

लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर शुरू हुआ शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसा में बदल गया। भाजपा दफ्तर और सुरक्षा बलों की गाड़ियों में आगजनी हुई। आंदोलन के अगुवा सोनम वांगचुक ने हिंसा की निंदा करते हुए अपना अनशन तोड़ दिया और शांति की अपील की।
लद्दाख हिंसा
Leh Ladakh: लद्दाख की शांत वादियों में इन दिनों राजनीतिक उथल-पुथल और जनआंदोलन की लहरें तेज हो गई हैं। छठी अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर बीते कई दिनों से जारी शांतिपूर्ण आंदोलन अचानक हिंसा की गिरफ्त में आ गया। भाजपा का कार्यालय फूंक दिया गया और केंद्रीय सुरक्षा बलों की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया।
लद्दाख को वर्ष 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। हालांकि इस प्रशासनिक बदलाव के बाद लद्दाखवासियों को अपनी सांस्कृतिक पहचान, पर्यावरणीय संरक्षण और राजनीतिक आत्मनिर्णय को लेकर असंतोष होने लगा।
लद्दाख हिंसा
अब तक अहिंसक तरीके से चल रहा यह आंदोलन अचानक हिंसक मोड़ पर पहुंच गया। भीड़ ने भाजपा दफ्तर को आग के हवाले कर दिया, वहीं केंद्रीय बलों की गाड़ियों को भी फूंक दिया गया। इस घटना ने पूरे देश का ध्यान एक बार फिर लद्दाख की स्थिति पर खींचा है। सोनम वांगचुक ने इन घटनाओं को लेकर गहरी निराशा जताई, कहा कि हिंसा से आंदोलन की आत्मा मर जाती है। अगर बदलाव चाहिए तो वो शांति और बुद्धि से ही संभव है।
लद्दाख में भड़के Gen-Z: पूर्ण राज्य की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन, जानें क्या है ताजा अपडेट
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची आदिवासी और विशेष सांस्कृतिक क्षेत्रों को स्वायत्तता देने के लिए बनाई गई थी। यह प्रावधान वर्तमान में पूर्वोत्तर भारत के कुछ राज्यों में लागू है और इसके तहत स्वायत्त जिला परिषदें बनाई जाती हैं जिन्हें जमीन, संसाधन, और सांस्कृतिक विरासत पर नियंत्रण मिलता है। अगर लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल किया जाता है, तो स्थानीय स्वायत्त परिषदों को अधिकार मिलेंगे। सांस्कृतिक व धार्मिक विरासत को संवैधानिक संरक्षण मिलेगा। भूमि और पर्यावरण की रक्षा स्थानीय कानूनों के ज़रिए संभव होगी। शिक्षा व रोजगार में स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता दी जा सकेगी।
लद्दाख की दूसरी अहम मांग है कि उसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए। यदि ऐसा होता है तो लद्दाख को अपनी विधानसभा, मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद मिलेगी। नीतिगत फैसले स्थानीय स्तर पर लिए जा सकेंगे। शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन और भूमि सुधार जैसे विषयों पर निर्भरता दिल्ली पर नहीं होगी
सोनम वांगचुक इस आंदोलन के चेहरे बने। उनकी भूख हड़ताल प्राकृतिक संसाधनों की लूट और सांस्कृतिक विलुप्ति के खिलाफ आवाज़ थी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि आंदोलन राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों की मांग है।