साक्षी मलिक की आंखों में आंसू मोदी सरकार की देन है, पढ़िए पूरी खबर

डीएन ब्यूरो

कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि ओलंपिक विजेता पहलवान साक्षी मलिक की आंखों में आंसू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की देन है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

आंसू मोदी सरकार की देन है
आंसू मोदी सरकार की देन है


नयी दिल्ली: कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि ओलंपिक विजेता पहलवान साक्षी मलिक की आंखों में आंसू प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की देन है।

उल्लेखनीय है कि आंखों में आंसू लिये रियो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता साक्षी मलिक ने गुरुवार को यहां बृज भूषण शरण सिंह के विश्वासपात्र संजय सिंह की भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) के अध्यक्ष पद के चुनाव में जीत का विरोध करते हुए अपने कुश्ती के जूते टेबल पर रखे और कुश्ती से संन्यास लेने की घोषणा की।

कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘इन चैंपियन पहलवानों ने 1.4 अरब भारतीय नागरिकों का गौरव बढ़ाया। आज, हमारा सिर शर्म से झुक गया है कि उन्होंने संन्यास लेने का फैसला किया है क्योंकि उनके खिलाफ यौन हिंसा का अपराधी अपने एक प्रतिनिधि के माध्यम से भारतीय कुश्ती चला रहा है।’’

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘पहलवानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान गृह मंत्री ने न्याय का आश्वासन दिया था, लेकिन आज ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा ने आरोपी सांसद को बचाना जारी रखा है।’’

कांग्रेस ने अपने आधिकारिक हैंडल के जरिये ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘ये आंसू मोदी सरकार की देन हैं। देश की बेटी साक्षी मलिक न्याय मांग रही थी। सरकार के तमाम लोगों से मिली, धरना दिया, लाठियां खाईं और आज इतना मज़बूर हो गई कि सन्यास ले लिया। दुर्भाग्य की बात है... देश-विदेश में अपनी ताकत का लोहा मनवाने वाली देश की बेटी आज कह रही है- मैं हार गई।’’

कांग्रेस नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने भी मलिक के संन्यास लेने पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्ति की।

उन्होने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, “आँसूओं की बूँद बूँद का हिसाब लेंगे, आज नहीं तो कल लेंगे।”

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार डब्ल्यूएफआई के निवर्तमान अध्यक्ष बृजभूषण के करीबी संजय गुरुवार को यहां हुए चुनाव में डब्ल्यूएफआई अध्यक्ष बने और उनके पैनल ने 15 में से 13 पद पर जीत हासिल की। इस नतीजे से तीन शीर्ष पहलवान मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया को काफी निराशा हुई जिन्होंने महासंघ में बदलाव लाने के लिए काफी जोर लगाया था।










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