

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दोषियों को राहत देने से इनकार करते हुए उनकी अपील खारिज कर दी। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (सोर्स-इंटरनेट)
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक नाबालिग छात्रा के साथ दुष्कर्म के मामले में दोषियों को राहत देने से इनकार करते हुए उनकी अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यह मामला अत्यंत गंभीर है और इसमें किसी भी प्रकार की रियायत की कोई आवश्यकता नहीं है। न्यायालय ने साफ कहा कि ऐसे अपराधों में सहानुभूति नहीं, कठोरता ही न्याय का रास्ता है।
यह फैसला न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने सुनाया। यह अपील छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस निर्णय के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें दोषियों संजय पैकरा और पुष्पम यादव को एक नाबालिग छात्रा के अपहरण और दुष्कर्म के अपराध में आजीवन कारावास की सजा दी गई थी।
गंभीर अपराध में कोई रियायत नहीं
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, "आपने एक नाबालिग छात्रा का वैन चालक के साथ मिलकर अपहरण किया और फिर उसके साथ दुष्कर्म किया। यह कोई सामान्य अपराध नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों और समाज की मर्यादा के खिलाफ गंभीर हमला है।" पीठ ने यह स्पष्ट किया कि अपराध की प्रकृति को देखते हुए किसी भी तरह की नरमी नहीं बरती जा सकती।
सहमति का तर्क नहीं मान्य
अदालत ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि पीड़िता की "सहमति" थी और वह चिल्लाई नहीं, इसलिए यह अपराध उतना गंभीर नहीं है। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता नाबालिग थी और यह तथ्य अदालत में सिद्ध हो चुका है। ऐसे में उसके किसी भी कथित 'सहमति' को कानून मान्यता नहीं देता।
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट दोनों ने दोषी ठहराया
यह मामला वर्ष 2019 का है, जब तीन आरोपियों संजय पैकरा, पुष्पम यादव और स्कूल वैन चालक संतोष कुमार गुप्ता ने एक स्कूल से घर जा रही सातवीं कक्षा की छात्रा का अपहरण किया था। इसके बाद छात्रा के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया।
इस जघन्य अपराध में ट्रायल कोर्ट ने 5 अक्टूबर, 2021 को तीनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी और प्रत्येक पर 1000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था। इसके बाद छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी 5 अगस्त, 2024 को ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही ठहराया था।
अपराधी को बख्शा नहीं जाएगा
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट संदेश दिया है कि नाबालिगों के साथ यौन अपराध करने वालों को किसी भी स्थिति में राहत नहीं दी जा सकती। यह फैसला ना केवल पीड़िता को न्याय देने की दिशा में अहम है, बल्कि समाज में ऐसे अपराधियों के प्रति एक सख्त चेतावनी भी है।