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भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को हुआ। वह स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता, गांधीजी के अत्यंत करीबी और सादगी के प्रतीक थे। नमक सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक उनका योगदान अमूल्य रहा। बाद में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Img- Google)
New Delhi: आज के भारत के पहले राष्ट्रपति और स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक डॉ.राजेंद्र प्रसाद का जन्मदिन है। उनका जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के सिवान जिले के जिरादेई गांव में हुआ था। वह एक कायस्थ परिवार से थे और बचपन से ही अत्यंत मेधावी माने जाते थे। धार्मिक समभाव और सौहार्द की भावना उनमें कम उम्र से ही देखी जाती थी। बाल विवाह उस समय आम था, इसलिए महज 12 वर्ष की उम्र में उनकी शादी राजवंशी देवी से हुई।
राजेंद्र प्रसाद की स्कूली और कॉलेज की शिक्षा हमेशा जगमगाती रही। कलकत्ता विश्वविद्यालय की परीक्षा में प्रथम आने पर उन्हें 30 रुपये मासिक स्कॉलरशिप मिली और 1902 में उन्होंने प्रसिद्ध कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया।
वह इतने प्रतिभाशाली थे कि एक बार परीक्षा की कॉपी जांचने वाले शिक्षक ने टिप्पणी लिख दी “परीक्षा देने वाला, परीक्षा लेने वाले से बेहतर है।” यह उनके अद्भुत ज्ञान और प्रतिभा का प्रमाण था।
1905 में गोपाल कृष्ण गोखले ने उन्हें इंडियन सोसायटी में शामिल होने का निमंत्रण दिया। लेकिन परिवार और पढ़ाई की ज़िम्मेदारियों के चलते उन्होंने इसे विनम्रता से ठुकरा दिया। इसी दौर में पहली बार उनकी पढ़ाई प्रभावित हुई और हमेशा टॉप करने वाले राजेंद्र प्रसाद लॉ की परीक्षा बस पास कर पाए। उनका यह त्याग उनके अनुशासन और परिवार के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
1906 में उन्होंने बिहार के छात्रों के लिए स्टूडेंट कॉन्फ्रेंस की स्थापना की। यह एक अनोखा और बेहद प्रभावी संगठन साबित हुआ, जिसने बाद में श्री कृष्ण सिंह और डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह जैसे बड़े नेता भारत को दिए।
1913 में वे डॉन सोसायटी और बिहार छात्र सम्मेलन के भी मुख्य सदस्य बने। यह वह समय था जब उनका सामाजिक और राजनीतिक व्यक्तित्व तेजी से उभर रहा था।
गांधीजी के सच्चे साथी और राष्ट्र निर्माता (Img- Google)
राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के विचारों से गहराई से प्रभावित थे। चंपारण आंदोलन के दौरान गांधीजी को जनता के लिए काम करता देखकर वे स्वयं को रोक नहीं पाए और आंदोलन का हिस्सा बन गए। 1930 के नमक सत्याग्रह में वे बिहार प्रदेश के प्रमुख बने, नमक बेचकर आंदोलन के लिए धन जुटाया और अंततः उन्हें 6 महीने की जेल भी हुई।
1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी वे गांधीजी के साथ जेल गए। गांधीजी का प्रभाव इतना गहरा था कि उन्होंने अपने घर में काम करने वालों की संख्या घटाकर स्वयं कई कार्य करना शुरू कर दिया।
1914 में बंगाल-बिहार की बाढ़ और 1934 के भूकंप के दौरान राजेंद्र प्रसाद ने स्वयं राहत कार्यों का नेतृत्व किया। उन्होंने दवाइयां, कपड़े और भोजन बांटते हुए पीड़ितों की मदद की। उनकी सादगी, मानवीयता और सेवा-भाव ने उन्हें जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय बनाया।
1. 1934–35 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
2. 1935 में उन्हें बॉम्बे सेशन की अध्यक्षता सौंपी गई
3. 1939 में सुभाष चंद्र बोस के इस्तीफे के बाद जबलपुर 4. सेशन की अध्यक्षता भी उन्होंने संभाली।
5. उन्होंने गांधीजी और नेताजी के बीच बढ़ रही दूरियों को कम करने का भी प्रयास किया।
डॉ राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर फरेन्दा सिविल कोर्ट परिसर में मूर्ति का किया गया उद्घाटन
1946 में वे भारत की अंतरिम सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री बने। देश की आजादी के बाद 1950 में उन्हें भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने भारत की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए कई देशों की यात्राएं कीं। उनकी सादगी, ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा आज भी देश के लिए प्रेरणा है। उनके असाधारण योगदान के लिए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।