Rameshwaram Pamban Bridge: भारतीय इंजीनियरिंग के कमाल के साथ जानिये नये पंबन ब्रिज की अद्भुत बातें और इतिहास

भारतीय इंजीनियरिंग का नया कमाल भी है। नया पंबन ब्रिज अब पुराने पंबन ब्रिज का स्थान लेगा। पुराने पंबन ब्रिज का इतिहास, उसकी उपयोगिता और निर्माण की कहानी। पढ़ें डाइनामाइट न्यूज की पूरी खबर

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 6 April 2025, 7:45 PM IST
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रामेश्वरम: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामनवमी के मौके पर देश को एक बड़ी सौगात दी। इस सौगात ने पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींची है, खासकर इंजीनियरिंग के क्षेत्र में। तमिलनाडु के रामेश्वरम में भारत ही नहीं बल्कि एशिया के पहले वर्टिकल लिफ्ट समुद्री रेलवे पुल न्यू पंबन ब्रिज का उद्घाटन किया। पीएम नरेंद्र ने पंबन ब्रिज को तकनीक और विरासत का संगम बताया। यह भारतीय इंजीनियरिंग का नया कमाल भी है। नया पंबन ब्रिज अब पुराने पंबन ब्रिज का स्थान लेगा। 

आज हम पंबन ब्रिज से जुड़ी खास जानकारियां देने का प्रयास करेंगे। साथ ही बताएंगे पुराने पंबन ब्रिज का इतिहास, उसकी उपयोगिता और निर्माण की कहानी। इसके साथ ही बताएंगे नये पंबन ब्रिज वो सभी बातें, जिसे जानकर आप भी भारतीय इंजीनियरिंग और तकनीक का लोहा मानने लगेंगे। यानि पंबन ब्रिज से जुड़ी हर बात।

 पंबन ब्रिज और क्या है इसका महत्व?

पबंन तमिलनाडू का एक शहर है और रामेश्वरम की यात्रा करने वाले तीर्थयात्रियों के लिए द्वीप पर यह पहला स्टेशन है। रामेश्वरम भी तमिलनाडु राज्य के आखिर छोर पर रामनाथपुरम जिले में बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर के बीच स्थित एक द्वीप है। यानि रामेश्वरम मुख्य भूमि से अलग एक द्वीप है। यानि मुख्य भूमि या शहर को रामेश्वरम द्वीप से जोड़ने वाले पंबन ब्रिज का नाम पंबन शहर के नाम पर रखा गया है।

यह पुल सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व वाला है। रामायण के अनुसार, राम सेतु का निर्माण रामेश्वरम के पास धनुषकोडी से ही शुरू हुआ था। 

पीएम मोदी ने आज जिस पबंन पुलि का उद्घाटन किया, वो यह देश की इंजीनियरिंग के कमाल का बेहतरीन उदाहरण है। ये देश का पहला वर्टिकल सी-लिफ्ट ब्रिज है, जिसकी लंबाई 2.08 किलोमीटर है और इसमें 99 स्पैन हैं। इसमें 72.5 मीटर लंबा वर्टिकल लिफ्ट स्पैन है, जो 17 मीटर तक ऊंचा उठ सकता है। इससे बड़े जहाजों के आसानी से गुजरने की सुविधा होगी, जबकि ट्रेन संचालन में कोई बाधा नहीं आएगी। पंबन पुल के उद्घाटन के मौके पर भी एक तटरक्षक जहाज को यहां से रवाना किया गया। जैसे ही पुल का वर्टिकल लिफ्ट हिस्सा ऊपर उठा, वैसे ही जहाज उसके नीचे से गुजर गया। पुल की परिचालन तकनीक ने देखने वाले के दिल अमिट छाप छोड़ दी। 

दो रेल ट्रैक के लिए डिजाइन

पुल की मजबूती के लिए इसमे 333 पाइल्स और 101 पियर्स/पाइल कैप्स का उपयोग किया गया है। यह पुल दो रेल ट्रैक के लिए डिजाइन किया गया है और भविष्य में विस्तार की संभावना को ध्यान में रखते हुए इसे तैयार किया गया है। पुल को पूरी तरह जंगरोधी बनाया गया है। समुद्री पर्यावरण भी इसे नुकसान नहीं पहुंचायेगा। इसकी निर्माण लागत 700 करोड़ रुपये से अधिक है।
नया पंबन ब्रिज सिर्फ स्टील और कंक्रीट का एक साधारण ढांचा नहीं है। बल्कि ये भारतीय इंजीनियरिंग की पराकाष्ठा का प्रतीक भी है, जो तकनीकी कौशल और नवाचार की अद्भुत मिसाल पेश करता है। यह सस्पेंशन ब्रिज तभी खोला जाएगा जब कोई जहाज़ इस रास्ते से गुज़रेगा। 

