

आज के डिजिटल दौर में फोन कॉल हमारी रोजमर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिना इजाज़त कॉल रिकॉर्ड करना निजता का उल्लंघन है? जानिए भारत में कॉल रिकॉर्डिंग से जुड़े कानून, कोर्ट के फैसले और अपने अधिकार ताकि कोई आपकी निजता से खिलवाड़ न कर सके।
कॉल रिकॉर्डिंग पर कानून
New Delhi: आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन सिर्फ संचार का जरिया नहीं, बल्कि कई बार कानूनी सबूतों का अहम हथियार भी बन गया है। कई लोग निजी या व्यावसायिक कॉल्स को रिकॉर्ड करते हैं, लेकिन जब यही रिकॉर्डिंग किसी की छवि बिगाड़ने या ब्लैकमेलिंग के लिए इस्तेमाल होती है, तो मामला गंभीर कानूनी अपराध बन जाता है।
कॉल रिकॉर्डिंग को लेकर भारतीय कानून क्या कहता है?
भारत में कॉल रिकॉर्डिंग को लेकर कोई एक विशेष कानून नहीं है, लेकिन अलग-अलग कानूनों की धाराएं मिलकर इसका कानूनी ढांचा तैयार करती हैं। मुख्य रूप से आईटी एक्ट, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, और निजता के अधिकार (Right to Privacy) से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले इस पर लागू होते हैं।
बिना सहमति कॉल रिकॉर्डिंग पर कोर्ट के बड़े फैसले
1. के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत सरकार (2017): सुप्रीम कोर्ट ने निजता को मूल अधिकार माना। बिना सहमति कॉल रिकॉर्ड करना निजता का उल्लंघन हो सकता है।
2. मानव रंजन त्रिपाठी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022): राजनीतिक कॉल रिकॉर्डिंग वायरल करने को कोर्ट ने अपराध माना।
3. राजतिलक दास मामला (2009): वैवाहिक विवाद में बिना इजाज़त कॉल रिकॉर्डिंग कोर्ट ने खारिज की।
4. आर. एम. मलकानी बनाम महाराष्ट्र (1973): अगर कॉल रिकॉर्ड करने वाला खुद बातचीत में शामिल हो, तो रिकॉर्डिंग गैरकानूनी नहीं मानी जाएगी।
5. जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट (2013): कॉल में शामिल व्यक्ति की रिकॉर्डिंग वैध मानी जा सकती है।
ऑटो-कॉल रिकॉर्डिंग ऑन होना अपराध है?
यदि आप उस बातचीत में शामिल हैं, तो कॉल रिकॉर्डिंग अपराध नहीं है। लेकिन यदि इसका इस्तेमाल किसी को धमकाने, ब्लैकमेल करने या बदनाम करने के लिए किया जाए, तो यह अपराध की श्रेणी में आता है। किसी और की बातचीत चोरी-छिपे रिकॉर्ड करना या हैकिंग करना कानूनन सख्त मना है।
नैतिक और वैध कॉल रिकॉर्डिंग के नियम
एडवोकेट सरोज कुमार सिंह के अनुसार, अगर आप रिकॉर्डिंग के उद्देश्य को स्पष्ट करते हैं और सामने वाले से सहमति लेते हैं, तो यह नैतिक और कानूनी रूप से सही हो सकता है। उदाहरण के लिए कानूनी दस्तावेजीकरण, ग्राहक सेवा सुधार और प्रमाण के रूप में उपयोग करना। रिकॉर्डिंग को पासवर्ड या एन्क्रिप्शन से सुरक्षित रखना भी ज़रूरी है।
क्या रिकॉर्डिंग कोर्ट में सबूत बन सकती है?
हां, लेकिन केवल तभी जब रिकॉर्डिंग करने वाला उस बातचीत में शामिल हो और रिकॉर्डिंग असली हो और कोई कानून न तोड़ती हो कोर्ट रिकॉर्डिंग को सबूत मान सकता है, लेकिन निजता का उल्लंघन हुआ या नहीं यह भी देखा जाता है।
कैसे पहचानें कि आपकी कॉल रिकॉर्ड की जा रही है?
• कॉल के दौरान क्लिकिंग या बीप की आवाज़
• आवाज में गड़बड़ी या लैग
• कॉल में किसी तीसरे की अनजानी आवाज़
यदि ऐसा कुछ महसूस हो, तो तुरंत सतर्क हो जाएं।
अगर कोई धमका रहा है या ब्लैकमेल कर रहा है तो क्या करें?
ऐसे मामलों में आप खुद कॉल में शामिल हैं तो रिकॉर्डिंग करना वैध है। सबूत के तौर पर पुलिस को दें और सोशल मीडिया पर शेयर न करें, वरना आपके खिलाफ केस बन सकता है
कॉल सेंटर रिकॉर्डिंग के नियम क्या हैं?
कस्टमर केयर पर कॉल करते समय जो यह बताया जाता है कि यह कॉल रिकॉर्ड की जा रही है तो इसे आपकी सहमति माना जाता है। इसका उद्देश्य सिर्फ सेवा गुणवत्ता में सुधार होता है, दुरुपयोग की अनुमति नहीं।
क्या वीडियो कॉल पर भी वही नियम लागू होते हैं?
जी हां, वीडियो कॉल रिकॉर्डिंग भी निजता के अंतर्गत आती है। बिना सहमति वीडियो कॉल रिकॉर्ड करना, उसे वायरल करना और बदनाम करने के लिए इस्तेमाल करना आईटी एक्ट की धारा 66E और भारतीय दंड संहिता (BNS) की संबंधित धाराएं लागू हो सकती हैं।