फर्जी FIR कांड: पुलिसिया थ्योरी में छेद ही छेद, अपने ही बुने जाल में फंसे महराजगंज के एसपी व एएसपी

जय प्रकाश पाठक

महराजगंज जिले में एक कुख्यात गुंडे और गैंगेस्टर को सामाजिक कार्यकर्ता बनाकर वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ दर्ज कराये गये फर्जी एफआईआर के मामले में दो दिन पहले आम जनता का भारी विरोध देखने को मिला। एक स्वर से इस केस की विवेचना सीबीआई से कराने की मांग ने जोर पकड़ ली है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव:

पुलिस-प्रशासन व अपराधियों का महराजगंज जिले में खतरनाक गठजोड़
पुलिस-प्रशासन व अपराधियों का महराजगंज जिले में खतरनाक गठजोड़


लखनऊ: भारत-नेपाल सीमा पर स्थित कामधेनू गाय सरीखे महराजगंज जिले के अनुभवहीन पुलिस अधीक्षक रोहित सिंह सजवान और कई भयानक कांडो को अंजाम देने वाले उनके खास जोड़ीदार अपर पुलिस अधीक्षक आशुतोष शुक्ला द्वारा बुने गये फर्जी एफआईआर कांड में दोनों खुद-ब-खुद बुरी तरह फंसते दिख रहे हैं। पुलिस द्वारा रची गयी कहानी में छेद ही छेद है। 

महज सात साल की नौकरी का अनुभव रखने वाले रोहित सिंह सजवान पहली बार किसी जिले का चार्ज पाये हैं। महराजगंज जिले में बतौर एसपी सजवान वर्ष 2018 से जमे हैं तो वहीं उनके डिप्टी यानि एएसपी आशुतोष शुक्ला वर्ष 2017 से लगातार जिले में जमकर बैटिंग कर रहे हैं। फर्जी एफआईआर कांड के मामले में अब ये दोनों अपना कैच फील्डर को थमा बैठे हैं और मामला निर्णय के लिए थर्ड अंपायर के पास है। 

निजी खुन्नस को मिटाने के लिए जिले के एसपी और एएसपी ने डाइनामाइट न्यूज़ के वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ जो फर्जी मुकदमा दर्ज कराया है वह ठीक उसी प्रकार का है, जैसे कोई अपराधी कहे कि साहब.. फलां अधिकारी फर्जी डिग्री के आधार पर नौकरी कर रहा है, इसके बाद झूठी तहरीर पर संबंधित को अपना पक्ष रखने का मौका दिये बगैर सीधे मुकदमा कायम कर लिया जाये। 

गैंगेस्टर एक्ट में कुछ दिन पहले ही जमानत पर जेल से छूटकर बाहर निकले जिस अपराधी पर जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन को रासुका लगाना चाहिये, उसकी अवैध संपत्तियों की जब्ती, कुर्की, नीलामी करनी चाहिये, ऐसे कुख्यात अपराधी का इस्तेमाल एसपी और एएसपी ने निजी स्वार्थ के लिए देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों के खिलाफ कर गंभीर किस्म का आपराधिक कृत्य किया है। यह आपराधिक कृत्य पुलिस-प्रशासन और अपराधियों के गठजोड़ की पोल खोल रहा है।

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देश के कई जाने-माने कानूनविदों से संपर्क कर डाइनामाइट न्यूज़ ने इस एफआईआऱ के कंटेंट को दिखाया और उसके कानूनी पहलूओं को बारीकी से समझा तो हैरान करने वाली जानकारी निकलकर सामने आयी।

देश के एक अत्यंत वरिष्ठ कानूनविद् की नज़र में एफआईआर संज्ञेय अपराध (Cognizable offence) पर लिखी जाती है न कि किसी चारा चोर, भ्रष्ट और जांच में बेईमान साबित होकर ईमानदार मुख्यमंत्री द्वारा निलंबित किये जा चुके अफसर के बारे में खबर लिखने पर। देश के इन नामचीन कानूनविद् के मुताबिक लगता है एसपी और एएसपी को बेसिक कानून की भी समझ नहीं है कि एफआईआर का मतलब क्या होता है और उसमें तथ्य क्या होते हैं? इन दोनों की जिले में तैनाती कैसे हो गयी? यह गंभीर परीक्षण का विषय है? 

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आरोप 1: अमरनाथ के खिलाफ क्यों चलायी खबर
सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिले के अनुभवहीन एसपी रोहित सिंह सजवान और कई भयानक कांडों को अंजाम देने वाले एएसपी आशुतोष शुक्ला का गौ-माता के चारा चोर तत्कालीन जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय से कौन सा गुप्त रिश्ता जिले में तीनों की एक साथ तैनाती के दौरान बना कि अमरनाथ के निलंबन की खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर निष्पक्ष तरीके से प्रकाशित होने से ये जोड़ी बौखला गयी और एक कुख्यात गैंगेस्टर को सामाजिक कार्यकर्ता बना फर्जी एफआईआर दर्ज करा दी गयी?

