

बिहार में SIR ने राजनीतिक दलों को एक बार फिर चुनावी अखाड़े में ला खड़ा किया है। एक ओर जहां विपक्ष इसे सत्ता की साजिश बता रहा है, वहीं चुनाव आयोग इसे संविधान और लोकतंत्र की आत्मा को शुद्ध करने का अवसर बता रहा है। अब देखना होगा कि यह प्रक्रिया किस तरह आगे बढ़ती है और चुनाव आयोग जनता के भरोसे को बनाए रखने में कितना सफल होता है।
दिल्ली में स्थित चुनाव आयोग का दफ्तर
Bihar News: बिहार में इन दिनों मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) को लेकर राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। इस प्रक्रिया को लेकर विपक्ष सड़क से सदन तक आक्रामक है, वहीं सत्ता पक्ष इसका समर्थन करते हुए इसे लोकतंत्र के लिए जरूरी कदम बता रहा है। इसी बीच अब चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया सामने आई है, जिसमें उसने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मतदाता सूची को शुद्ध करना संविधानसम्मत और आवश्यक प्रक्रिया है।
विपक्ष का आरोप, "SIR के बहाने छेड़छाड़ की साजिश"
बिहार विधानसभा में हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के बीच SIR को लेकर तीखी बहस हुई। तेजस्वी यादव ने सवाल उठाते हुए कहा कि पिछली बार जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में SIR हुआ था, तब उसे दो साल लगे थे। ऐसे में 2003 से अब तक हुए चुनावों की वैधता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। उन्होंने यह तक कहा कि यदि उस समय भी मतदाता सूची गड़बड़ थी तो क्या नीतीश कुमार और अन्य विधायक फर्जी वोटरों से चुने गए?
तेजस्वी यादव (सोर्स: इंटरनेट)
क्या डर जाएं विपक्ष के विरोध से?
इन आरोपों के बीच चुनाव आयोग ने SIR को लेकर अपनी मंशा स्पष्ट करते हुए एक भावनात्मक और सटीक बयान जारी किया है। आयोग ने कहा, "क्या चुनाव आयोग विपक्ष के बहकावे में आकर मरे हुए मतदाताओं, प्रवास कर चुके लोगों, दोहरी एंट्री वाले या फर्जी वोटरों को नजरअंदाज कर दे? क्या पारदर्शी और शुद्ध मतदाता सूची निष्पक्ष चुनाव और सशक्त लोकतंत्र की नींव नहीं है?"
20 लाख मृत वोटर मिले, सात बड़े अपडेट दिए चुनाव आयोग ने
गौरतलब है कि SIR के तहत चुनाव आयोग ने बिहार में अब तक करीब 20 लाख मृत मतदाताओं के नाम सूची से हटाने की प्रक्रिया शुरू की है। आयोग ने इस संबंध में सात अहम बिंदुओं को सामने रखकर यह बताया कि SIR महज एक रूटीन प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र को फर्जीवाड़े से मुक्त करने का एक संवैधानिक प्रयास है।
नीतीश कुमार (सोर्स: इंटरनेट)
ग्रामीण क्षेत्रों में भी हो रहा विरोध
जहां एक ओर विपक्ष इसे जनता की आवाज दबाने का माध्यम बता रहा है, वहीं कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में SIR को लेकर भ्रम और विरोध की स्थिति भी देखी जा रही है। कई लोगों को डर है कि उनका नाम मतदाता सूची से बिना जानकारी के हटा दिया जाएगा। इसीलिए चुनाव आयोग ने जोर देकर कहा है कि यह प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता और जनसहभागिता के साथ की जा रही है।
"राजनीति से ऊपर उठकर चिंतन की जरूरत"
अपने बयान में चुनाव आयोग ने सभी नागरिकों से अपील की है कि वे इस मुद्दे पर राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर गहन विचार करें। आयोग ने कहा कि यदि अब भी फर्जी वोटर, दोहरे नाम या मरे हुए लोगों के नाम सूची में बने रहते हैं तो यह भारत के लोकतंत्र के साथ अन्याय होगा।