

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में राज्यसभा के लिए जिन चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को मनोनीत किया है, उनमें एक प्रमुख नाम डॉ. मीनाक्षी जैन का भी है। एक प्रखर इतिहासकार, शिक्षिका और विचारक के रूप में पहचानी जाने वाली मीनाक्षी जैन का नामांकन न केवल अकादमिक जगत के लिए सम्मानजनक क्षण है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति के पुनर्पाठ की दिशा में एक नई शुरुआत का संकेत भी है।
मीनाक्षी जैन (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में राज्यसभा के लिए जिन चार प्रतिष्ठित व्यक्तियों को मनोनीत किया है, उनमें एक प्रमुख नाम डॉ. मीनाक्षी जैन का भी है। एक प्रखर इतिहासकार, शिक्षिका और विचारक के रूप में पहचानी जाने वाली मीनाक्षी जैन का नामांकन न केवल अकादमिक जगत के लिए सम्मानजनक क्षण है, बल्कि भारतीय इतिहास और संस्कृति के पुनर्पाठ की दिशा में एक नई शुरुआत का संकेत भी है।
डॉ. मीनाक्षी जैन ने इतिहास की पढ़ाई के साथ-साथ भारतीय समाज की संरचना और सांस्कृतिक विकास पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में वर्षों तक पढ़ाया। इसके साथ ही वे नेहरू मेमोरियल म्यूज़ियम एंड लाइब्रेरी की पूर्व फेलो भी रही हैं। शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान विद्यार्थियों के लिए शोध और वैचारिक स्वतंत्रता का उदाहरण रहा है।
उनकी पहचान एक ऐसी इतिहासकार के रूप में है, जो भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से विश्लेषित करती हैं। उनकी रिसर्च विशेष रूप से मध्यकालीन और औपनिवेशिक भारत, राम मंदिर, जाति व्यवस्था, और हिंदू सामाजिक संरचना जैसे विषयों पर केंद्रित रही है।
उनकी डॉक्टरेट थीसिस 1991 में प्रकाशित हुई थी, जिसमें उन्होंने सामाजिक आधार और जाति-राजनीति के बीच संबंधों का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रसिद्ध किताबों में शामिल हैं "राम और अयोध्या", "सती: इतिहास और मिथक", और "हिंदू समाज में जाति"। ये किताबें आज भारतीय इतिहास को एक नई दृष्टि से समझने वालों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत बन चुकी हैं।
भारतीय साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिए 2020 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। इससे पहले 2014 में उन्हें इंडियन काउंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR) का सदस्य नामित किया गया था। यह सभी सम्मान इस बात का प्रमाण हैं कि डॉ. जैन का योगदान केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि वैचारिक चेतना का भी स्रोत है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनके नामांकन पर प्रसन्नता व्यक्त की और सोशल मीडिया पर लिखा, "शिक्षा, साहित्य, इतिहास और राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में उनके कार्यों ने अकादमिक विमर्श को महत्वपूर्ण रूप से समृद्ध किया है। उनके संसदीय कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं।"
डॉ. मीनाक्षी जैन का राज्यसभा में मनोनयन यह दर्शाता है कि अब संसद में विचार, शोध और इतिहास का संतुलित संवाद होगा। वे उन आवाज़ों में से हैं जो पुस्तकों में रहती थीं, लेकिन अब देश की नीतियों में गूंजेंगी। उनका अनुभव संसद में न केवल अकादमिक बल देगा, बल्कि भारतीय सभ्यता के बौद्धिक आधार को भी मजबूत करेगा।