

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर क्रांतिकारियों में से एक वीर सावरकर जिससे अंग्रेज उनकी निडरता औ वैचारिक दृढ़ता से कांपते थे। पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज पर..
नई दिल्ली: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अमर क्रांतिकारियों में से एक वीर सावरकर जिनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था, अपने साहस बौद्धिक शक्ति और दृढ़ संकल्प से वीर सावरकर ने अंग्रेजों की नींव को हिला दिया था। अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी वीर सावरकर बन गए थे। दरअसल उन्होंने न सिर्फ सशस्त्र क्रांति की भावना जागृत किया ब्लकि हिंदुत्व की विचारधारा और अपने लेखन के माध्यम से भारतीय लोगों में स्वतंत्रता की चेतना जगाई। ऐसे में अंग्रेज उनकी निडरता औ वैचारिक दृढ़ता से कांपते थे।
हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का नारा
अंग्रेजों को यह एहसास सावरकर ने दिलाया कि वह सिर्फ एक व्यक्ति ही नहीं, बल्कि एक विचारधारा के प्रतीक हैं, जोकि उनके साम्राज्य के लिए बहुत बड़ा खतरा था। महाराष्ट्र के नासिक में 28 मई, 1883 को जन्मे सावरकर ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ युवावस्था से ही विद्रोह का नारा बुलंद कर दिया था। एक संगठित क्रांति के रूप में वीर सावरकर की किताब 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857' ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को प्रस्तुत किया, जिसे अंग्रेजों ने 'सिपाही विद्रोह' कहकर कमतर आंकने की कोशिश की।
युवाओं को सशस्त्र क्रांति के लिए प्रेरित
अंग्रेजों ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया था, क्योंकि यह भारतीयों में स्वतंत्रता की भावना जागृत कर रही थी। सावरकर ने लंदन में 'अभिनव भारत' और 'फ्री इंडिया सोसाइटी' जैसे संगठनों की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने भारतीय युवाओं को सशस्त्र क्रांति के लिए प्रेरित किया। अंग्रेज उनकी गतिविधियों से इतने भयभीत थे कि वे उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखने लगे। अंग्रेज सावरकर से इसलिए डरते थे, क्योंकि वे न केवल एक क्रांतिकारी थे, बल्कि एक प्रखर विचारक भी थे।
1910 में लंदन में गिरफ्तार
हिंदुत्व की उनकी अवधारणा ने भारतीय समाज को एकजुट करने का काम किया, जिसे अंग्रेज अपनी 'फूट डालो और राज करो' की नीति से कमजोर करना चाहते थे। उनके लेखन और भाषणों में देशभक्ति और स्वाभिमान की ऐसी आग थी कि अंग्रेजों को डर था कि यह आग उनके साम्राज्य को जलाकर राख कर देगी। सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियों ने ब्रिटिश शासन को सीधी चुनौती दी, जिसके कारण उन्हें 1910 में लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ्तारी का मुख्य कारण नासिक षडयंत्र मामला था, जिसमें उनके छोटे भाई गणेश सावरकर भी शामिल थे।
क्रांतिकारी साहित्य बांटने का काम
नासिक के कलेक्टर जैक्सन को मारने की साजिश इस मामले में रची गई थी, इसे अंग्रेजों ने सावरकर से जोड़ दिया। इसके साथ ही लंदन में रहते हुए सावरकर ने भारतीय छात्रों को हथियारों की ट्रेनिंग देने और क्रांतिकारी साहित्य बांटने का काम किया, जो अंग्रेजों के लिए असहनीय था। उनकी किताब 'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस 1857' को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक खतरनाक दस्तावेज माना जाता था।
सावरकर की इन सभी गतिविधियों से अंग्रेज इतने डर गए थे कि उन्होंने सावरकर को फ्रांस के तट से गिरफ्तार कर लिया और भारत ले आए । 1911 में उन्हें 2 आजीवन कारावास की सजा सुनाई और अंडमान की सेलुलर जेल यानी कालापानी उन्हें भेज दिया। कि कालापानी की अमानवीय यातनाएं सावरकर के क्रांतिकारी विचारों को कुचल देंगी, ऐसा अंग्रेजों का मानना था, मगर सावरकर ने वहां भी हार नहीं मानी।
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