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आरोप 2: कोरोना महामारी में चलायी गलत खबर
एफआईआर के कंटेट के मुताबिक डाइनामाइट न्यूज़ पर आऱोप लगाया गया है कि सिर्फ संक्रमित थानों को सील करने की जगह 15 जिलों को सील करने की खबर दिखायी गयी। यह पूरी तरह से झूठ का पुलिंदा है। पांच साल के गौरवशाली इतिहास में डाइनामाइट न्यूज़ ने कभी भी गलत खबर नहीं चलायी। सभी को पता है कि यदि किसी अखबार में या मीडिया समूह में मानवीय चूकवश ऐसा हो भी जाता है तो नियमों के मुताबिक अगले दिन भूल-सुधार प्रकाशित होता है न कि किसी अपराधी को खड़ा कर फर्जी एफआईआऱ दर्ज करायी जाती है। वैसे भी इस खबर में शासन के प्रमुख अफसरों के बयानों के वीडियो लगाये गये थे। खबर के गलत प्रकाशन का सवाल ही पैदा नहीं होता। 

आरोप 3: गैंगेस्टर और हिस्ट्रीशीटर से पत्रकारों ने मांगी रंगदारी
बेहद हैरान करने वाली परम झूठी बात एफआईआर में जानबूझकर एसपी और एएसपी ने लिखवा दी कि डाइनामाइट न्यूज़ के पत्रकारों ने जिले के छंटे हुये कुख्यात गुंडे, मवाली, बदमाश, युवा व्यापारी निक्कू जायसवाल की हत्या में वांछित, हिस्ट्रीशीटर और चंद दिन पहले गैंगेस्टर एक्ट में जमानत पर छूटकर जेल से बाहर निकले घोषित अपराधी से रंगदारी मांगी। वाह कमाल की बात है, पत्रकारों ने भी रंगदारी उस अपराधी से मांगी, जिस पर खुद ही ब्लैकमेलिंग, अवैध वसूली, गुंडागर्दी और रंगदारी के अनगिनत मामले दर्ज हैं, वो भी सरकारी अधिकारियों से मारपीट, रंगदारी और वसूली के। अभी चंद महीने पहले कोतवाली थाने में डूडा के परियोजना अधिकारी से अवैध रंगदारी का मामला इस अपराधी पर दर्ज हुआ है। इतना चरित्रवान व्यक्ति यह आरोप लगा रहा है कि पत्रकारों ने उससे रंगदारी मांगी और एएसपी साहब ने सत्य मान लिया? कमाल है? क्या एडिशनल एसपी ने एफआईआर दर्ज कराने से पहले अपनी जांच में पत्रकारों का कोई बयान लिया? नहीं.. तो फिर क्यों? रंगदारी किस-किस पत्रकार ने मांगी? क्या सभी ने एक साथ मांगी? कब मांगी? कितने की मांगी? क्या रंगदारी की रकम का हस्तांतरण हुआ? हुआ तो कितने का हुआ? रकम देने का मोड क्या था? क्या रंगदारी मांगने का कोई वीडियो/फोटो/आडियो या कोई अन्य सबूत मिला था? जिसे एएसपी ने एफआईआर दर्ज करने से पहले अपनी जांच रिपोर्ट में शामिल किया? क्या सभी पत्रकारों ने एक साथ, एक समय, एक ही अपराधी से रंगदारी मांगी थी? य़दि नहीं तो सभी के खिलाफ कैसे रंगदारी की धारा का मुकदमा दर्ज कर लिया गया?

एएसपी की इस जांच रिपोर्ट को कैसे बिना उचित पर्यवेक्षण के अनुभवहीन एसपी ने हरी झंडी दिखाते हुए लिफाफे में बंद कर एक साजिश के तहत तहरीर संबंधित पुलिस को भेज दी। उस पुलिस वाले के शब्दों में, मैं जानता हूं, यह फर्जी एफआईआर है, दस दिन से यह गैंगेस्टर मेरे पास दौड़ रहा था लेकिन मैंने एफआईआर दर्ज नहीं की। जब बंद लिफाफा मुझे जिले से भिजवाया गया तो मैंने मजबूरी में यह एफआईआर दर्ज की। इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। 

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आरोप 4: बिना रजिस्ट्रेशन के चलाया जा रहा है न्यूज़ पोर्टल
गैंगेस्टर की तहरीर पर दर्ज एफआईआर में अगला आरोप लगाया है कि न्यूज़ पोर्टल फर्जी ढ़ंग से चल रहा है। उपरोक्त न्यूज़ पोर्टल का कहीं कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है और जिले के अधिकारियों/जिला सूचना कार्यालय से कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। सवाल यह है कि एसपी और एएसपी ने जांच, पर्यवेक्षण और अनुमोदन के खेल में ऐसा कौन सा सबूत पा लिया, जिससे गैंगेस्टर के झूठे आरोप को सत्य मान लिया गया?

