

उत्तर भारत के पहाड़ी और मैदानी राज्य इस समय भयंकर प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहे हैं। बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से सैकड़ों जानें जा चुकी हैं और हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान हुआ है। सरकारें राहत कार्यों में जुटी हैं, मगर चुनौतियां बेहद गंभीर हैं।
उत्तर भारत में प्रकृति का कहर
New Delhi: उत्तर भारत इन दिनों भीषण प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में है। लगातार बारिश, बाढ़ और भूस्खलन से कई राज्यों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। जम्मू-कश्मीर से लेकर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक तबाही का मंजर पसरा हुआ है। हजारों लोग बेघर हो गए हैं, लाखों एकड़ में खड़ी फसलें तबाह हो चुकी हैं और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हो चुकी है।
अगस्त का महीना जम्मू-कश्मीर के लिए काली छाया बनकर आया। इस दशक की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा ने अब तक 123 लोगों की जान ले ली है, जबकि दर्जनों लोग अभी भी लापता हैं। सबसे अधिक नुकसान किश्तवाड़ के चिशोती और मछेल में हुआ है, जहां बादल फटने और भारी मलबे की चपेट में आकर 68 लोगों की मौत हो चुकी है। राज्य में 2014 की बाढ़ जैसी तबाही फिर देखने को मिली। हालांकि तवी रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट के अधूरे हिस्से ने इस बार रक्षा कवच का काम किया और बड़े स्तर की क्षति को कुछ हद तक रोका।
उत्तर भारत में प्रकृति का कहर
हिमाचल प्रदेश में भी हालात बेहद गंभीर हैं। बीते ढाई महीने में यहां 360 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और 47 लोग लापता हैं। 5,162 घर क्षतिग्रस्त हुए हैं और सैकड़ों मकान जमींदोज हो चुके हैं। कुल्लू, मंडी, शिमला, कांगड़ा और चंबा सबसे अधिक प्रभावित जिले हैं। अब तक 3979 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। राज्य में 133 से अधिक भूस्खलन और 96 बाढ़ की घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिससे यह आपदा राज्य के इतिहास की सबसे विनाशकारी आपदाओं में से एक बन गई है।
उत्तराखंड में भी 2013 की केदारनाथ आपदा के बाद यह सबसे बड़ी त्रासदी मानी जा रही है। राज्य के 13 में से 10 जिले आपदा से प्रभावित हैं। 1 अप्रैल से 31 अगस्त तक 79 लोगों की मौत हो चुकी है। बादल फटना, भूस्खलन, नदियों का उफान और ग्लेशियर टूटने की घटनाओं ने राज्य को झकझोर कर रख दिया है। चारधाम यात्रा के दौरान 55 दिन यात्रा बाधित रही, जिससे धार्मिक पर्यटन और राज्य की आर्थिकी को भारी नुकसान हुआ। राज्य सरकार ने केंद्र से 5,702 करोड़ रुपये की विशेष सहायता मांगी है।
पंजाब में नदियों के उफान के कारण अब तक 1500 गांव बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। करीब 3.87 लाख लोगों पर इस त्रासदी का सीधा असर पड़ा है। 1.74 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हो चुकी है और 46 लोगों की मौत हुई है। 23 में से सभी जिलों में स्थिति गंभीर बनी हुई है। लोगों के घर, सामान, पशुधन और जीविका के साधन बाढ़ में बह चुके हैं।
हरियाणा में इस बार सामान्य से 48% ज्यादा बारिश हुई है, जिससे राज्य के 12 जिले बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। यमुना, मारकंडा, टांगरी और घग्घर नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। अब तक 24 लोगों की जान जा चुकी है और करीब 1.92 लाख किसानों की 11 लाख एकड़ फसल नष्ट हो चुकी है। पलवल, फरीदाबाद, अंबाला सहित कई जिलों में हजारों लोग राहत शिविरों में शरण लिए हुए हैं। एनडीआरएफ और सेना की टीमें राहत कार्यों में जुटी हुई हैं।
राजस्थान में भी भारी बारिश ने कहर बरपाया है। जयपुर में एक मकान गिरने से पिता-पुत्री की मौत हो गई, वहीं कोटा और भीलवाड़ा में बिजली गिरने और जलभराव से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। कई स्कूल बंद कर दिए गए हैं और राष्ट्रीय राजमार्ग-162 का हिस्सा बह जाने से यातायात प्रभावित हुआ है।
भारी बारिश और भूस्खलन के चलते माता वैष्णो देवी यात्रा 12वें दिन भी स्थगित रही। त्रिकुटा पहाड़ियों में लगातार हो रहे भूस्खलन के कारण तीर्थ मार्ग असुरक्षित हो गया है। इससे हजारों श्रद्धालु यात्रा शुरू होने का इंतजार कर रहे हैं।