The MTA Speaks: सावधान! अचानक हार्ट अटैक से मौत की घटनाओं का क्यों बढ़ रहा ग्राफ? जानिये बचाव और कारण

एक समय था जब हृदय रोगों को बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब युवाओं और मिडल एज लोगों में अचानक हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट से मौत की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। आखिर क्या है इसका कारण और कैसे रोका जा सकता है ऐसी घटनाओं को?

Post Published By: Deepika Tiwari
Updated : 7 July 2025, 7:09 PM IST
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नई दिल्ली:  हाल के वर्षों में भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर चिंता का विषय बन चुका है — युवाओं और मिडल एज लोगों में अचानक हार्ट अटैक और कार्डियक अरेस्ट से मौत की घटनाओं में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। एक समय था जब हृदय रोगों को बुजुर्गों की बीमारी माना जाता था, लेकिन अब 18 से 45 वर्ष की उम्र के लोग भी बड़ी संख्या में इसकी चपेट में आ रहे हैं। यह बदलाव न केवल चिकित्सा विज्ञान के लिए चुनौती है, बल्कि समाज, नीतियों और व्यक्तिगत जीवनशैली पर भी सवाल खड़ा करता है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने चर्चित शो The MTA Speaks में युवाओं में अचानक हार्ट अटैक से मौत की घटनाओं का विश्लेषण किया।

कोविड-19 महामारी के बाद से हम बार-बार यह सुनते आए हैं कि कोई स्वस्थ दिखने वाला युवा अचानक जिम में, क्रिकेट मैदान में, शादी के स्टेज पर डांस करते हुए या यहां तक कि ऑफिस में कंप्यूटर पर काम करते हुए गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई। हाल ही में कर्नाटक के हासन जिले में एक चौंकाने वाला आंकड़ा सामने आया — 40 दिनों के भीतर 22 लोगों की हार्ट अटैक से मौत। 30 जून को ही 4 लोगों की जान गई। इनमें से अधिकतर 19 से 45 वर्ष के बीच के थे। इसी तरह पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान से भी इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।

2022 में चेतावनी जारी

ऐसी घटनाएं सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में भी रिकॉर्ड की जा रही हैं। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (CDC) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, 2020 के मुकाबले 2022 में 18-39 वर्ष के बीच कार्डियक अरेस्ट के मामले 12% बढ़े। ब्रिटेन में नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) ने भी 2022 में चेतावनी जारी की थी कि युवाओं में बढ़ते हार्ट अटैक के मामले “पोटेंशियल पोस्ट-पैंडेमिक कार्डियक टाइम बम” की तरह हैं।

मनोवैज्ञानिक तनाव का भी सीधा परिणाम

भारत में इस ट्रेंड की भयावहता इसलिए और अधिक है क्योंकि यहां युवाओं की जनसंख्या अधिक है। ‘स्टेट ऑफ इंडिया हार्ट 2023’ रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 30% हार्ट अटैक के मामले अब 40 वर्ष से कम आयु के लोगों में आ रहे हैं। यह आंकड़ा 10 साल पहले सिर्फ 12% था। विशेषज्ञों के मुताबिक यह सिर्फ महामारी का प्रभाव नहीं है, बल्कि हमारी बदलती जीवनशैली और मनोवैज्ञानिक तनाव का भी सीधा परिणाम है।

सोशल मीडिया पोस्ट्स में बिना वैज्ञानिक प्रमाण

कर्नाटक में घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया द्वारा दिए गए बयान के बाद एक नई बहस शुरू हुई कि क्या इन घटनाओं का कोई संबंध कोविड वैक्सीन से है? यह सवाल कई लोगों के मन में पहले से था और अब वह सार्वजनिक विमर्श में शामिल हो चुका है। कई सोशल मीडिया पोस्ट्स में बिना वैज्ञानिक प्रमाण के वैक्सीन को इन मौतों का कारण ठहराया गया। लेकिन इन दावों की पुष्टि अब तक किसी भी ठोस वैज्ञानिक अध्ययन से नहीं हुई है।

डेटा विश्लेषण के बाद निष्कर्ष

AIIMS और ICMR द्वारा संयुक्त रूप से की गई विस्तृत स्टडी इस पूरे विमर्श में निर्णायक भूमिका निभाती है। मई से अगस्त 2023 के बीच देश के 47 बड़े अस्पतालों में की गई इस स्टडी में ऐसे लोगों को शामिल किया गया जो पूर्व में पूरी तरह स्वस्थ थे और अक्टूबर 2021 से मार्च 2023 के बीच अचानक मृत्यु का शिकार हुए। 1500 से अधिक मामलों के डेटा विश्लेषण के बाद निष्कर्ष सामने आया कि कोविड वैक्सीन और हार्ट अटैक के बीच कोई प्रत्यक्ष कारणात्मक संबंध नहीं पाया गया।

अस्थायी सूजन या हार्ट रेट में परिवर्तन

कुछ मरीजों में वैक्सीन के बाद हल्की अस्थायी सूजन या हार्ट रेट में परिवर्तन जरूर देखा गया, लेकिन वह सामान्य दवाओं से ठीक हो गया। गंभीर कार्डियक घटना या मृत्यु का कोई सीधा लिंक वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध नहीं हुआ। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस स्टडी के आधार पर सार्वजनिक रूप से बयान दिया कि कोविड वैक्सीन पूरी तरह सुरक्षित है और इसका हृदयाघात से कोई संबंध नहीं है।