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डंके की चोट पर डाइनामाइट न्यूज़ अपनी खबर के माध्यम से इस बात का ऐलान कर रहा है कि भारत सरकार के नियमों के तहत डाइनामाइट न्यूज़ पोर्टल पूरे विधिवत तरीके से निर्धारित मानकों को पूरा करते हुए अपने राष्ट्रीय मुख्यालय नई दिल्ली से पिछले पांच वर्षों से लगातार अंग्रेजी व हिंदी भाषा में संचालित हो रहा है और इसके प्रधान संपादक मीडिया के क्षेत्र में बीस साल का बेदाग अनुभव रखने वाले, भारत सरकार के मान्यता प्राप्त, देश के जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश हैं। जिन्होंने देश और दुनिया के कई दर्जन देशों में पत्रकारिता के कार्य के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के साथ उनके विशेष विमानों में साथ-साथ रहकर कवरेज की है। 20 साल के सार्वजनिक जीवन में देश के किसी भी थाने में एक अदद एफआईआऱ तक नहीं दर्ज है। ऐसे में राष्ट्र की सेवा करने वाले पत्रकारों के निष्कलंक जीवन को एक गहरी साजिश के तहत दागदार बनाने की नाकाम कोशिश करने वाले अफसरों को देश में प्रदत्त कानूनी और संवैधानिक तरीकों से मुंहतोड़ सबक सिखाकर बेनकाब किया जायेगा।

क्या एसपी औऱ एएसपी बतायेंगे कि उन्हें एफआईआऱ दर्ज करने से पहले अपनी जांच व आदेश में कौन सा ऐसा सबूत मिला, जिससे उन्होंने एक अति प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पोर्टल को फर्जी मानकर झूठा मुकदमा एक अपराधी को सामाजिक कार्यकर्ता बना दर्ज करा दिया? क्या आज तक, एबीपी न्यूज़ जैसे राष्ट्रीय मीडिया समूह अब दिल्ली की बजाय जिले-जिले आजमगढ़, आगरा, फतेहपुर, गोरखपुर में जाकर जिला सूचना कार्यालय में रजिस्ट्रेशन करायेंगे? कोई ऐसा नया नियम बना है क्या? फिर बिना सच्चाई पता किये, बिना संबंधित पत्रकारों का बयान लिये कैसे एएसपी और एसपी ने फर्जी एफआईआर दर्ज करा दी? क्या यह उनके द्वारा किया गया गंभीर किस्म का आपराधिक कृत्य नहीं है? क्या यह निर्दोष नागरिकों को वर्दी की आड़ में अपराधियों से गठजोड़ कर सार्वजनिक तौर पर जलील करने की नाकाम कोशिश नहीं है? इसी एफआईआर में छठवें नंबर पर लिखा गया है कि सोशल मीडिया पर पत्र वायरल है कि फर्जी न्यूज़ पोर्टलों पर कार्यवाही हो। यह कौन से पत्र हैं, इसकी वैधानिकता क्या है? क्या अब सरकारी अफसर शासनादेशों की बजाय अपराधियों के द्वारा दिये जा रहे सोशल मीडिया के झूठे पत्रों पर कार्यवाही करेंगे? 

आरोप 5: कापी-पेस्ट कर प्रकाशित की जाती हैं खबरें
अगला आरोप लगाया है कि न्यूज़ पोर्टल खबरों को चुराकर, कापी-पेस्ट कर खबर प्रकाशित करता है? संपादकीय और पत्रकारिता के कंटेंट से संबंधित इस बात की जांच का अधिकार क्या किसी पुलिस अधिकारी को है कि कौन सी खबर, कहां से किस पत्रकार ने प्रकाशित की? क्या यह जांच करना पुलिस का काम है? क्या इस आरोप पर पत्रकारों का पक्ष जाना गया? 

असली किरदार एसपी और एएसपी? या फिर है कोई और सफेदपोश? 

कुल मिलाकर पुलिस के दोनों अफसर एसपी और एएसपी चारा चोर अमरनाथ उपाध्याय से अपने गुप्त रिश्तों को निभाने के चक्कर में बुरी तरह फंस गये हैं? सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आम निर्दोष नागरिकों/पत्रकारों को फर्जी मुकदमों में फंसाने/हत्या के लिए इन अफसरों के हाथ में हथियार किसने थमाया है? क्या यही दोनों अफसर असली किरदार हैं या फिर पर्दे के पीछे से किसी और सफेदपोश ने सारा जाल बुना है? यह सब तभी साफ होगा जब सीबीआई अपना रडार बिछायेगी और इस दर्ज फर्जी मुकदमे की विवेचना शुरु करेगी।  
 










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