महराजगंज: रोटी के निवाले के लिए कूड़ा करकट में बिखरता मासूमों का बचपन

डीएन ब्यूरो

जिस उम्र में बच्चों के हाथों में कलम, किताब और मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा होना चाहिए, उम्र की उस दहलीज की शुरुआत यदि कूड़ा करकट में हो तो ऐसे में उनके भविष्य और सक्षम राष्ट्र के कर्णधार बनने की क्या उम्मीदें हो सकती हैं? सर्व शिक्षा अभियान का स्लोगन सब पढ़ें, सब बढ़ें उस समय धूल में मिल जाता है जब बचपन कूड़े के ढेर में बिखरने लगता है। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज़ की खास खबर..

कूड़ा बीनते बच्चें
कूड़ा बीनते बच्चें


सिसवा बाजार(महराजगंज): शिक्षा एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा समय-समय पर कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर हर बच्चे को शिक्षा के लिए प्रेरित करने का दावा किया जाता है। लेकिन सिसवा नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में घूम रहे बच्चें विभाग की इस धारा से वंचित हैं। इसका कारण विभाग द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा प्रसार अभियान या फिर इस प्रकार के अभियान को हैंडल करने वाले अधिकारियों की कार्यप्रणाली में खामियों को कहा जा सकता है।

यह भी पढ़ें: महराजगंज: नए शिक्षा सत्र से पहले बीएसए की दो टूक.. गैर मान्यता प्राप्त स्‍कूल खुले तो नपेंगे खंड शिक्षा अधिकारी

सिसवा नगर के विभिन्न कस्बे के रहने वाले परिवार भी शिक्षा की लौ से दूर हैं। इन परिवारों के दर्जनों बच्चों का बचपन कूड़े के बोझ तले दबा जा रहा है। यहां कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जो अपने लाचार माता-पिता का हाथ बंटा रहे हैं लेकिन स्वयं शिक्षा से वंचित होते जा रहे हैं। ऐसे में उस परिवार के भविष्य के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। ऐसे में शिक्षा विभाग को चाहिए कि इन अभिभावकों को सरकार द्वारा शिक्षा क्षेत्र में लागू कल्याणकारी योजनाओं से अवगत कराए।

यह भी पढ़ें: एंटी करप्‍शन की टीम का एसआई पर शिकंजा, 20 हजार की घूस लेते पकड़ा

सिसवा कस्बे में  सुबह करीब 5 बजे से ही नंगे पैरों, तन पर फटे-पुराने कपड़े पहने और कंधे पर बोरा लिए दर्जनों बच्चे कूड़ा बीनने के लिए निकल पड़ते हैं। गर्मी हो या सर्दी अपनी आजीविका के लिए कूड़े के ढेर को छांटना इनकी मजबूरी हो गई है।

यह भी पढ़ें: आईएएस अमित सिंह बंसल की गोरखपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष पद से छुट्टी

 

एक ओर स्कूलों में जब बाल दिवस के मौके पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है उस दौरान ये बच्चे सड़कों पर कूड़ा एकत्रित करते हैं। इन्हें बाल दिवस से कोई मतलब नजर नहीं आता।  इन बच्चों के माता-पिता भी कमजोर आर्थिक हालात के चलते चाहकर भी अपने बच्चों को शिक्षा दिलाने में असमर्थ हैं। 










संबंधित समाचार