यूपी उपचुनाव: सपा के गढ़ करहल में खिल सकेगा भाजपा का कमल? जानिये इस हॉट सीट का दिलचस्प इतिहास
उत्तर प्रदेश में 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिये राजनैतिक दलों ने सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। पहला नामांकन करहल सीट के लिये किया गया है। क्या इस बार भाजपा करहल में सपा के गढ़ में सेंध लगा सकेगी? पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में 10 में से 9 विधानसभा सीटों (Assembly Seats) पर होने वाले चुनाव (Election) की रणभेरी बज चुकी है। सभी दल अपनी-अपनी सियासी बिसात को बिछाने-सजाने में लगे हुए हैं। ये उपचुनाव (By Election) 2027 में होने वाले यूपी विधानसभा चुनाव (UP Assembly Elections) के सेमीफाइनल के रूप में देखे जा रहे हैं। इसलिये कोई भी राजनीतिक दल इसमे कोई कमी-कसर नहीं करना चाहता है।
सत्ताधारी भाजपा (BJP) की राह को रोकने के लिये कांग्रेस (Congress) और सपा (Samajwadi Party) फिर एक बार साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। सपा 10 में से 7 सीटों पर अपने प्रत्याशियों (Candidates) का ऐलान कर चुकी है।
यूपी उपचुनाव के लिये पहला नामांकन (Nominations) सोमवार को करहल (Karhal) विधानसभा के लिये किया गया। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) ने पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) समेत कई सपा नेताओं और सैफई परिवार के सभी सदस्यों के साथ शक्ति प्रदर्शन करते हुए अपना पर्चा दाखिल किया।
तेज प्रताप यादव के नामांकन के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दावा किया कि इस बार करहल से उनके चचेरे भाई और पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव की ऐतिहासिक जीत होगी। दरअसल, अखिलेश यादव के इस दावे के पीछे कई तथ्य है।
अखिलेश यादव की सीट
दरअसल, करहल सीट यूपी विधानसभा की हॉट सीटों में शुमार है। यहां से 2022 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने खुद चुनाव लड़ा और बड़ी जीत दर्ज की थी। तब उन्होंने भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को हराया था। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में कन्नौज से सांसद चुने जाने के बाद अखिलेश यादव को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर यह सीट छोड़नी पड़ी थी।
सैफई परिवार की गहरी पैठ
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मैनपुरी जनपद की करहल सीट पर हमेशा ही समाजवादी पार्टी का दबदबा रहा है। इसके कई राजनैतिक और सामाजिक कारण है। यह सपा संस्थापक मुलायम सिंह की जन्मभूमि सैफई से 4 किलोमीटर की दूरी पर है। नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव ने करहल के ही जैन इंटर कॉलेज में छात्र और शिक्षक दोनों की भूमिका निभाई थी। यह उनकी राजनीति का केंद्र भी रहा है। इसलिए, इसे उनकी कर्मस्थली भी कहा जाता है। इस नाते भी यहां के लोगों ने हमेशा नेताजी पर अपना भरोसा जताया है। करहल में पूरे सैफई परिवार की गहरी पैठ रही है।
करहल सीट का अस्तित्व
वर्ष 1956 में परिसीमन के बाद करहल सीट अस्तित्व में आई और 1957 में यहां पहला चुनाव हुआ। कांग्रेस की लहर के बाद जनता ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नत्थू सिंह यादव को चुना। 1957 के बाद के तीन चुनावों में स्वतंत्र पार्टी को यहां से जीत मिली। 1974 और 77 में भी नत्थू ने यहां से जीत दर्ज की। नत्थू सिंह को ही मुलायम सिंह का राजनीतिक गुरु माना जाता है। कहा जाता है कि नत्थू सिंह से प्रेरित होकर मुलायम सिंह ने शिक्षक की नौकरी छोड़ी और राजनीति में आये। मुलायम सिंह की राजनीति में आने के बाद इस सीट पर सपा का दबदबा रहा।
करहल सीट का चुनावी इतिहास
1993 में समाजवादी पार्टी का गठन होने के बाद से करहल सपा का गढ़ बन गया। यहां से सपा के कई नेता विधानसभा पहुंचे। करहल में 1993 से अब तक साइकिल हर बार तेज रफ्तार से दौड़ी है।
एक बार खिला कमल, सपा रही अजेय
वर्ष 1993 से 2022 के बीच सात विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने छह बार करहल सीट पर कब्जा किया। वर्ष 2002 में केवल एक बार भाजपा यहां जीत सकी। 2002 के उपचुनाव में भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के एक समय सबसे नजदीकी दोस्त रहे दर्शन सिंह के भाई सोबरन सिंह यादव को अपना प्रत्याशी बनाया था। सोबरन सिंह ने यहां पहली बार कमल खिलाया लेकिन उनकी जीत का अंतर भी महज 925 वोटों का था। बाद में सोबरन सिंह यादव सपा में शामिल हो गये। इसके बाद दो दशक से सपा करहल में अजेय बनी हुई है। पिछले 22 वर्षों में भाजपा के लिये करहल जीतना महज एक ख्वाब साबित हुआ है।
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करहल का जातीय गणित
करहल विधानसभा सीट पर मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 3,75,000 है। जिनमें सबसे अधिक 1,30,000 वोटर्स यादव हैं। यादव के बाद यहां सबसे अधिक मतदाता अनुसूचित जाति के बताये जाते हैं, जिनकी संख्या 55 से 60 हजार के बीच है। मुस्मिल मतदाताओं की संख्या भी लगभग 25 हजार है। ब्राह्मणों की संख्या 20,000 और बनिया समाज से जुड़े वोटर्स की संख्या 15 हजार के आसपास है। अन्य मतदाताओं में शाक्य, ठाकुर, पाल, बघेल आदि है।
पीडीए वोटर्स की बड़ी संख्या
अखिलेश यादव औऱ समाजवादी पार्टी ने पिछला लोकसभा चुनाव पीडीए के नाम पर लड़ा था। अखिलेश यादव यूपी उपचुनाव में भी जोर-शोर से पीडीए की बात कर रहे हैं। करहल में पीडीए मतदाताओं की बड़ी संख्या है, जो किसी भी प्रत्याशी को एकतरफा जीत दिलवा सकते हैं।
सपा के गढ में भाजपा लगायेगी सेंध?
भाजपा ने अभी तक करहल सीट से अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। माना जा रहा है कि भाजपा तमाम तरह के समीकरणों पर काम करने के बाद ही करहल से किसी दमदार प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर सकती है। भाजपा किसी ऐसे प्रत्याशी पर दाव खेल सकती है, जो करहल में यादव वोटरों को साध सके। ऐसे में भाजपा से कोई चौंकाने वाला नाम और चेहरा भी सामने आ सकता है। भाजपा हर हाल में किसी बड़े चेहरे के जरिये सपा के गढ़ में सेंध लगाने की तैयारी में है। ताकि 22 सालों से करहल में बनवास झेल रही भाजपा यहां से अपने उम्मीदवार को विधानसभा पहुंचा सके। भाजपा के लिये करहल की जीत ऐतिहासिक हो सकती है।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भाजपा करहल में 2002 में मिली जीत के इतिहास को दोहरा सकेगी? या फिर यहां सपा का एकछत्र राज कायम रहेगा? इस सवाल का जवाब 23 नवंबर को चुनाव नतीजों के साथ ही सामने आयेगा।