

इंदौर के व्यापारियों ने एक अनोखी और साहसी पहल की है। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
चीन-बांग्लादेश के कपड़ें (सोर्स-इंटरनेट)
नई दिल्ली: देशभक्ति और स्वदेशी को बढ़ावा देने की दिशा में इंदौर के व्यापारियों ने एक अनोखी और साहसी पहल की है। शहर के प्रमुख व्यापारी संगठन ने यह निर्णय लिया है कि अब यदि कोई दुकानदार चीन या बांग्लादेश में बने कपड़े बेचता पाया जाता है, तो उस पर 1.11 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। यह निर्णय न केवल आर्थिक स्वावलंबन को प्रोत्साहित करने वाला है, बल्कि भारतीय सेना के प्रति सम्मान और समर्थन का प्रतीक भी है।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, व्यापारी संगठन के वरिष्ठ सदस्य अशोक जैन ने बताया कि यह मुहिम भारतीय सेना को समर्पित है। यदि कोई दुकानदार इस निर्णय का उल्लंघन करता है, तो उससे वसूला गया जुर्माना सीधे केंद्र सरकार द्वारा संचालित सेना कल्याण कोष में जमा कराया जाएगा। इस कदम का उद्देश्य विदेशी उत्पादों, विशेषकर चीन और बांग्लादेश जैसे देशों से आयातित वस्त्रों का बहिष्कार करना है, जो भारत के आर्थिक और रणनीतिक हितों के विरुद्ध माने जाते हैं।
व्यापारियों का मिला भारी समर्थन
इस निर्णय को लेकर इंदौर के लगभग 600 व्यापारियों ने एकमत होकर समर्थन जताया है। सभी ने एकमत से यह संकल्प लिया है कि वे अब केवल भारत में बने वस्त्र ही बेचेंगे। व्यापारियों का कहना है कि इस फैसले से न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि देश के लाखों बुनकरों, दर्जियों और कारीगरों को भी रोज़गार और आत्मसम्मान मिलेगा।
स्वदेशी वस्त्र उद्योग को मिलेगा नया जीवन
संगठन का मानना है कि यह पहल विरोध के लिए नहीं, बल्कि देश के कपड़ा उद्योग को संबल देने के लिए की गई है। अशोक जैन के अनुसार, “हम चाहते हैं कि लोग स्वदेशी उत्पादों को अपनाएं और विदेशी वस्त्रों पर अपनी निर्भरता कम करें। हमारे देश में गुणवत्तापूर्ण वस्त्र निर्माण की अपार क्षमता है, बस उसे सही दिशा और समर्थन की आवश्यकता है।”
उन्होंने कहा कि संगठन स्थानीय स्तर पर निर्माताओं और छोटे व्यापारियों को प्रोत्साहन देने के लिए विशेष शिविरों और मेलों का आयोजन भी करेगा, जहां उपभोक्ताओं को भारतीय वस्त्रों की विविधता और गुणवत्ता से परिचित कराया जाएगा।
युवा व्यापारियों में दिखा उत्साह
इस पहल को लेकर इंदौर के युवा व्यापारी वर्ग में भी खासा उत्साह है। उनका मानना है कि यह सिर्फ एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है, जिससे देशभक्ति की भावना को नया आयाम मिलेगा। युवा व्यापारी रवि अग्रवाल ने कहा, “हम चीन से सस्ता माल खरीदकर बेचते रहे हैं, लेकिन अब समय आ गया है कि हम अपने देश के उत्पादों को प्राथमिकता दें। यह पहल आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण बनेगी।”