मां कूष्माण्डा की आराधना से मिलती है शक्ति और उन्नति, जानिए पूजा का महत्व

नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन भक्तों को देवी की अष्टभुजा पूजा करनी चाहिए, जो सृष्टि की रचयिता मानी जाती हैं। मां की उपासना से जीवन में सुख, शक्ति और आशीर्वाद मिलता है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 25 September 2025, 7:28 AM IST
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New Delhi: नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा का विशेष महत्व है। कूष्माण्डा देवी का रूप अष्टभुजा और अलौकिक आभा से भरा हुआ है। उनका नाम "कूष्माण्डा" उनके ब्रह्माण्ड की सृष्टि से जुड़ा हुआ है। वे उस समय ब्रह्माण्ड की रचना करती हैं, जब कोई अस्तित्व नहीं था और चारों ओर घोर अंधकार था। मां अपनी मंद और कोमल मुस्कान से सृष्टि को उत्पन्न करती हैं।

आदि शक्ति और सूर्यलोक की अधिष्ठात्री

कूष्माण्डा देवी सृष्टि की आदि शक्ति मानी जाती हैं। उनका निवास सूर्य मंडल में है, और उनका शरीर सूर्य के समान तेजस्वी है। उनके शरीर की आभा से पूरी ब्रह्माण्ड को प्रकाश मिलता है। देवी का तेज इतना प्रचंड है कि न कोई देवता न कोई देवी इस शक्ति का मुकाबला कर सकता है। इस दिन पूजा करने से भक्तों को सूर्य की ऊर्जा मिलती है और उनका जीवन उज्जवल होता है।

मां कूष्माण्डा

अष्टभुजा रूप और आयुध

मां कूष्माण्डा के आठ हाथ होते हैं, जिनमें कमंडलु, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और जपमाला होती है। जपमाला विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि यह सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली मानी जाती है। उनके वाहन सिंह को शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है।

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उपासना का महत्व

मां कूष्माण्डा की पूजा से साधक का मन निर्मल और शुद्ध होता है। इस दिन की पूजा से भक्तों को भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है और वह आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं। सच्चे मन से देवी की उपासना करने से भवसागर पार करने में सहायता मिलती है।

पूजा के लाभ

मां कूष्माण्डा अपने भक्तों को रोग, शोक और संकटों से मुक्त करती हैं। इस पूजा से आयु, यश, बल, बुद्धि में वृद्धि होती है। यदि जीवन में कोई विशेष प्रयास सफल नहीं हो रहा, तो इस रूप की आराधना से मनोवांछित फल मिल सकते हैं। इस दिन की पूजा से भक्त को मानसिक शांति और शारीरिक बल मिलता है।

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पूजन विधि और भोग

नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा करने के लिए सबसे पहले कलश पूजन करें और देवी का आह्वान करें। उन्हें फल, फूल, धूप, गंध और भोग अर्पित करें। विशेष रूप से मालपुए का भोग लगाकर किसी दुर्गा मंदिर में ब्राह्मणों को प्रसाद देना शुभ माना गया है। पूजा के बाद बड़ों का आशीर्वाद लें और प्रसाद का वितरण करें। इस पूजा से ज्ञान और बुद्धि की वृद्धि होती है।

देवी का मंत्र

"सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥"

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Published : 
  • 25 September 2025, 7:28 AM IST