

कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने फलस्तीन मुद्दे पर मोदी सरकार की चुप्पी पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि भारत को नैतिक और ऐतिहासिक भूमिका निभानी चाहिए थी, लेकिन सरकार निजी रिश्तों से प्रभावित दिख रही है।
सोनिया गांधी
New Delhi: भारत की विदेश नीति को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। इस बार आवाज उठाई है कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इस्राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की दोस्ती को भारत की विदेश नीति पर प्रभाव डालने वाला बताया है। सोनिया गांधी ने साफ शब्दों में कहा कि फलस्तीन संकट पर मोदी सरकार की चुप्पी भारत की ऐतिहासिक भूमिका और नैतिक परंपराओं के विपरीत है।
सोनिया गांधी ने यह आरोप 'द हिंदू' अखबार में लिखे अपने लेख के माध्यम से लगाया है। यह उनका फलस्तीन मुद्दे पर पिछले कुछ महीनों में तीसरा सार्वजनिक लेख है। उन्होंने मोदी सरकार के रुख को "गहरी चुप्पी" और "नैतिकता से पीछे हटना" बताया। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसा देश, जो ऐतिहासिक रूप से वैश्विक अन्याय के खिलाफ खड़ा रहा है, इस बार असामान्य रूप से शांत रहा।
सोनिया गांधी
सोनिया गांधी ने भारत के ऐतिहासिक संदर्भों को याद दिलाते हुए कहा कि 1988 में भारत ने फलस्तीन को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी। उन्होंने कहा कि भारत ने हमेशा अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई है – फिर चाहे वह दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद हो, अल्जीरिया की स्वतंत्रता हो या बांग्लादेश का निर्माण। ऐसे में फलस्तीन की त्रासदी पर भारत की चुप्पी न केवल चौंकाने वाली है, बल्कि चिंताजनक भी है।
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अपने लेख में सोनिया गांधी ने इस्राइल की सैन्य कार्रवाई को 'नरसंहार' (Genocide) की संज्ञा दी। उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए लिखा कि अक्तूबर 2023 के बाद से अब तक 55,000 से अधिक फलस्तीनी नागरिक मारे जा चुके हैं, जिनमें 17,000 से अधिक बच्चे शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि गाजा की स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि व्यवस्था लगभग पूरी तरह नष्ट हो चुकी है, और लोगों को जानबूझकर भूख की स्थिति में रखा जा रहा है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन और मानवीय मूल्यों के हनन का भी जिक्र किया।
सोनिया गांधी ने तीखा हमला बोलते हुए लिखा कि जब पूरी दुनिया इस्राइल की नीतियों पर सवाल उठा रही थी, तब भारत सरकार न केवल चुप रही, बल्कि इस्राइल के विवादित वित्त मंत्री को दिल्ली बुलाकर निवेश समझौता किया। उन्होंने कहा कि ऐसे वक्त में यह कदम भारत की वैश्विक छवि को धूमिल करता है और हमारी नैतिक प्रतिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
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सोनिया गांधी ने विशेष रूप से इस बात पर बल दिया कि विदेश नीति किसी नेता की निजी दोस्ती या संबंधों पर आधारित नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि भारत की नीति लोकतांत्रिक, संवैधानिक और नैतिक आधारों पर आधारित होनी चाहिए। उन्होंने चेताया कि निजी हितों पर आधारित कूटनीति भविष्य में भारत के रणनीतिक हितों को खतरे में डाल सकती है।
सोनिया गांधी ने फलस्तीन के संघर्ष की तुलना भारत की आजादी की लड़ाई से की। उन्होंने लिखा कि जैसे भारत ने औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ संघर्ष किया, वैसे ही फलस्तीन भी दशकों से अपने अधिकारों, भूमि और अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है। उन्होंने भारत से "इतिहास से मिली संवेदना को साहस में बदलने" की अपील की।