हार्ट और ब्लड वेसल्स पर असर

यह समझना ज़रूरी है कि वैक्सीन की वजह से नहीं, बल्कि कोविड संक्रमण के बाद जो सूजन शरीर में बनी रहती है — खासकर एंडोथीलियल सेल्स (जो नसों की भीतरी परत में होते हैं) में — वह कभी-कभी हार्ट और ब्लड वेसल्स पर असर डालती है। इसीलिए डॉक्टरों ने कोविड से ठीक होने के बाद भी कुछ हफ्तों तक शारीरिक गतिविधियों में संयम बरतने की सलाह दी थी। लेकिन वैक्सीन को दोष देना, जबकि उसने लाखों लोगों की जान बचाई, न सिर्फ वैज्ञानिक रूप से गलत है बल्कि सामाजिक रूप से भी खतरनाक।

असली कारण क्या है?

अब सवाल उठता है कि फिर असली कारण क्या है? क्यों अचानक हार्ट अटैक के मामलों में इतना इजाफा हुआ? इस सवाल का जवाब कई परतों में छुपा हुआ है। पहला — जीवनशैली में गिरावट। अनियमित खानपान, फास्ट फूड की आदत, रिफाइंड शुगर और ट्रांस फैट का अत्यधिक सेवन, शारीरिक श्रम की कमी और नींद का अभाव। दूसरा — तनाव और मानसिक दबाव। महामारी के बाद नौकरी का संकट, आर्थिक दबाव, अनिश्चितता और सोशल मीडिया की निरंतरता ने युवाओं के दिमाग पर असामान्य बोझ डाला है, जो हार्ट हेल्थ को सीधे प्रभावित करता है।

तीसरा कारण है फिटनेस के नाम पर अति। जिम में बिना मेडिकल गाइडेंस के हैवी वेट लिफ्टिंग, स्टेरॉइड्स या सप्लीमेंट्स का अंधाधुंध प्रयोग, बिना वॉर्मअप के कार्डियो या अचानक हाई-इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग (HIIT) करना। कई बार युवाओं को लगता है कि मसल्स बनाना ही फिटनेस है, जबकि असल फिटनेस का मतलब है हार्ट, लंग्स और ब्रेन की हैल्थ।

एक बड़ी आबादी को यह बीमारियां

चौथा कारण — डिजिटल वर्क कल्चर और स्क्रीन टाइम। दिन भर लैपटॉप, मोबाइल और टीवी से चिपके रहना, ब्रेक न लेना और फिजिकल एक्टिविटी न करना। साथ ही, सोशल मीडिया का डोपामीन-संचालित फास्ट-कंटेंट साइकल मस्तिष्क पर स्थायी तनाव का कारण बन रहा है। पांचवां और सबसे चिंताजनक कारण है — प्री-एक्सिस्टिंग कंडीशंस की अनदेखी। जैसे कि डायबिटीज, हाई बीपी, फैटी लिवर, हाई कोलेस्ट्रॉल आदि। भारत में एक बड़ी आबादी को यह बीमारियां होती हैं लेकिन वे या तो जांच नहीं कराते या नजरअंदाज कर देते हैं। नतीजा – हार्ट अटैक अचानक आता है।

नियमित स्वास्थ्य जांच और लाइफस्टाइल मैनेजमेंट

तो सवाल यह नहीं होना चाहिए कि “क्या वैक्सीन से हार्ट अटैक हो रहा है?” बल्कि सवाल होना चाहिए कि क्या आपने हाल ही में अपनी जांच करवाई है? क्या आपकी लाइफस्टाइल हृदय के अनुकूल है? क्या आप तनाव में रहते हैं? क्या आप पर्याप्त नींद लेते हैं? क्या आप कैफीन या एनर्जी ड्रिंक्स का अत्यधिक सेवन तो नहीं कर रहे?
विशेषज्ञों की राय है कि इस संकट से निपटने के लिए तीन स्तरों पर काम करना होगा — जन-जागरूकता, नियमित स्वास्थ्य जांच और लाइफस्टाइल मैनेजमेंट। स्कूल स्तर से ही हेल्थ एजुकेशन को सिलेबस का हिस्सा बनाना होगा। जिम को रेगुलेट करने की जरूरत है, जिससे वहां उचित ट्रेनिंग और मेडिकल गाइडेंस हो। कंपनियों को वर्क-लाइफ बैलेंस को प्रोत्साहित करना चाहिए।

रोजमर्रा की आदतों का परिणाम

व्यक्तिगत स्तर पर हमें अपनी आदतों पर ध्यान देना होगा। सुबह की सैर, ध्यान, योग, पर्याप्त पानी, घर का बना ताजा भोजन, सात घंटे की नींद और समय-समय पर ब्लड टेस्ट, ईसीजी, और ब्लड प्रेशर की जांच अब विकल्प नहीं बल्कि आवश्यकता है। यह समय अफवाहों से घबराने का नहीं, बल्कि जागरूक होकर जीवनशैली में परिवर्तन का है। हार्ट अटैक कोई संयोग नहीं, बल्कि हमारी रोजमर्रा की आदतों का परिणाम होता है।

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