

TMC सांसद मिताली बाग ने संसद में केंद्रीय मंत्री रिजिजू और सांसद रवनीत बिट्टू पर धक्का देने का गंभीर आरोप लगाया। विपक्षी सांसदों ने इसे महिला विरोधी और लोकतंत्र पर हमला करार दिया है।
TMC की महिला सांसद मिताली बाग का आरोप
New Delhi: संसद के मानसून सत्र के दौरान बुधवार को लोकसभा में एक बार फिर जबरदस्त हंगामा देखने को मिला, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों को गंभीर अपराधों के आरोप लगने पर पद से हटाने से जुड़ा संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 पेश किया। इस बिल को लेकर विपक्ष ने तीखा विरोध जताया, जिसे असंवैधानिक और लोकतंत्र विरोधी करार दिया गया। विरोध प्रदर्शन के बीच तृणमूल कांग्रेस (TMC) की महिला सांसद मिताली बाग ने बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें भाजपा सांसदों ने धक्का दिया और चोट पहुंचाई।
मिताली बाग का आरोप है कि केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और भाजपा सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने सदन के अंदर उन्हें ज़ोर से धक्का दिया और खींचा, जिससे उनके हाथ में चोट आई। उन्होंने कहा, जब हम बिल का विरोध कर रहे थे, तब इन दोनों ने मुझ पर हमला किया। यह एक महिला सांसद के साथ बेहद अशोभनीय और निंदनीय व्यवहार है।
तृणमूल कांग्रेस (TMC) की महिला सांसद मिताली बाग
बाग ने कहा कि यह घटना न केवल एक महिला सांसद पर हमला है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा पर प्रहार है। उन्होंने कहा कि संसद में महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई है और यह सरकार की महिला विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। उनके साथ मौजूद टीएमसी सांसद शताब्दी रॉय ने भी उनके आरोपों का समर्थन किया और कहा कि बीजेपी सांसदों ने जानबूझकर महिला सांसदों को निशाना बनाया।
घटना के बाद विपक्षी सांसदों ने इस मुद्दे पर सदन में हंगामा करते हुए कार्यवाही स्थगित कर दी। टीएमसी, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस आरोप को लेकर लोकसभा स्पीकर से शिकायत करने की बात कही है और जांच की मांग की है।
वहीं, सरकार की ओर से अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी सांसदों ने इन आरोपों को 'राजनीतिक नौटंकी' बताया है और कहा है कि विपक्ष ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहा है।
गौरतलब है कि जिस विधेयक को लेकर यह हंगामा हुआ, उसमें प्रावधान है कि अगर किसी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री पर गंभीर अपराध का आरोप लगता है और वे 30 दिन तक जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून राजनीतिक बदले की भावना से लागू किया जा सकता है और इससे लोकतंत्र और संघीय ढांचे को नुकसान पहुंचेगा।
विधेयक को फिलहाल संसद की संयुक्त समिति को भेज दिया गया है, जिसमें लोकसभा के 21 और राज्यसभा के 10 सदस्य शामिल होंगे। समिति को यह रिपोर्ट अगले सत्र के पहले सप्ताह के अंतिम दिन तक पेश करनी है।
यह मामला अब पूरी तरह से राजनीतिक तूल पकड़ चुका है। जहां विपक्ष इसे महिलाओं के सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों से जोड़कर देख रहा है, वहीं सत्तारूढ़ दल इसे विपक्ष की रणनीति बता रहा है।