

अगस्त 2025 इस बार एक खास संगम लेकर आया है। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस और ठीक अगले दिन 16 अगस्त को जन्माष्टमी। यह संयोग केवल तिथियों का नहीं, बल्कि स्वतंत्रता और धर्म के मूल्यों का प्रतीक बन गया है।
श्रीकृष्ण ने भी 16 हजार स्त्रियों को दिलवाई थी आजादी
New Delhi: इस बार का अगस्त महीना खास है। 15 अगस्त जब भारत अपनी आज़ादी का पर्व मनाता है और 16 अगस्त, जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी मनाई जा रही है। कुछ स्थानों पर तिथि के अनुसार 15 अगस्त को ही जन्माष्टमी भी मनाई जा रही है। ये दोनों पर्व सिर्फ एक दिन के अंतर से नहीं बंधे, बल्कि एक ही मूल भावना स्वतंत्रता और न्याय से जुड़े हैं।
कृष्ण और 16,100 स्त्रियों की मुक्ति
भगवान कृष्ण का जीवन केवल धार्मिक कथाओं तक सीमित नहीं, बल्कि जीवंत आदर्शों और मूल्यों की मिसाल है। भागवत पुराण में वर्णित एक प्रसंग में, नरकासुर नामक राक्षस ने 16,100 स्त्रियों को बलपूर्वक बंदी बना लिया था। ये स्त्रियां केवल शारीरिक रूप से नहीं, बल्कि मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से भी कैद में थीं। उनकी मुक्ति का बीड़ा श्रीकृष्ण ने उठाया। उन्होंने न केवल नरकासुर का वध कर उन्हें बंधन से मुक्त किया, बल्कि समाज में उन्हें सम्मान और गरिमा दिलाई।
कैसी थी नरकासुर की कैद?
नरकासुर एक शक्तिशाली और निर्दयी असुर था, जिसने देवताओं को भी पराजित कर दिया था। उसका सबसे क्रूर कार्य था। 16,100 स्त्रियों का अपहरण कर उन्हें अपने महल में कैद करना। ये स्त्रियां समाज की दृष्टि में कलंकित थीं क्योंकि वे राक्षस की कैद में थीं। उनके लिए न घर था, न समाज में स्थान।
कृष्ण का निर्णय
जब श्रीकृष्ण ने नरकासुर का अंत किया, तो उन्होंने इन स्त्रियों को केवल शारीरिक रूप से आज़ाद नहीं किया। उस युग के सामाजिक ढांचे में ऐसी स्त्रियों को स्वीकार नहीं किया जाता था। समाज उन्हें अपमान की दृष्टि से देखता। लेकिन कृष्ण ने उस सोच को तोड़ते हुए उन सभी से विवाह कर लिया। यह दर्शाने के लिए कि किसी स्त्री का अपहरण उसकी गरिमा को नहीं छीन सकता। यह फैसला आज के समय में भी नारी गरिमा और समानता का प्रतीक बनकर उभरता है।
जन्माष्टमी और स्वतंत्रता का साझा संदेश
जन्माष्टमी, श्रीकृष्ण के जन्म का पर्व, धर्म की स्थापना और अधर्म के अंत का प्रतीक है। इसी तरह स्वतंत्रता दिवस उस दिन की याद दिलाता है जब भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य के अधर्म को हराकर आज़ादी पाई। दोनों पर्वों में एक सामान्य सूत्र है। अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना, और मूल्यों के लिए संघर्ष करना।
आज की दुनिया में यह कथा क्यों प्रासंगिक है?
• अन्याय के खिलाफ साहस: कृष्ण की तरह आज भी हमें अन्याय के विरुद्ध निर्भीक होकर खड़ा होना चाहिए।
• स्वतंत्रता के साथ सम्मान: सिर्फ स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि सम्मान और गरिमा का संरक्षण भी जरूरी है।
• नारी सशक्तिकरण का संदेश: 16,100 स्त्रियों के उद्धार में नारी के सम्मान, समानता और पुनर्स्थापन का गहरा संदेश छिपा है।
• सामूहिक संघर्ष की शक्ति: जब समाज एकजुट होकर अत्याचार के खिलाफ लड़ता है, तो परिवर्तन संभव है।