

भारत की रक्षा क्षमता को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए रक्षा सचिव आर.के. सिंह ने जानकारी दी है कि सितंबर के अंत तक दो तेजस मार्क-1ए फाइटर जेट्स भारतीय वायु सेना को सौंपे जाएंगे। यह जेट्स भारतीय वायुसेना में पुराने पड़ चुके मिग-21 लड़ाकू विमानों की जगह लेंगे।
तेजस मार्क-1ए फाइटर जेट्स
New Delhi: भारतीय वायुसेना की ताकत में इज़ाफा करने वाले स्वदेशी तेजस लड़ाकू विमान अब हकीकत बनने के कगार पर हैं। रक्षा सचिव आर.के. सिंह ने शनिवार को कहा कि सितंबर के अंत तक दो तेजस मार्क-1ए फाइटर जेट्स भारतीय वायुसेना को सौंपे जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि वर्तमान में 38 तेजस वायुसेना में सेवा दे रहे हैं और लगभग 80 अन्य जेट्स का निर्माण चल रहा है। इनमें से 10 तैयार हो चुके हैं और दो इंजन भी डिलीवरी के लिए तैयार हैं। सितंबर में इन दो विमानों को हथियारों के साथ वायुसेना को सौंपने की योजना है।
मिग-21 को लंबे समय से भारतीय वायुसेना में “बैकबोन” कहा जाता रहा है, लेकिन अब तकनीकी रूप से यह पुराना हो चुका है। कई हादसों के बाद मिग-21 को चरणबद्ध तरीके से हटाया जा रहा है। तेजस मार्क-1ए इन विमानों की जगह लेकर वायुसेना की नई रीढ़ साबित होंगे। तेजस जेट्स हल्के, फुर्तीले और आधुनिक राडार व हथियार प्रणालियों से लैस होंगे। इससे भारत को न केवल सुरक्षा मोर्चे पर मजबूती मिलेगी, बल्कि विदेशी लड़ाकू विमानों पर निर्भरता भी घटेगी।
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रक्षा सचिव ने बताया कि इस उत्पादन योजना से हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के पास अगले 4-5 वर्षों तक का पर्याप्त ऑर्डर बुक है। इससे कंपनी को प्लेटफॉर्म को और परिपूर्ण बनाने और इसमें भारतीय राडार और हथियारों को इंटीग्रेट करने का अवसर मिलेगा। उन्होंने कहा कि यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और आत्मनिर्भर भारत अभियान का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
तेजस मार्क-1ए फाइटर जेट्स
आर.के. सिंह ने कहा कि रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता अब एक रणनीतिक आवश्यकता है। उनके मुताबिक, “2014 में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के आने के बाद से आत्मनिर्भरता पर विशेष जोर दिया गया है। आज भारत अपने पूंजीगत खर्च का 75% घरेलू स्तर पर करता है। विदेशी कंपनियों को ऑर्डर पाने के लिए भारत में निवेश और उत्पादन करना अनिवार्य कर दिया गया है।” इससे न केवल रक्षा क्षेत्र में भारत की क्षमता बढ़ रही है, बल्कि देश में रोजगार और औद्योगिक विकास के नए अवसर भी पैदा हो रहे हैं।
ड्रोन टेक्नोलॉजी पर बोलते हुए रक्षा सचिव ने कहा कि भारत ने नागरिक ड्रोन निर्माण में काफी प्रगति की है, लेकिन सैन्य उपयोग के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। उन्होंने स्वीकार किया कि मिलिट्री-ग्रेड ड्रोन बनाने के लिए और अधिक अनुसंधान व निवेश की आवश्यकता है। साथ ही, भारत को अपनी वायु रक्षा प्रणालियों में भी सुधार करने की ज़रूरत है। उनका कहना था कि महत्वपूर्ण तकनीकें आसानी से साझा नहीं की जातीं, इसलिए भारत को अपनी डिज़ाइन और विकास क्षमता पर ही ध्यान केंद्रित करना होगा।
आर.के. सिंह ने हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर का ज़िक्र किया और कहा कि यह भारत की वायु रक्षा प्रणालियों के लिए एक “रियलिटी चेक” साबित हुआ। उन्होंने माना कि आधुनिक युद्ध केवल पारंपरिक हथियारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें साइबर, ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसी नई चुनौतियां भी शामिल हैं।