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अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई होगी। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की बेंच इस मामले की समीक्षा करेगी। विवाद केंद्र सरकार द्वारा 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को ही अरावली मानने की नई परिभाषा को लेकर है। सुनवाई के बाद नए निर्देश और संरक्षण नीतियों पर अहम निर्णय आने की उम्मीद है।
अरावली मामला
अरावली पर्वत श्रृंखला मामले की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने 20 नवंबर के आदेश पर सवाल उठाए और स्पष्ट स्पष्टीकरण की मांग की। CJI ने कहा कि अदालत की कुछ टिप्पणियों को गलत तरीके से पेश किया जा रहा है, जिसे सुधारना जरूरी है। उन्होंने अरावली पहाड़ियों और रेंज की वास्तविक परिभाषा, 500 मीटर से अधिक दूरी की स्थिति, माइनिंग पर रोक या अनुमति, और इसके दायरे में स्पष्टता लाने पर जोर दिया।
चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की विस्तृत जांच के लिए एक नई एक्सपर्ट कमेटी बनाने का आदेश दिया है। कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार के साथ राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और हरियाणा सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस कमेटी का काम अरावली की वास्तविक परिभाषा और संरक्षण से जुड़े सभी पर्यावरणीय और भू-आकृतिक मुद्दों की समीक्षा करना होगा। अगली सुनवाई में कमेटी की रिपोर्ट पर विचार किया जाएगा
अरावली पर्वत श्रृंखला के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर के अपने फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। पहले के आदेश में अरावली की परिभाषा केवल उन पहाड़ियों तक सीमित की गई थी जो आसपास की जमीन से 100 मीटर या उससे अधिक ऊंची हों। अब कोर्ट ने इस फैसले को स्थगित करते हुए कहा कि अरावली की वास्तविक परिभाषा और संरक्षण से जुड़े मुद्दों पर दोबारा विचार किया जाएगा। अगली सुनवाई में केंद्र और राज्य सरकारों को नए पर्यावरण और खनन नीतियों के साथ कोर्ट के सामने प्रस्तुत होना होगा।
अदालत ने अगले निर्देशों और सुनवाई की तारीख 21 जनवरी 2026 तय की है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल हैं।
अरावली मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया स्टे लगा दिया है। अब इस मामले पर अगली सुनवाई 21 जनवरी को होगी।
सुमेरपुर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस ने अरावली पर्वतमाला की सुरक्षा के लिए 'अरावली बचाओ जन आंदोलन' के तहत पैदल मार्च निकाला। मार्च रानी उपखंड क्षेत्र के किरवा से शुरू होकर खरोकड़ा तक गया। पूर्व प्रत्याशी हरिशंकर मेवाड़ा के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ता हाथों में पोस्टर लिए और "अरावली बचाओ भविष्य बचाओ" और"खनन माफिया होश में आओ" जैसे नारे लगाते हुए चल रहे। यह आंदोलन पूरे जिले में गांव-गांव तक चलाया जा रहा है।
New Delhi: अरावली पर्वतमाला को लेकर जारी विवाद एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए इस मामले की सुनवाई तय की है। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली वैकेशन बेंच में जस्टिस जे.के. माहेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। यह मामला सीजेआई के वैकेशन कोर्ट में पांचवें नंबर पर लिस्टेड है।
इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि केंद्र सरकार ने 20 नवंबर 2025 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश स्वीकार की थी। नई परिभाषा के अनुसार केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियां ही अरावली श्रेणी में आएंगी। इस निर्णय के बाद राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-एनसीआर में विरोध तेज हो गया। पर्यावरणविद और विपक्षी दल यह मानते हैं कि छोटी पहाड़ियों को अरावली श्रेणी से बाहर करने से खनन को बढ़ावा मिलेगा और पारिस्थितिकी को नुकसान होगा।
केंद्र सरकार का कहना है कि यह नई परिभाषा अरावली संरक्षण को कमजोर नहीं करती। बावजूद इसके, विवाद बढ़ने पर 24 दिसंबर को सरकार ने अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों पर रोक लगाने के आदेश जारी किए। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी नई खनन लीज को मंजूरी नहीं दी जाएगी। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तक फैली सतत पर्वत श्रृंखला की रक्षा करना और अनियमित खनन को रोकना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की आज की सुनवाई में केंद्र और राज्य सरकारों के लिए नए निर्देश जारी हो सकते हैं। मामले से जुड़ी पल-पल की अपडेट के लिए बने रहें डाइनामाइट न्यूज़ पर