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वंदे मातरम के 150 साल पूरे होने के अवसर पर लोकसभा में विशेष चर्चा आयोजित की जाएगी, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे। इस चर्चा के जरिए सरकार इस गीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व को उजागर करना चाहती है।
संसद में गूंजेगा राष्ट्रभक्ति का संदेश
New Delhi: भारत के राष्ट्रगीत वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद के शीतकालीन सत्र के छठे दिन यानी सोमवार को लोकसभा में एक विशेष चर्चा आयोजित की जाएगी। इस चर्चा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत विभिन्न केंद्रीय मंत्री और विपक्षी दलों के सदस्य भी भाग लेंगे। चर्चा के लिए 10 घंटे का समय निर्धारित किया गया है और यह चर्चा देशभर में इस गीत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक महत्व को उजागर करने का एक महत्वपूर्ण अवसर होगा।
इस विशेष चर्चा की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे, जो दोपहर 12 बजे सदन को संबोधित करेंगे। उनके अलावा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और अन्य केंद्रीय मंत्री भी इस चर्चा में भाग लेंगे। विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ से पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी और लोकसभा में उपनेता प्रतिपक्ष गौरव गोगोई समेत कुल 8 सांसद अपनी बातें रखेंगे। इसके अलावा, विभिन्न अन्य दलों के सांसद भी इस बहस में अपनी-अपनी राय देंगे।
वंदे मातरम को बंकिम चंद्र चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को लिखा था। यह गीत उनके उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा था, और पहली बार उनकी पत्रिका बंगदर्शन में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद, 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे सार्वजनिक रूप से गाया था। यह वंदे मातरम का वह ऐतिहासिक क्षण था जब यह गीत राष्ट्रीय स्तर पर जनता के बीच गाया गया था, और इसे लेकर लोगों में गहरी भावनाएं थीं।
वंदे मातरम का न केवल ऐतिहासिक महत्व है, बल्कि यह भारत की एकता, राष्ट्रीय भावना और स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक भी बन चुका है। इस गीत ने भारतीयों को एकजुट करने का काम किया था, और यह देश के लिए एक आंदोलन का रूप भी बन गया। 150 साल के इस सफर में, वंदे मातरम का महत्व बढ़ा है, और यह आज भी भारतीय समाज में एक मजबूत सांस्कृतिक पहचान के रूप में मौजूद है।
1. राष्ट्रीय भावना और एकता का संदेश
सरकार का उद्देश्य है कि वंदे मातरम पर चर्चा से देशभर में राष्ट्रभावना, सांस्कृतिक गौरव और एकता का संदेश जाए। इस गीत का महत्व राष्ट्र की एकता और भारतीयता को दर्शाने के लिए है।
वंदे मातरम पर संसद में होगी चर्चा, 10 घंटे का समय अलॉट; PM मोदी भी होंगे शामिल
2. बंगाल चुनाव से जुड़ा राजनीतिक संकेत
वंदे मातरम का इतिहास बंगाल से गहरा जुड़ा हुआ है, और अगले साल होने वाले बंगाल विधानसभा चुनाव के मद्देनजर, सरकार इस मुद्दे को सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से उठाकर राज्य में भा.ज.पा. के लिए एक सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश कर सकती है।
3. 1937 में वंदे मातरम के हिस्से को हटाने की बहस
आजादी से पहले 1937 में वंदे मातरम के दूसरे हिस्से को धार्मिक कारणों से हटा दिया गया था, जिसके कारण विवाद हुआ था। सरकार इस ऐतिहासिक विवाद को सामने लाकर, तुष्टिकरण की राजनीति को उजागर करना चाहती है।
4. बंगाल विभाजन और स्वतंत्रता आंदोलन की याद दिलाना
वंदे मातरम का नारा 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा था, और यह स्वतंत्रता संग्राम का भी प्रतीक बन चुका था। सरकार इस इतिहास को राष्ट्रीय मंच पर सामने लाकर देशभक्ति की भावना को मजबूत करना चाहती है।
5. विपक्ष के साथ टकराव से ध्यान हटाना
केंद्र सरकार SIR (संविधान के खिलाफ किए गए विवादों) से जुड़े मुद्दों और विपक्ष के साथ चल रहे राजनीतिक तनाव से ध्यान हटाने के लिए इस भावनात्मक और सर्वस्वीकार्य मुद्दे को लाने का प्रयास कर सकती है।
इस बहस के दौरान विपक्षी नेता अपनी बात रखेंगें और उनका मानना है कि वंदे मातरम पर चर्चा से कहीं न कहीं सियासी बहस को भी हवा मिल सकती है। खासतौर पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे एक सियासी एजेंडे के रूप में देख सकते हैं। हालांकि, वंदे मातरम का महत्व हर भारतीय के लिए समान है, फिर भी इसे राजनीतिक हथियार बनाने की कोशिश पर विभिन्न दलों के विचार अलग हो सकते हैं।