1911 में इस पर काम शुरू

नये पंबन ब्रिज का भले ही आज उद्घाटन किया गया हो लेकिन पंबन ब्रिज की कहानी एक शताब्दी से अधिक पुरानी है। पंबन ब्रिज बनाने की योजना पर 1911 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने काम करना शुरू किया था। इसका उद्देश्य धनुषकोडी यानि भारत और थलाईमन्नार यानि श्रीलंका के बीच एक ऐसे सुविधाजनक समुद्री मार्ग को स्थापित करना था, जिसके नीचे से जहाज़ गुज़र सकें. इस उद्देश्य से एक सस्पेंशन ब्रिज के निर्माण को मंज़ूरी दी गई और साल 1911 में इस पर काम शुरू हुआ। ये वही साल था जब भारत की राजधानी को कोलकाता से दिल्ली बनाया गया। 

तकनीक के पीछे स्पेनिश इंजीनियर

योजना के दो साल बाद पहला पबंन ब्रिज बनकर तैयार हुआ और 24 फ़रवरी 1914 को चेन्नई एग्मोर से धनुषकोडी तक पहली ट्रेन चलाई गई। इससे यात्रियों को एक ही टिकट पर चेन्नई से होते हुए कोलंबो तक यात्रा करने की सुविधा दी गई। इस ब्रिज को अमेरिका की शेर्ज़र रोलिंग लिफ्ट ब्रिज कंपनी ने डिज़ाइन किया था और इसका निर्माण इंग्लैंड की एक कंपनी ने किया। इस ब्रिज को तब 'शेर्ज़र ब्रिज' कहा गया, क्योंकी इसके डिज़ाइन और तकनीक के पीछे स्पेनिश इंजीनियर शेर्ज़र का योगदान था।

24 करोड़ रुपये की लागत

पुराना ब्रिज समुद्र तल से 12.5 मीटर ऊंचाई पर स्थित है। इसकी लंबाई 2.05 किलोमीटर है और इस ब्रिज में कुल 143 स्तंभ हैं। इसके मध्य में 289 फीट लंबा एक सस्पेंशन सेक्शन है। 1964 में धनुषकोडी में आए चक्रवाती तूफ़ान के दौरान पबंन रेलवे ब्रिज के 124 स्तंभ बह गए थे। इस घटना के बाद 24 करोड़ रुपये की लागत से ब्रॉडगेज रेलवे ट्रैक बनाया गया और कई स्तंभों को बदलने के साथ ही अन्य स्तंभों को ब्रॉड गेज मानकों के अनुसार बनाया गया।

पुराना ब्रिज इतिहास

लगभग 100 साल की सेवाओं के बाद आईआईटी मद्रास के विशेषज्ञों की एक टीम ने पाया कि पबंन ब्रिज में अत्यधिक कंपन होने लगी है और इस पर यात्रा करना जोखिम हो सकता है। समय-समय पर नये ब्रिज के जरूरत बताई गई। 23 दिसंबर 2022 से इस ब्रिज पर सभी ट्रेन सेवाओं पर रोक लगा दी गई। यानि ये पुराना पबन ब्रिज तब बंद कर दिया गया। अब रेलवे प्रशासन ने पुराने पंबन सस्पेंशन ब्रिज को हटाने का निर्णय लिया है। जल्द ही ये पुराना ब्रिज इतिहास की बातें हो जायेगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग

नए पबंन रेलवे ब्रिज के निर्माण को 2019 में मंज़ूरी मिली थी। एक मार्च 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इसकी आधारशिला रखी। उस समय लागत 545 करोड़ रुपये आंकी गई थी लेकिन काम बढ़ने के साथ लागत भी बढ़ती गई।

लेकिन लगभग 6 साल बाद आज इस ब्रिज का उद्घाटन हो गया। इसके साथ ही समुद्र की लहरों पर तैरता भारत का सपना आज हकीकत बन गया। यह महज एक पुल नहीं बल्कि भविष्य और तकनीक के बीच का सेतु और हेतु भी है।

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