The MTA Speaks: क्या ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने फाइटर जेट्स खोए? सरकार ने सच छिपाया? जानिए इनसाइड स्टोरी

सवाल उठ रहा है कि क्या भारत ने वाकई ऑपरेशन सिंदूर में अपने कुछ फाइटर जेट्स गंवाए और क्या सरकार ने इस तथ्य को देश से छिपाया? देखिए सटीक विश्लेषण मनोज टिबड़ेवाल आकाश के साथ..

Updated : 30 June 2025, 7:37 PM IST
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नई दिल्ली:  भारत की सुरक्षा नीति, सैन्य ऑपरेशन और राजनीतिक पारदर्शिता से गहराई से जुड़ा है। यह विषय जुड़ा है – ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय वायुसेना द्वारा कथित रूप से कुछ लड़ाकू विमानों के नुकसान को लेकर, और उससे जुड़ी गोपनीयता पर। सवाल उठ रहा है कि क्या भारत ने वाकई ऑपरेशन सिंदूर में अपने कुछ फाइटर जेट्स गंवाए और क्या सरकार ने इस तथ्य को देश से छिपाया?

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश  ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में बताया।  विवाद की शुरूआत हुई इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता से, जहां 10 जून को एक सेमीनार के दौरान भारत के डिफेंस अताशे कैप्टन शिव कुमार, जो कि भारतीय नौसेना के वरिष्ठ अधिकारी हैं, ने एक सनसनीखेज दावा किया। उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के प्रारंभिक चरण में भारतीय वायुसेना को कुछ लड़ाकू विमान गंवाने पड़े, क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने यह निर्देश दिया था कि सैन्य प्रतिष्ठानों को टारगेट न बनाया जाए और केवल आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया जाए।

राजनीतिक हलकों में हड़कंप

इस बयान ने जैसे ही सार्वजनिक रूप से ध्यान खींचा, भारत में राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया। कांग्रेस ने इस मुद्दे को तुरंत लपक लिया और सरकार पर हमला बोलते हुए आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने देश के सामने ऑपरेशन सिंदूर की सच्चाई छिपाई है। कांग्रेस का कहना है कि देश को अंधेरे में रखा गया और यह जानकारी जानबूझकर साझा नहीं की गई। यह मामला केवल एक बयान का नहीं, बल्कि उस रणनीतिक संतुलन का भी है जिसे भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सेना और सरकार के बीच कायम रखना पड़ता है।

वायुसेना ने कुछ फाइटर जेट्स खो दिए..

डिफेंस अताशे कैप्टन शिव कुमार का बयान दरअसल एक व्यापक चर्चा का हिस्सा था, जिसमें लोकतंत्र में सैन्य कार्रवाई के निर्णयों में राजनीतिक नियंत्रण की भूमिका पर बात की जा रही थी। लेकिन उनके बयान का एक हिस्सा – "भारतीय वायुसेना ने कुछ फाइटर जेट्स खो दिए" – को मीडिया में विशेष तौर पर हाईलाइट किया गया, जिससे यह पूरा विवाद पैदा हुआ। आपको एक बार याद दिलाते हैं ऑपरेशन सिंदूर के बारे में......पिछले महीने 7 और 8 मई की दरम्यानी रात भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में एक जबरदस्त सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया। इसका नाम रखा गया – ऑपरेशन सिंदूर। यह जवाब था जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए घातक आतंकी हमले का, जिसमें निर्दोष भारतीय जवान और आम नागरिक मारे गए थे।

10 मई को अचानक सीजफायर की घोषणा

भारतीय वायुसेना, सेना और नेवी तीनों ने मिलकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया, और सूत्रों के अनुसार, इस कार्रवाई में कम से कम 9 आतंकी ठिकानों को निशाना बनाकर ध्वस्त कर दिया गया। कार्रवाई इतनी तेज और प्रभावी थी कि पाकिस्तान को 10 मई को अचानक सीजफायर की घोषणा करनी पड़ी। हैरानी की बात यह रही कि सबसे पहले सीजफायर की सूचना अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साझा की, न कि भारत या पाकिस्तान की सरकारों ने। इस बात ने भी विपक्ष को सरकार पर हमला करने का मौका दिया। अब जबकि ऑपरेशन खत्म हो चुका है, उसके कई पहलुओं पर पर्दा पड़ा हुआ था। लेकिन 10 जून के इस बयान ने एक बार फिर सारे दबे हुए सवालों को हवा दे दी है। क्या भारतीय वायुसेना के कुछ फाइटर जेट्स वाकई गिराए गए? अगर हां, तो कितने? कैसे? किस तकनीकी विफलता या रणनीतिक कारणों से? और सबसे अहम – यह बात अब तक देश से क्यों छिपाई गई?

