Uttar Pradesh: यूपी में RTI Act के तहत अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई, चार अफसरों के खिलाफ गिरफ़्तारी वारंट

आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत एक आवेदक को जानकारी उपलब्ध नहीं कराने के लिए बिजली विभाग के चार अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 11 February 2024, 12:40 PM IST
google-preferred

लखनऊ: उत्तर प्रदेश सूचना आयोग ने जानबूझकर आयोग के समन की अनदेखी करने और आरटीआई (सूचना का अधिकार) के तहत एक आवेदक को जानकारी उपलब्ध नहीं कराने के लिए बिजली विभाग के चार अधिकारियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

यह अपने आप में हैरान करने वाला मामला है क्योंकि यह कार्रवाई 1911 में दिए गए बिजली के एक कनेक्शन से संबंधित है।

इसकी पुष्टि करते हुए, राज्य सूचना आयुक्त अजय कुमार उप्रेती ने बताया, ‘‘यह पहली बार है कि 2005 में आरटीआई अधिनियम अस्तित्व में आने के बाद से उत्तर प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने आरोपी अधिकारियों के खिलाफ इतनी कड़ी दंडात्मक कार्रवाई शुरू की है।’’

अनिल वर्मा (अधीक्षण अभियंता), आरके गौतम (कार्यकारी अभियंता), उपमंडल अधिकारी सर्वेश यादव और उपमंडल अधिकारी रवि आनंद के खिलाफ हाल ही में गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। गिरफ्तारी वारंट राज्य सूचना आयुक्त उप्रेती द्वारा आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 18 (3) के प्रावधानों और सीपीसी (सिविल प्रक्रिया संहिता) 1908 में दी गई शक्तियों के अनुसार जारी किया गया है।

उप्रेती ने काशी क्षेत्र के डीसीपी (पुलिस उपायुक्त) प्रमोद कुमार को इन अधिकारियों को 20 फरवरी 2024 को आयोग के समक्ष पेश करने का आदेश दिया है, जब इस मामले की सुनवाई लखनऊ में फिर से होगी।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक यह मामला वाराणसी के कजाकपुरा इलाके में उमा शंकर यादव के नाम पर एक जनवरी 1911 के बिजली कनेक्शन से जुड़ा है। बिजली विभाग ने इस कनेक्शन पर 2.24 लाख रुपये का बिल बना दिया और जब उपभोक्ता (उमा शंकर यादव) ने बिल पर आपत्ति जतायी और भुगतान करने से इनकार कर दिया, तो विभाग ने उसके खिलाफ आरसी (वसूली चालान) जारी कर दी।

यादव ने बिल में सुधार के लिए सभी विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन उनकी दलीलों को अनसुना कर दिया गया। निराश होकर यादव ने आरटीआई का सहारा लिया।

एक सूत्र ने कहा, ‘‘मामले की सुनवाई करते हुए, आयोग ने अधिकारियों से प्रश्न पूछे थे... क्या 1911 में वाराणसी में उपभोक्ताओं को बिजली दी जा रही थी? बिल की गणना कैसे की गई और प्रति यूनिट लागत क्या थी? वह कौन-सी कंपनी थी जो तब उपभोक्ताओं को बिजली दे रही थी और क्या तब यूपीपीसीएल (उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड) अस्तित्व में थी?''

हालांकि, बार-बार बुलाए जाने के बावजूद बिजली विभाग के अधिकारियों ने जवाब नहीं दिया, जिसके कारण आयोग को अंततः उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी करना पड़ा।

डीसीपी प्रमोद कुमार को संबोधित करते हुए और बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट में कहा गया है, ‘‘प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि ये अधिकारी जानबूझकर आयोग के आदेशों की अनदेखी/अवज्ञा कर रहे हैं इसलिए, आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 और सीपीसी 1908 की धारा 18(3) के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए आपको इन अधिकारियों को गिरफ्तार करने और आयोग के समक्ष पेश करने का आदेश देता है।

No related posts found.