महराजगंज: हार के डर से विद्रोहियों के खिलाफ कार्यवाही की हिम्मत नही जुटा पा रही भाजपा

शिवेंद्र चतुर्वेदी

निकाय चुनाव में जिले में जगह-जगह सत्तारुढ़ भाजपा अपने ही कार्यकर्ताओं के बगावत की वजह से बैकफुट पर नज़र आ रही है। सिर से पानी ऊपर हो जाने के बावजूद पार्टी, एक भी कार्यकर्ता के ऊपर अनुशासनात्मक कार्यवाही नही कर पायी है जिससे जिले में प्रत्याशियों की हालत नाजुक हो चली है। पूरा विश्लेषण डाइनामाइट न्यूज़ की इस रिपोर्ट में..

भाजपा प्रत्याशी का प्रचार वाहन
भाजपा प्रत्याशी का प्रचार वाहन


महराजगंज। जिले में नगर पालिका की दो और नगर पंचायत की पांच सीटों पर मतदान 29 नवंबर को होगा। अधिकांश जगहों पर पार्टी प्रत्याशी विपक्षियों से ज्यादा अपने ही दल के भीतर के बगावतियों से दो-चार है। 'पार्टी विद डिफरेंस' का नारा बुलंद करने और अपने को सबसे ज्यादा अनुशासित होने का दावा करने वाली सत्तारुढ़ पार्टी की हालत इतनी चिंताजनक है कि सरेआम बगावत कर चुनाव लड़ने वाले कार्यकर्ताओं तक को पार्टी बाहर का रास्ता नही दिखा पा रही है। जिससे पार्टी प्रत्याशी की हालत तो खस्ता हो ही रही है साथ ही बगावतियों के हौसले भी बुलंद हो रहे है।

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सबसे बुरी हालत सदर में

डाइनामाइट न्यूज़ की पड़ताल में सामने आया कि नगर पालिका अध्यक्ष पद के सदर में उम्मीदवार कृष्ण गोपाल जायसवाल को संगठन से ही बड़ी चुनौती मिल रही है। पार्टी के कई कद्दावर नेता यह मानते है कि हालत यही रही तो अंतिम दौर में समीकरण खिलाफ भी हो सकते है।

राजेश मद्धेशिया का प्रचार वाहन

 

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राजेश के खिलाफ कार्यवाही से क्यों डर रही है पार्टी?

बागी बनकर 'गदा' भांजने वाले प्रत्याशी राजेश मद्देशिया खुलेआम बागी बन चुनाव मैदान में उतरे हैं लेकिन पार्टी संगठन की हिम्मत नही पड़ रही कि वे इनके खिलाफ कोई कार्यवाही कर सके। संगठन को डर है कि कार्यवाही हुई तो बगावत की आंधी और तेज बह सकती है।

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तीन पटेल नेताओं की तपिश

यही नही टिकट से वंचित होने वाले तीन प्रमुख पटेल नेताओं की तपिश में भी सदर के प्रत्याशी बुरी तरह झुलस रहे हैं। अंदर की खबर ये है कि ये 'गदा' भांज सकते हैं। हालांकि अभी तक किसी ने अपने पत्ते नही खोले हैं। इन समीकरणों के चलते परिस्थितियां चाहें जो हो लेकिन नुकसान भाजपा उम्मीदवार का होना तय माना जा रहा है। अब यह नुकसान कितना होगा यह तो चुनाव परिणाम बतायेगा।

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जातिगत समीकरण भी भाजपा के खिलाफ

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सदर सीट पर कई वैश्य उम्मीदवार मैदान में है। इसका भी सीधा नुकसान वोटों के लिहाज से भाजपा प्रत्याशी को होना तय है। यही नही जीएसटी और नोटबंदी भी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। इसका जवाब देते नेताओं से नही बन रहा।

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क्या कहना है जिलाध्यक्ष का

जब इस मामले पर डाइनामाइट न्यूज़ ने जिलाध्यक्ष अरुण शुक्ला से बात की तो उन्होंने कहा कि सारा मामला पार्टी हाईकमान के संज्ञान में है। अब आगे का निर्णय हाईकमान ही लेगा।

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