विशेष सत्र की मांग को क्यों खारिज?

भारतीय दूतावास ने जकार्ता से तुरंत सफाई जारी की और बयान को संदर्भ से बाहर बताया। दूतावास ने कहा कि कैप्टन शिव कुमार दरअसल यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि भारत की सैन्य कार्रवाई लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप होती है, जहां सेना राजनीतिक नेतृत्व के अधीन काम करती है। उन्होंने आगे यह भी स्पष्ट किया कि भारत की कार्रवाई ‘उकसावे वाली नहीं थी’ बल्कि वह एक ‘प्रोएक्टिव डिफेंस मूव’ था, जो आतंकी ठिकानों को खत्म करने के लिए किया गया।लेकिन कांग्रेस इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर सवाल उठाया कि प्रधानमंत्री मोदी सर्वदलीय बैठक बुलाने और संसद के विशेष सत्र की मांग को क्यों खारिज कर रहे हैं? उन्होंने पूछा कि आखिर सरकार क्या छिपा रही है? कांग्रेस आईटी सेल के प्रमुख पवन खेड़ा ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि सरकार ने शुरू से ऑपरेशन सिंदूर के बारे में देश को अधूरी जानकारी दी। उन्होंने आरोप लगाया कि एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती ने एक ब्रीफिंग में नुकसान का अप्रत्यक्ष रूप से ज़िक्र जरूर किया था, जब उन्होंने कहा था कि "हम युद्ध जैसी स्थिति में हैं और नुकसान युद्ध का हिस्सा होता है।" इसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि कुछ हानि हुई है, जिसे छिपाया जा रहा है।

कुछ रणनीतिक चुनौतियों का सामना

पवन खेड़ा ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान की शंगरी-ला डायलॉग के दौरान दी गई टिप्पणी का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने एक टीवी चैनल से बात करते हुए यह स्वीकारा कि भारत को हवाई क्षेत्र में कुछ रणनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। खेड़ा का कहना है कि यह पहली बार है जब किसी शीर्ष सैन्य अधिकारी ने इस बात को ‘आधिकारिक रूप से’ स्वीकारा है कि ऑपरेशन सिंदूर में कुछ नुकसान जरूर हुआ। यह विवाद केवल राजनीतिक बहस का मुद्दा नहीं है। यह देश की सामरिक रणनीति, सेना के मनोबल, और लोकतंत्र में पारदर्शिता जैसे मूलभूत सिद्धांतों से जुड़ा हुआ है। यदि वाकई भारतीय वायुसेना ने अपने फाइटर जेट्स खोए, तो यह जानना जरूरी है कि वे किस वजह से गिरे—तकनीकी खराबी, दुश्मन की एयर डिफेंस या किसी रणनीतिक भूल की वजह से? और सबसे ज़रूरी—क्या इस नुकसान को रोका जा सकता था?

राजनीति और पारदर्शिता की तिहरी कसौटी..

भारत जैसे देश में जहां हर सैन्य ऑपरेशन को जनता और संसद के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, वहां ऐसी जानकारियों को छुपाया जाना न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का उल्लंघन है, बल्कि सेना के अंदर पारदर्शिता और आत्ममूल्यांकन की भावना को भी चोट पहुंचा सकता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि ऑपरेशन सिंदूर का पूरा स्वरूप एक ‘सर्जिकल स्ट्राइक प्लस’ जैसा था—जहां केवल आतंकवादी ठिकानों को ही नहीं, बल्कि दुश्मन की एयर डिफेंस क्षमता को भी निशाना बनाया गया। ब्रह्मोस मिसाइलों के जरिये की गई यह कार्रवाई तकनीकी और सामरिक दृष्टि से अत्यंत चुनौतीपूर्ण थी। अगर इस दौरान भारत ने अपने कुछ विमान खोए हैं, तो वह तकनीकी समीक्षा और सार्वजनिक पारदर्शिता की मांग करता है। अब यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह संसद और देश के सामने आए, और इस मामले पर विस्तृत स्पष्टीकरण दे। केवल बयानबाजी और कूटनीतिक सफाई अब पर्याप्त नहीं है। देश की जनता को हक है जानने का कि उसके फौजियों ने किस स्तर पर कार्रवाई की, क्या हानि हुई और क्या सफलता मिली।
तो यह था The MTA Speaks पर आज का विशेष विश्लेषण—एक ऐसा मुद्दा जो सुरक्षा, राजनीति और पारदर्शिता की तिहरी कसौटी पर है।

 

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