाद जैसे हादसे इन रेटिंग्स की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं।
इसके साथ ही यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है कि भारत में पायलट और इंजीनियरिंग स्टाफ की कमी एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में 15% से अधिक कुशल एविएशन स्टाफ की कमी है। थकावट, ओवरवर्क और निर्णय लेने की क्षमता में कमी जैसे मनोवैज्ञानिक प्रभाव उड़ानों की सुरक्षा पर सीधा असर डाल सकते हैं।
अहमदाबाद हादसे के बाद ब्लैक बॉक्स डेटा अब तक सार्वजनिक नहीं किया गया है और न ही कोई प्रारंभिक जांच रिपोर्ट सामने आई है। इस पारदर्शिता की कमी यात्रियों के भरोसे को और कमजोर करती है।
इस घटना के बाद हेलीकॉप्टर सेवाओं को लेकर भी सवाल खड़े हो गए हैं। विशेषकर उत्तराखंड की चारधाम यात्रा के दौरान हेली सेवाओं में बार-बार हो रही दुर्घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी है। पिछले डेढ़ महीने में देश में 5 बड़े हेलीकॉप्टर हादसे हुए हैं। 8 मई को उत्तरकाशी के गंगनानी में एरोटांस सर्विस प्राइवेट लिमिटेड का हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया था। इसमें पायलट समेत 6 लोगों की मौत हो गई थी। इसके चार दिन बाद बद्रीनाथ से लौट रहा एक अन्य हेलीकॉप्टर खराब मौसम की वजह से इमरजेंसी लैंडिंग के लिए मजबूर हो गया। हालांकि उसमें सवार सभी लोग सुरक्षित रहे।
17 मई को एम्स की हेली एंबुलेंस जो केदारनाथ जा रही थी, वह भी क्रैश हो गई। फिर 8 जून को बड़ासू हेलीपैड से उड़ान भरते ही एक हेलीकॉप्टर क्रैश होकर सड़क पर आ गिरा, जिसमें एक कार भी क्षतिग्रस्त हुई। 12 जून को केदारनाथ से गुप्तकाशी की ओर जा रहा एक हेलीकॉप्टर गौरीकुंड के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में सात लोगों की मौत हो गई, जिनमें एक दो साल की बच्ची भी शामिल थी।
इन हादसों के बाद सरकार ने चारधाम यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर सेवाओं पर अस्थायी रोक लगाने की घोषणा की और सख्त दिशानिर्देश बनाने की बात कही, लेकिन यह सब घटनाओं के बाद ही क्यों? क्यों समय रहते ऑपरेटर कंपनियों की जांच नहीं की गई? डीजीसीए की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन सेवाओं का समय-समय पर ऑडिट करे, लाइसेंस और सुरक्षा प्रक्रियाओं की जांच करे और नियमों की अनुपालना सुनिश्चित करे। लेकिन घटनाएं बताती हैं कि यह प्रणाली या तो कमजोर है या फिर गंभीरता से अनुपालन नहीं किया जा रहा।
एविएशन क्षेत्र में बीमा और यात्री क्षतिपूर्ति भी एक गंभीर चिंता का विषय है। भारत में अधिकांश एयरलाइंस अधिकतम 20 लाख रुपये तक की बीमा राशि का प्रावधान करती हैं, लेकिन यह तभी लागू होती है जब एयरलाइन की गलती साबित हो। कई परिवारों को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिससे मानसिक और आर्थिक नुकसान और गहरा हो जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत की विमानन व्यवस्था तेजी से बढ़ रही है लेकिन सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर उतनी ही तेजी से नहीं बढ़ रहा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति मजबूत हो रही है लेकिन घरेलू स्तर पर बार-बार हो रही घटनाएं इस छवि को नुकसान पहुंचा रही हैं। ICAO की हालिया रिपोर्ट में भारत की एविएशन सुरक्षा रैंकिंग में सुधार दिखाया गया था, लेकिन ये हादसे उस रैंकिंग को खोखला बनाते नजर आ रहे हैं।
इन सबके बीच पटना एयरपोर्ट पर हुई एक और घटना ने एअर इंडिया की कार्यप्रणाली पर और सवाल खड़े कर दिए। बेंगलुरु और चेन्नई से आई दो फ्लाइट्स पटना पहुंचीं, लेकिन उनका सामान यात्रियों तक नहीं पहुंचा। करीब 180 यात्री बैगेज बेल्ट पर घंटों इंतजार करते रहे और फिर गुस्से में एयरलाइन स्टाफ से बहस करने लगे। यात्रियों का कहना था कि बिना कोई जानकारी दिए फ्लाइट्स में उनका सामान नहीं लाया गया, जिससे उनकी आगे की यात्रा भी प्रभावित हुई। एयर इंडिया की ओर से कोई स्पष्ट या सार्वजनिक माफी नहीं दी गई, न ही यह बताया गया कि यह गलती कैसे हुई।
इन तमाम घटनाओं ने देश में हवाई यात्रा की साख पर असर डाला है। लोगों के मन में डर बैठ गया है कि कहीं अगली फ्लाइट में उनके साथ भी कुछ न हो जाए। एविएशन कंपनियों के लिए यह केवल व्यावसायिक संकट नहीं है बल्कि यह भरोसे का संकट है। यात्रियों को अब महज सुविधाजनक नहीं बल्कि सुरक्षित यात्रा चाहिए। उन्हें हर टेकऑफ से पहले यह विश्वास चाहिए कि विमान या हेलीकॉप्टर उड़ान के लिए पूरी तरह फिट और जांचा हुआ है।
एक हालिया सर्वेक्षण में लगभग 48% यात्रियों ने कहा कि वे अब फ्लाइट लेने से पहले अत्यधिक तनाव महसूस करते हैं। लगभग 28% यात्रियों ने कहा कि वे अब वैकल्पिक यात्रा माध्यमों को प्राथमिकता देंगे। यह केवल एक तकनीकी संकट नहीं बल्कि सामाजिक और मानसिक प्रभाव का भी संकेत है।
सरकार की ओर से अब तक कोई उच्च स्तरीय पारदर्शी जांच समिति या निष्कर्ष जनता के सामने नहीं लाया गया है। यात्रियों और जनता को जानने का अधिकार है कि बार-बार हो रही इन घटनाओं के पीछे कौन जिम्मेदार है, और उन पर क्या कार्रवाई की गई है। यदि हादसे तकनीकी कारणों से हो रहे हैं तो उनसे जुड़े मेंटनेंस और इंजीनियरिंग प्रोटोकॉल की जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए। यदि मानवीय चूक है तो ट्रेनिंग, निगरानी और जवाबदेही के मानकों की समीक्षा होनी चाहिए। और यदि सिस्टम फेल हो रहा है तो उसकी गहराई से ऑडिट की जरूरत है।
भारत की उड़ानों में विश्वास तभी लौटेगा जब सरकार और एयरलाइंस यात्रियों को सिर्फ शब्दों में नहीं, कामों में भी भरोसा दिलाएं। पारदर्शिता, जवाबदेही और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता ही वह आधार है जिस पर हवाई यात्रा की साख दोबारा खड़ी की जा सकती है। आज भारत को एविएशन में मुनाफा नहीं, मानवता केंद्रित नीति की जरूरत है। यह सिर्फ एक सेक्टर का सवाल नहीं है, यह हर उस नागरिक का सवाल है जो अपने जीवन की सबसे कीमती उड़ान भरोसे पर छोड़ता है।