हिंदी
भारत की अर्थव्यवस्था जुलाई-सितंबर 2026 तिमाही में 7.3% की दर से बढ़ने की उम्मीद है। इस वृद्धि में ग्रामीण भारत और सरकारी खर्च की बड़ी भूमिका रही, जबकि विदेशी निवेश में भारी गिरावट चिंता बढ़ा रही है। कम महंगाई के कारण GDP के आंकड़े बेहतर दिख रहे हैं, लेकिन आने वाली तिमाहियों में रफ्तार धीमी पड़ने की आशंका है।
Symbolic Photo
New Delhi: भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच अपनी रफ्तार बनाए हुए है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई-सितंबर तिमाही में भारत की GDP 7.3% की दर से बढ़ने की उम्मीद है। यह आंकड़ा उस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता का माहौल है और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भारतीय उत्पादों पर 50% तक टैरिफ (आयात शुल्क) बढ़ाने का दबाव बना रहे हैं।
गांव और सरकार बने ग्रोथ के असली नायक
जहां कॉर्पोरेट जगत में नई निवेश योजनाएं धीमी पड़ी हैं, वहीं ग्रामीण भारत ने अर्थव्यवस्था की कमान संभाली है। अच्छी बारिश और बेहतर कृषि स्थिति ने गांवों की आय बढ़ाई, जिससे मांग में मजबूती देखी गई। ग्रामीण भारत की मजबूत खपत ने अर्थव्यवस्था को ऊर्जा दी और बाजार में नगदी के प्रवाह को बढ़ाया।
घरेलू खपत बनी रीढ़
घरेलू उपभोग (Household Consumption), जो भारत की अर्थव्यवस्था का लगभग 60% हिस्सा है, इस तिमाही में काफी मजबूत रहा। इसका स्पष्ट मतलब है कि आम लोग बाजार में खरीदारी कर रहे हैं, जिससे उत्पादन, बिक्री और सेवाओं की गति बढ़ी।
सरकारी खर्च ने दिया सहारा
सरकार ने बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाया है। इससे रोजगार, निर्माण गतिविधि और बाजार की भावनाओं में सकारात्मक असर पड़ा और GDP की रफ्तार को समर्थन मिला।
ट्रम्प का टैरिफ और विदेशी निवेशकों की चिंता
अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारतीय आयातित सामानों पर 50% तक टैरिफ बढ़ाने के फैसले ने बाजार में चिंता पैदा कर दी है।
विदेशी निवेश में भारी कमी
टैरिफ की आशंकाओं और वैश्विक ब्याज दरों में अनिश्चितता के चलते विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से बाहर निकल रहे हैं। अब तक इस वर्ष भारतीय शेयर बाजार से लगभग 16 अरब डॉलर का नेट आउटफ्लो हुआ है, जिससे बाजार में अस्थिरता बढ़ी है। अर्थशास्त्री कौशिक दास का कहना है कि जब तक वैश्विक माहौल स्थिर नहीं होता, प्राइवेट सेक्टर बड़ा निवेश करने से कतराएगा।
क्या 7.3% की ग्रोथ ‘सांख्यिकीय चमक’ है?
कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह तेज ग्रोथ केवल वास्तविक प्रगति नहीं बल्कि ‘डिफ्लेटर’ कम होने का प्रभाव भी है।
कम महंगाई ने बढ़ाया आंकड़ा
जुलाई-सितंबर के दौरान थोक महंगाई लगभग शून्य के बराबर थी और खुदरा महंगाई औसतन 2% रही। कम महंगाई की वजह से वास्तविक (Real) GDP आंकड़े बेहतर दिखते हैं जबकि नाममात्र (Nominal) GDP कमजोर हो सकती है। एलएंडटी फाइनेंस की मुख्य अर्थशास्त्री रजनी ठाकुर के अनुसार, यह सांख्यिकीय मदद वित्त वर्ष के अंत तक जारी रह सकती है।
कर्ज में डूबे भारतीय परिवार
GST में कटौती से उम्मीद थी कि लोगों की जेब में अधिक पैसा बचेगा जिससे मांग बढ़ेगी, लेकिन स्थिति अलग दिखती है।
टैक्स बचत खर्च नहीं, कर्ज चुकाने में जाएगी
ANZ के अर्थशास्त्री धीरज निम का कहना है कि भारतीय परिवारों पर पहले से भारी कर्ज है, इसलिए अतिरिक्त बचत का पैसा बाजार में वापस आने के बजाय उधार चुकाने में उपयोग हो सकता है।
इससे आने वाले महीनों में खपत और विकास की गति पर असर पड़ सकता है।