बीसीआई अध्यक्ष ने सीजेआई को लिखे दवे के पत्र को ‘अनुचित प्रभाव’ पैदा करने की कोशिश बताया

डीएन ब्यूरो

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उच्चतम न्यायालय में लंबित संवेदनशील मुकदमों को सूचीबद्ध करने को लेकर एक वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा उन्हें लिखे खुले पत्र को लेकर चिंता जतायी तथा कहा कि यह ‘‘अनुचित प्रभाव’’ पैदा करने और ‘‘अपने अनुकूल’’ फैसले हासिल करने का प्रयास है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

पत्र को ‘अनुचित प्रभाव’ पैदा करने की कोशिश बताया
पत्र को ‘अनुचित प्रभाव’ पैदा करने की कोशिश बताया


नयी दिल्ली: बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उच्चतम न्यायालय में लंबित संवेदनशील मुकदमों को सूचीबद्ध करने को लेकर एक वरिष्ठ अधिवक्ता द्वारा उन्हें लिखे खुले पत्र को लेकर चिंता जतायी तथा कहा कि यह ‘‘अनुचित प्रभाव’’ पैदा करने और ‘‘अपने अनुकूल’’ फैसले हासिल करने का प्रयास है।

वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने छह दिसंबर को प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी. वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उच्चतम न्यायालय में मुकदमों को सूचीबद्ध करने और उन्हें अन्य पीठों को पुन: आवंटित करने के कुछ दृष्टांतों को लेकर नाराजगी जतायी तथा तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने की मांग की।

दवे का नाम लिए बगैर बीसीआई अध्यक्ष ने कहा कि ऐसे पत्रों के जरिए किए गए प्रयास साफ तौर पर अवमाननापूर्ण आचरण के तहत आते हैं और गलत उद्देश्यों के लिए उठाया गया कदम था तथा इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।

मिश्रा ने सीजेआई को लिखे अपने पत्र में कहा, ‘‘यह पत्र कोई इकलौती घटना नहीं है बल्कि यह निर्देश पुस्तिका एक ऐसे युक्ति है जिसे हाल-फिलहाल में भारत के लगभग हर प्रधान न्यायाधीश के सामने बार-बार आजमाया गया है। ऐसे पत्र स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली के कामकाज पर अनुचित प्रभाव और दबाव पैदा करने का न्यायेत्तर तंत्र है।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘पत्र में किए गए दावे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए रत्ती भर भी सच नहीं हैं और किसी भी प्रामाणिक उद्देश्य से पूरी तरह रहित हैं।’’

मिश्रा ने सीजेआई से इन पत्रों के माध्यम से ‘‘विघ्न’’ पैदा करने की कोशिशों को खत्म करने तथा ऐसे प्रयासों के खिलाफ एक स्थायी मिसाल पेश करने का अनुरोध किया।

दवे के पत्र लिखने से एक दिन पहले उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश संजय किशन कौल ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण के विषय पर कॉलेजियम की सिफारिशों पर कदम उठाने में केंद्र सरकार की कथित देरी से संबंधित याचिकाओं को वाद सूची से अचानक हटाए जाने पर हैरानी जतायी। प्रशांत भूषण समेत कुछ वकीलों ने यह मुद्दा उठाया था।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष दवे ने सीजेआई को लिखे पत्र में कहा था कि वह उच्चतम न्यायालय की रजिस्ट्री द्वारा मुकदमों को सूचीबद्ध किए जाने को लेकर कुछ घटनाओं से बहुत दुखी हैं।

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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार उन्होंने कहा था कि ‘‘मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, लोकतंत्र और वैधानिक व संवैधानिक निकायों के कामकाज’’ से जुड़े कुछ मामले संवेदनशील प्रकृति के हैं।

दवे ने इस पर खेद जताया था कि उन्हें कुछ वकीलों द्वारा सीजेआई से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात करने के प्रयास कामयाब नहीं होने के बाद यह खुला पत्र लिखना पड़ा है।










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