बिहार में जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी, ओबीसी-ईबीसी कुल आबादी का लगभग दो तिहाई

डीएन ब्यूरो

लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए जिसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

बिहार में जाति आधारित गणना
बिहार में जाति आधारित गणना


पटना: लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए जिसके अनुसार राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 प्रतिशत है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह द्वारा यहां जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है, जिसमें ईबीसी (36 प्रतिशत) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है।

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा सुमदाय है, जो प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है।

सर्वेक्षण के अनुसार, अनुसूचित जाति राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 22 लाख (1.68 प्रतिशत) है।

‘‘अनारक्षित’’ श्रेणी से संबंधित लोग प्रदेश की कुल आबादी का 15.52 प्रतिशत हैं, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति पर हावी रहने वाली ‘‘उच्च जातियों’’ को दर्शाते हैं।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हालाँकि उन सवालों कि क्या सर्वेक्षण ‘‘मंडल भाग 2’’ साबित होगा, यानी विभिन्न जातियों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में संशोधित कोटा की मांग को गति देगाए

जदयू के शीर्ष नेता ने कहा, ‘‘अभी मेरे लिए इस तरह के विवरण में जाना उचित नहीं होगा। मैं कल सभी पक्षों के साथ निष्कर्ष साझा करूंगा। उसके बाद हमारा ध्यान उन जातियों पर लक्षित नीतियां बनाने पर होगा जिन्हें अधिक सहायता की आवश्यकता समझी जा सकती है। मैं यह जरूर कहना चाहूंगा कि सर्वेक्षण का सभी जातियों को लाभ होगा।’’

नीतीश ने कहा, ‘‘कल अपराह्न 3.30 बजे मैं एक बैठक बुलाऊंगा जहां उन सभी नौ दलों के प्रतिनिधियों के समक्ष निष्कर्षों पर एक प्रस्तुति दी जाएगी जिनकी राज्य विधानमंडल में उपस्थिति है और जिन्होंने सर्वेक्षण के लिए सहमति दी थी ।’’

बिहार की महागठबंधन सरकार में शामिल सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने एक बयान जारी कर घोषणा की कि यह कवायद देशव्यापी जाति जनगणना के लिए माहौल तैयार करेगी।’’

लालू प्रसाद और नीतीश दोनों ने विपक्षी गठबंधन ‘‘इंडिया’’ के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। विपक्षी गठबंधन ने हाल ही में बेंगलुरु में आयोजित एक बैठक में जाति जनगणना कराने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।

यह सर्वेक्षण अगले लोकसभा चुनाव से पहले की राजनीति का हिस्सा बनेगा, यह बात विपक्षी गठबंधन के अन्य घटक दलों के नेताओं ने भी पहले ही स्पष्ट कर दी थी।

भाकपा माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘2021 में कोई नियमित जनगणना नहीं हुई थी जबकि बिहार राज्य इस वर्ष जाति सर्वेक्षण करने में कामयाब रहा है, यह केंद्र सरकार की अक्षमता को उजागर करता है।’’

सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में हिंदू समुदाय कुल आबादी का 81.99 प्रतिशत है जबकि मुस्लिम समुदाय 17.70 प्रतिशत है।

ईसाई, सिख, जैन और अन्य धर्मों का पालन करने वालों के साथ-साथ किसी धर्म को न मानने वालों की भी बहुत कम उपस्थिति है, जो कुल आबादी का एक प्रतिशत से भी कम है।

भट्टाचार्य ने यह भी कहा कि नौकरी में आरक्षण के लिए मंडल की सिफारिशें 1931 की जनगणना पर आधारित थीं, जिसमें पिछड़ों का प्रतिशत 52 प्रतिशत रखा गया था, लेकिन हम देख सकते हैं कि जनसंख्या तब से बढ़ी है....इसका मतलब है कि इस मुद्दे पर अब नए सिरे से सोचना होगा ।

हालाँकि विपक्षी पार्टी भाजपा ने जाति सर्वेक्षण पर असंतोष व्यक्त किया और इस बात पर जोर दिया कि इसके साथ विभिन्न समुदायों की वर्षों में बदली हुई सामाजिक और आर्थिक वास्तविकताओं से संबंधित आंकडे नहीं जारी किए गए हैं ।

भाजपा की बिहार इकाई के अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने यहां संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी ने जाति आधारित गणना कराए जाने को अपना समर्थन दिया था।

उन्होंने कहा कि इस कवायद के आज सार्वजनिक किए गए निष्कर्षों का अध्ययन करने के बाद ही उनकी पार्टी टिप्पणी करेगी।

विभिन्न समुदाय की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को लेकर आंकड़े जारी नहीं करने के बारे में पूछे जाने पर चौधरी ने कहा, ‘‘विभिन्न समुदायों की गणना के साथ यह भी सर्वेक्षण कराया जाना चाहिए था कि किसका उत्थान हुआ और किसका नहीं, इसको भी जारी किया जाना चाहिए था ।’’

समाजशास्त्रियों ने भी सर्वेक्षण के निष्कर्षों को महत्वपूर्ण माना है।

यादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमितेस मुखोपाध्याय ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘जब से मंडल आयोग की सिफारिशें आईं तब से पिछड़ा वर्गों ने हिंदी पट्टी की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, क्योंकि यह वैचारिक राजनीति के मुकाबले पहचान की राजनीति को आगे बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कारक बन गया है।’’

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में जाति आधारित गणना का आदेश पिछले साल तब दिया थाए जब केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह आम जनगणना के हिस्से के रूप में एससी और एसटी के अलावा अन्य जातियों की गिनती नहीं कर पाएगी।

देश में आखिरी बार सभी जातियों की गणना 1931 में की गई थी।

बिहार मंत्रिमंडल ने पिछले साल दो जून को जाति आधारित गणना कराने की मंजूरी देने के साथ इसके लिए 500 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की थी।

बिहार सरकार के जाति आधारित गणना के कार्य में उस समय बाधा उत्पन्न हो गयी थी जब पटना उच्च न्यायालय ने इस अभ्यास को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए इस पर रोक लगा दी थी। हालांकिए गत एक अगस्त को अदालत ने सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए बिहार सरकार के जाति आधारित गणना करने के निर्णय को सही ठहराया था।

राज्य में सत्तारूढ़ महागठबंधन के नेता आरोप लगाते रहे हैं कि जाति आधारित गणना को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर करने वाले लोग ‘‘भाजपा समर्थक’’ थे।

वहीं, भाजपा ने इस आरोप से इनकार करते हुए जोर देकर कहा था कि जब सर्वेक्षण के लिए कैबिनेट की मंजूरी दी गई थी तब वह भी सरकार में शामिल थी। 

 










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