

दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस थानों को वीडियो गवाही केंद्र बनाए जाने पर सख्त आपत्ति जताई है। कोर्ट ने इसे निष्पक्ष ट्रायल और आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी, जिसमें सरकार को अपना पक्ष रखना है।
दिल्ली हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
New Delhi: दिल्ली हाईकोर्ट ने उपराज्यपाल (LG) के उस आदेश पर गहरी आपत्ति जताई है, जिसमें दिल्ली के सभी पुलिस स्टेशनों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग केंद्र के रूप में नामित किया गया है, ताकि पुलिसकर्मी वहां से कोर्ट में गवाही दे सकें। हाईकोर्ट ने इसे "प्राइमा फेसी" निष्पक्ष ट्रायल के सिद्धांत का उल्लंघन बताया है और पूछा है कि पुलिस थानों को ही क्यों चुना गया?
LG द्वारा जारी अधिसूचना में दिल्ली के सभी पुलिस थानों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए अधिकृत किया गया है, ताकि पुलिसकर्मी अदालत में उपस्थित हुए बिना वहीं से गवाही दे सकें। यह अधिसूचना तब चर्चा में आई जब एक वकील, राजगारो, ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि इस व्यवस्था से ट्रायल की निष्पक्षता पर सवाल उठते हैं।
दिल्ली हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी
दिल्ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेदेला की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि आपके पास गवाही के लिए जगह तय करने का अधिकार हो सकता है, लेकिन पुलिस स्टेशन को क्यों चुना गया? यह तो राज्य का अंग है, जो खुद अभियोजन और जांच एजेंसी दोनों है। ऐसे में, गवाही की जगह पूरी तरह तटस्थ होनी चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा कि अगर पुलिसकर्मी अपने ही थानों से गवाही देंगे तो क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। आरोपी यह महसूस कर सकता है कि उसे पूरी तरह निष्पक्ष सुनवाई नहीं मिल रही।
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याचिकाकर्ता राजगारो ने तर्क दिया कि यह अधिसूचना न केवल आरोपी के बराबरी के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि इससे पुलिसकर्मियों को अनुचित लाभ भी मिल सकता है। अगर कोई कठिन सवाल पूछा जाए तो पुलिसकर्मी तकनीकी दिक्कत का बहाना बनाकर वीडियो बंद कर सकते हैं।
भारतीय संविधान का आर्टिकल 21 हर नागरिक को "जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता" का अधिकार देता है, जिसमें निष्पक्ष ट्रायल भी शामिल है। कोर्ट ने इसी अधिकार का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस थाने जैसी "पक्षपाती जगह" से गवाही देने की अनुमति देना इस अधिकार का उल्लंघन है।
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हाईकोर्ट ने सरकार को सुझाव देते हुए कहा कि अगर वीडियो गवाही की व्यवस्था ही करनी है तो कोई तटस्थ स्थान, जैसे सरकारी कम्युनिटी हॉल, कोर्ट परिसर के अंदर वीडियो सेंटर, या किसी अन्य निष्पक्ष स्थान को नामित किया जा सकता है। कोर्ट ने दो टूक कहा कि राज्य के हाथ में अभियोजन और जांच दोनों हैं। ऐसे में गवाही के लिए भी वही पक्षपाती स्थान चुनना उचित नहीं।
मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर 2025 को तय की गई है। उपराज्यपाल की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि वे इस मुद्दे पर अपना जवाब अगली सुनवाई में दाखिल करेंगे।