झालावाड़ हादसे में हुई मासूमों की मौत का जिम्मेदार कौन? शिक्षा मंत्री मदन दिलावर पर उठे सवाल; जानिए सब कुछ

झालावाड़ के स्कूल हादसे ने पूरे राजस्थान को हिला दिया है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या केवल निलंबन काफी है या जिम्मेदारों को कुर्सी छोड़नी चाहिए। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के इस्तीफे की मांग क्यों तेज हो रही है? क्या यह हादसा सिस्टम की विफलता का प्रतीक है?

Post Published By: Poonam Rajput
Updated : 26 July 2025, 1:49 PM IST
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Jhalawar: राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्कूल इमारत गिरने से हुई मासूमों की मौत ने न सिर्फ जनभावनाओं को झकझोरा है, बल्कि सिस्टम की कार्यप्रणाली पर भी बड़ा सवाल खड़ा किया है। यह सिर्फ एक स्कूल की दीवार ढहने की घटना नहीं, बल्कि एक ढहती हुई प्रशासनिक संरचना की तस्वीर है।

क्या शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी बनती है?

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक,  शिक्षा मंत्री मदन दिलावर पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि राज्य के शिक्षा ढांचे की नीति और निगरानी की सर्वोच्च जिम्मेदारी उन्हीं पर है। प्रदेशभर में कई जर्जर स्कूल इमारतों की स्थिति पहले से सार्वजनिक है, लेकिन उसके बावजूद कोई ठोस नीति या कार्ययोजना सामने नहीं आई। ऐसे में विपक्ष का यह कहना गलत नहीं लगता कि मंत्री ने अपने स्तर पर समय रहते संवेदनशीलता नहीं दिखाई।

कहां और किसकी हुई चूक

प्रारंभिक शिक्षा निदेशक के तौर पर सीताराम जाट की जिम्मेदारी थी कि वह फील्ड से रिपोर्ट मंगवाते और संवेदनशील भवनों पर तत्काल निर्देश देते। यदि उनके कार्यालय से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई या हुई भी तो उसका पालन नहीं करवाया गया, तो यह उनकी कार्यप्रणाली पर बड़ा प्रश्नचिन्ह है।

जिला प्रशासन की निष्क्रियता

झालावाड़ कलेक्टर पर यह जिम्मेदारी थी कि वे जिले के सभी सरकारी भवनों की निगरानी रखें। अगर स्कूल की जर्जर हालत पहले से ज्ञात थी, तो समय रहते हस्तक्षेप क्यों नहीं किया गया? यह लापरवाही सीधे तौर पर जानलेवा साबित हुई।

स्थानीय स्तर पर घोर लापरवाही

स्कूल प्रिंसिपल और शिक्षा विभाग के क्षेत्रीय अधिकारियों की सीधी जिम्मेदारी थी कि वे बच्चों को किसी जर्जर इमारत में न बैठाएं। ग्रामीणों द्वारा कई बार शिकायत करने के बाद भी अगर बच्चों की सुरक्षा की अनदेखी की गई तो यह कर्तव्यहीनता का गंभीर मामला है।

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परिजनों को आर्थिक सहायता जरूरी

इस हादसे में जिन परिवारों ने अपने बच्चों को खोया है, उन्हें सिर्फ सांत्वना नहीं, बल्कि ठोस आर्थिक मदद की ज़रूरत है। ₹10 लाख तक की तत्काल सहायता, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और बच्चे की याद में स्थानीय स्तर पर स्मारक या योजना घोषित की जानी चाहिए।

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