तमिल राजनीति के सबसे करिश्माई नेता भी थे एम करुणानिधि, जाने उनके जीवन से जुड़ी 10 खास बातें

दक्षिण भारत के करिश्माई नेताओं में गिने जाने वाले करुणानिधि का मंगलवार को निधन हो गया है। वो तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहें है। तो आइये जानते है उनके जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें..

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 8 August 2018, 12:56 PM IST
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चेन्‍नई : तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और डीएमके के प्रमुख एम करूणानिधि का मंगलवार को शाम 6 बजकर 10 मिनट पर निधन हो गया था। वे 94 साल के थे। तमिल राजनीति के सबसे करिश्माई नेता रहे करूणानिधि को 28 जुलाई को तबियत ख़राब होने के बाद चेन्नई के कावेरी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांसे ली।  

करूणानिधि के निधन के बाद तिमलनाडु में शोक की लहर है। राज्य में 7 दिनों का राजकीय शोक घोषित कर दिया गया है। उनके समर्थक उनके अंतिम दर्शन के लिए राजाजी हॉल के बाहर भारी संख्या में इकट्ठा हो रहें हैं। इसके अलावा उनके अंतिम दर्शन के लिए सुपरस्टार रजनीकांत, कमल हसन जैसे स्टार्स भी पहुंच रहे हैं।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण समेत कई बड़े दिग्गज नेता उनके अंतिम दर्शन के लिये वहां पहुंचे हैं।

आइये जानते है करूणानिधि के जीवन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें:- 

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1. मुत्तुवेल करुणानिधि का जन्म मद्रास के तिरुकुवालाई में 3 जून 1924 को हुआ था। उनके पिता का नाम मुथूवेल और माँ का नाम अंजुगम था।  

तीन शादियां, 6 संताने

2. उन्होंने तीन शादियां की। उनकी पत्नियों के नाम पद्मावती, दयालु और रजती है। इनमें से पद्मावती का निधन हो चुका हैं। तीन पत्नियों से उनकी 6 संतानें हैं। उनके चार बेटे और दो बेटियां है। उनकी पहली पत्नी पद्मावती ने उनके बेटे एमके मुथू को जन्म दिया था।  उनकी दूसरी पत्नी दयालू की संतानों के नाम एमके अलागिरी, एमके स्टालिन, एमके तमिलरासू और सेल्वी हैं। वहीं उनकी तीसरी पत्नी रजती से उनकी एक ही बेटी है, जिसका नाम कनिमोई है। 

'हिंदी हटाओ' आंदोलन

3. महज 14 की उम्र में करुणानिधि ने राजनीती में प्रवेश किया था। इस दौरान उन्होंने 1937 में स्कूलों में हिंदी भाषा को अनिवार्य बनाने को लेकर विरोध किया था। इस दौरान उन्होंने 'हिंदी हटाओ' आंदोलन में हिस्सा लिया था। इस आंदोलन के दौरान वो लोगों के साथ रेल की पटरियों पर लेट गए थे। इस तरह उन्हें राजनीती में एक धमाकेदार एंट्री मिली।  

पटकथा लेखक से करियर की शुरुआत

4. करुणानिधि ने 20 साल की उम्र में बतौर पटकथा लेखक करियर की शुरुआत की थी। इस दौरान वो अपनी पहली ही फिल्म राजकुमारी की वजह से फेमस हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने अपने करियर में 75 से अधिक पटकथाएं लिखी हैं। 

डीएमके की स्थापना

5. करुणानिधि इस दौरान फिल्मों के लिए पटकथा लिख रहे थे। इस दौरान पेरियार और अन्नादुराई की नजर उन पर पड़ी। करुणानिधि की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्हें पार्टी की पत्रिका ‘कुदियारासु’ का संपादक बना दिया गया। हालांकि 1947 में पेरियार और अन्नादुराई के बीच मतभेद हो गया और 1949 में नयी पार्टी ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’ यानी डीएमके की स्थापना हुई। यहां से पेरियार और अन्नादुराई के रास्ते अलग हो गए। डीएमके की स्थापना के बाद एम. करुणानिधि की अन्नादुराई के साथ नजदीकियां बढ़ती चली गईं। पार्टी की नींव मजबूत करने और पैसा जुटाने की जिम्मेदारी करुणानिधि को मिली। करुणानिधि ने इस दायित्व को बखूबी निभाया।

पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री

6. करुणानिधि ने 1957 में डीएमके ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी के कुल 13 विधायक चुने गए, जिसमें करुणानिधि भी शामिल थे। इस चुनाव के बाद डीएमके की लोकप्रियता बढ़ती गई और सिर्फ 10 वर्षों के अंदर पार्टी ने पूरी राजनीति पलट दी। वर्ष 1967 के विधानसभा चुनावों में डीएमके ने पूर्ण बहुमत हासिल किया और अन्नादुराई राज्य के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बन गए।  

एमजीआर से मिली करारी शिकस्त

7. पार्टी के प्रमुख अन्नादुराई की मौत के बाद करुणानिधी ने सत्ता की कमान संभाली। 1971 में वे दोबारा अपने दम पर जीतकर आये और मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। इसी दौरान उनकी अभिनेता एमजीआर से नजदीकी बढ़ी, लेकिन यह ज्यादा दिनों तक नहीं चला। इस दौरान एमजीआर ने एआईडीएमके (AIADMK) के नाम से अपनी नयी पार्टी बना ली और 1977 के चुनावों में एमजीआर ने करुणानिधि को करारी शिकस्त दी।  

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मौत के बाद की इच्छा

8. करुणानिधि ने अपना मकान दान कर दिया था।  इस दौरान उन्होंने इच्छा जताई थी कि उनकी मौत के बाद उनके घर में गरीबों के लिए अस्पताल बनाया जाए।  

9. वे पांच बार 1969–71, 1971–76, 1989–91, 1996–2001 और 2006–2011 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे।  

10. उन्हें पढ़ना का काफी ज्यादा शौक था और उन्हें अपने जीवन में पढ़ी हर किताब याद थी।  इसी वजह से  उनके समर्थक 'कलाईनार' यानी कि कला का विद्वान' कहते थे। 
 

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