भारत में गर्मी बनी जानलेवा: भीषण गर्मी से देश में 7,000 से ज़्यादा हीटस्ट्रोक के केस, RTI से हुआ खुलासा

मार्च से 24 जून 2025 तक भारत में भीषण गर्मी के कारण 7,192 संदिग्ध हीटस्ट्रोक के मामले दर्ज किए गए और 14 मौतों की पुष्टि हुई है। यह आंकड़े RTI के ज़रिए सामने आए हैं। आंध्र प्रदेश सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि मौतों और मामलों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा हो सकती है क्योंकि देश में रिपोर्टिंग सिस्टम बेहद कमजोर है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 27 July 2025, 10:51 AM IST
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New Delhi: मार्च से जून 2025 के बीच देश में 7,192 संदिग्ध हीटस्ट्रोक मामलों और 14 मौतों की पुष्टि हुई है। RTI के ज़रिए सामने आए आंकड़ों से साफ हुआ है कि आंध्र प्रदेश, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों में गर्मी का कहर सबसे ज्यादा रहा। विशेषज्ञों के अनुसार, असल आंकड़े इससे कहीं अधिक हो सकते हैं, लेकिन खराब रिपोर्टिंग सिस्टम के कारण ये सामने नहीं आ पाते।

मार्च से जून तक 7,192 हीटस्ट्रोक के मामले दर्ज

सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त आंकड़ों से पता चला है कि मार्च से 24 जून 2025 के बीच भारत में भीषण गर्मी के कारण कुल 7,192 संदिग्ध हीटस्ट्रोक के मामले सामने आए हैं। इनमें 14 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। ये आंकड़े नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) द्वारा जारी किए गए हैं।

मई में सबसे ज्यादा मामले

आंकड़ों के अनुसार, मई 2025 में सबसे अधिक 2,962 हीटस्ट्रोक के मामले दर्ज किए गए, जबकि इसी महीने में केवल 3 मौतों की पुष्टि हुई। इसके अलावा:
• अप्रैल: 2,140 मामले, 6 मौतें
• मार्च: 705 मामले, 2 मौतें
• जून (24 जून तक): 1,385 मामले, 3 मौतें
विशेषज्ञों का मानना है कि असली संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है क्योंकि अधिकतर मामलों की रिपोर्टिंग अधूरी या गलत होती है।

आंध्र प्रदेश में सबसे ज्यादा प्रभाव

राज्यवार आंकड़े बताते हैं कि हीटवेव से सबसे अधिक प्रभावित राज्य आंध्र प्रदेश रहा, जहां अकेले 4,055 संदिग्ध मामले दर्ज किए गए। अन्य प्रमुख राज्य इस प्रकार हैं।
• राजस्थान: 373 मामले
• ओडिशा: 350 मामले
• तेलंगाना: 348 मामले
• मध्य प्रदेश: 297 मामले
इनमें से कई राज्यों ने सैकड़ों मामलों के बावजूद एक भी मौत की पुष्टि नहीं की, जिससे रिपोर्टिंग सिस्टम पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अस्पतालों और सिस्टम की खामियां

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया कि अस्पतालों में स्टाफ की कमी, मैनुअल डेटा एंट्री और बाहरी मौतों का रिकॉर्ड न होना जैसी समस्याएं हीटवेव से हुई मौतों की रिपोर्टिंग को मुश्किल बनाती हैं।

'अचानक मौतों का विश्लेषण जरूरी'

जलवायु और स्वास्थ्य विशेषज्ञ अभियंत तिवारी का कहना है कि हीटवेव से हुई मौतों को अक्सर दिल का दौरा या अन्य बीमारियों से जोड़ दिया जाता है। ऐसे में अचानक हुई मौतों (Excess Deaths) का विश्लेषण ज्यादा विश्वसनीय आंकड़े दे सकता है। स्वास्थ्य सलाहकार सौम्या स्वामीनाथन ने भी कहा कि जब तक रिपोर्टिंग सिस्टम मजबूत नहीं होगा, तब तक हीटवेव से लड़ने की ठोस नीति बनाना संभव नहीं है।

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  • New Delhi

Published : 
  • 27 July 2025, 10:51 AM IST

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